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Dainik Bhaskar लालबाग के राजा का दरबार खाली, एक बड़ी स्क्रीन पर बीते सालों के चल रहे वीडियो के सामने लोग हाथ जोड़कर माथा टेक रहे हैं

मुंबई के मशहूर गणपति पंडालों में इस साल गणपति बप्पा मोरया के जयकारे नहीं गूंज रहे हैं। गुलाल उड़ाती भीड़ नाचते हुए बप्पा को लेकर नहीं आ रही है। चुपचाप, पुलिस के पहरे में गणपति को विराजमान करवा दिया गया है। पंडालों में न भीड़ है न भक्त। अंधेरी के राजा का इस बार पंडाल नहीं लगाया गया है। सिर्फ स्टेज है। जिस पर सिर्फ तीन फीट के गणपति अकेले विराजमान हैं। यहां व्यवस्था संभाल रहे सुबोध चिटनीस बताते हैं कि गणपति के दर्शन ऑनलाइन कर दिए गए हैं।

अंधेरी चा राजा का मुंबई के पंडालों में खास आकर्षण होता है। हर साल बड़ी संख्या में यहां श्रद्धालु आते हैं, लेकिन इस बार कोरोना के चलते सबकुछ सीमित कर दिया गया है।

पूरी अंधेरी बप्पा के ऑनलाइन दर्शन कर सकती है। इक्का-दुक्का लोग ही गणपति को भोग लगाने के लिए प्रसाद लेकर आ रहे हैं। हर किसी को एक-एक करके हाथ सैनिटाइज करके ही स्टेज के पास जाने दिया जा रहा है। गणपति स्टेज करीब हजार मीटर की दूरी पर है। लगभग 500 मीटर पर एक तालाब की खुदाई का काम शुरू है, जिसमें गणपति विसर्जन किया जाएगा। सुबोध चिटनीस का कहना है कि वैसे तो ऑनलाइन दर्शन हर साल ही किए जाते हैं, लेकिन ऐसा पहली बार हो रहा है जब हम लोगों से बोल रहे हैं कि यहां नहीं आएं।

लालाबाग के राजा : गणपति स्थापित न कर आरोग्योत्सव के रूप में मनाने का फैसला
मन्नतों के मालिक लालबाग के राजा का तो दरबार ही नहीं सजा। लालबाग के राजा गणेश मंडल के अध्यक्ष बाला साहब सुदम कांबले कहते हैं, अगर हम छोटी मूर्ति भी स्थापित करते, तो भी हर दिन दर्शन के लिए 3-4 लाख लोगों का आना तय था। सामान्य त्योहार पर लालबाग के राजा के दर्शनों के लिए 12 से 15 लाख लोग हर दिन आते हैं। इस बार यहां गणपति स्थापित न कर गणेशोत्सव को आरोग्योत्सव के रूप में मनाने का फैसला किया गया है।

कोरोना के चलते ज्यादातर पंडाल हेल्थ कैंप में बदल गए हैं। बड़ी संख्या में युवा यहां ब्लड डोनेट कर रहे हैं।

लालबाग के राजा के यहां एक बड़ी स्क्रीन लगी है, जिसमें बीते साल की गणपति की झकियां स्क्रॉल हो रही हैं। भक्तों की श्रद्धा ऐसी है कि लोग उसके दर्शनों के लिए ही आ रहे हैं और श्रद्धा से मत्था टेक रहे हैं। जबकि, यहां कोई मूर्ति है ही नहीं, फिर भी लोग यहां दर्शन के लिए आ रहे हैं। एक सफेद रंग की कनात लगी है, जिसके नीचे लालबाग के राजा गणेश मंडल के पदाधिकारी बैठे हैं। हिसाब-किताब चल रहा है। पुलिस का पहरा तो है ही, लेकिन पुलिस अधिकारी भी थोड़ी-थोड़ी देर में मुआयना करने आ रहे हैं।

लालबाग के राजा गणेश मंडल के अध्यक्ष बाला साहब सुदम कांबले कहते हैं कि कोरोना के चलते इस बार गणेशोत्सव को आरोग्योत्सव के रूप में मनाने का फैसला किया गया है।

1934 के बाद पहली बार ऐसा हुआ है कि मन्नतों के राजा लालबाग का दरबार खाली है। बावजूद इसके इलाके में रौनक है। लोग आ रहे हैं और जा रहे हैं। पूजा-पाठ के सामान की दुकानें खुलीं हैं। लालबाग गणेश मंडल के सचिव सुधीर साल्वे बताते हैं कि यहां के राजा का यह 87वां साल है। इन सालों में ऐसा पहली बार हो रहा है कि यहां गणेशोत्सव नहीं मनाया जा रहा है।

तस्वीर लालबाग के राजा के पंडाल की है जहां युवा ब्लड डोनेट कर रहे हैं।

चिंचपोकली : पंडाल में सिर्फ पुलिस है या प्रबंधक

चिंचपोकली के राजा भी अकेले हैं। पुलिस अधिकारी व्यवस्था संभाल रहे लोगों को निर्देश दे रहे हैं। व्यवस्था के लिए जिम्मेदार महेश पेडनेरकर बताते हैं, डोनेशन के लिए इकट्ठा पैसों से वो सामाजिक काम करेंगे। बप्पा के दर्शनों से लेकर प्रसाद तक सब ऑनलाइन मिल रहा है। चिंचपोकली गणेश पंडाल का यह 100वां साल है। कोरोना न होता तो इस साल चिंचपोकली ने भव्य तरीके से मनाने का फैसला किया था, लेकिन अब साधारण से पंडाल में सिर्फ स्टेज है और डेकोरेशन न के बराबर। लोग आ रहे हैं और थाली में एक-एक करके बप्पा को भोग लगाकर वहां से निकल जा रहे हैं। पंडाल के पास सिर्फ या तो पुलिस है या प्रबंधक हैं।

गिरगांव : तब आरती में कोड वर्ड बोले जाते थे, जो अंग्रेज पकड़ नहीं पाते थे
केशवजी नायक चाल गिरगांव की तो कहानी ही बहुत दिलचस्प है। यहां के गणेशोत्सव को 128 साल हो गए हैं। कहा जाता है कि यहां के गणेशोत्सव की आजादी की लड़ाई में अहम भूमिका थी। यहां के प्रबंधक जितेंद्र बताते हैं कि बाल गंगाधर तिलक के पुणे में हुए भाषण के बाद यहां गणेश उत्सव मनाया जाना शुरू हुआ। भाषण में बाल गंगाधर तिलक ने ज्यादा से ज्यादा लोगों की भीड़ तक अपनी बात पहुंचाने के तरीकों पर बात की थी।

तस्वीर गिरगांव के पंडाल की है। इसे मुंबई का पहला गणेशोत्सव माना जाता है।

जितेंद्र के अनुसार उस वक्त यहां होने वाली गणेश आरती में ऐसे कोड वर्ड्स बोले जाते थे, जो आजादी के आंदोलन से जुड़े होते थे और अंग्रेज जासूस उन्हें पकड़ ही नहीं पाते थे। यहां के गणेशोत्सव में आजादी के आंदोलन से जुड़े बहुत सारे शूरवीर भाग लेते थे, क्योंकि उन्हें यहां से आगामी काम के लिए आदेश जारी होते थे। यहां के लोगों का दावा है कि यह मुंबई का पहला गणेशोत्सव है। यहां तक कि यहां 128 सालों से एक जैसी ही मूर्ति बनाई जा रही है, जिसे उस वक्त के मूर्तिकार की चौथी पीढ़ी बना रही है। इसमें कोई बदलाव नहीं किया गया है।

आम गणेशोत्सव में यहां हर दिन हजारों में लोग आते हैं। यहां के इतिहास को देखने और जानने, लेकिन इस बार यहां शांति है। बैठने की भी कोई व्यवस्था नहीं है, तो कोई चाहकर भी नहीं आ पाएगा। बहुत कम लोग आ रहे हैं और दर्शन करके उसी वक्त निकल जा रहे हैं। लेकिन, ऐतिहासिक तौर पर यहां के गणेशोत्सव की बहुत अहमियत है।

कोरोना के चलते अर्चक भी इस बार मास्क लगाकर और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए पूजा करा रहे हैं।

गिरगांव और मरीन ड्राइव के पास चंदनवाड़ी गणेश पंडाल भी सिर्फ स्टेज लायक ही बनाए गए हैं। लोग आ ही नहीं रहे हैं। जो लोग आ रहे हैं वो मास्क लगाकर घर से निकल रहे हैं। तमाम भक्तों को दूर से दर्शन करके एकदम से वहां से हटाया जा रहा है। हर जगह पुलिस की मौजूदगी है। स्टेज के पास ही आर्टिफिशियल तालाब बनाने का काम जारी है। पंडालों में डेकोरेशन नहीं है। मूर्तियों का साइज भी इतना ही रखा है, जिसके विसर्जन के लिए एक या दो लोगों की ही जरूरत पड़ेगी।

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1. मुंबई के 8 गणपति पंडाल से ग्राउंड रिपोर्ट / हेल्थ कैंप में बदले पंडाल, 126 साल बाद घरों में ही होगी गणपति की पूजा, चरण स्पर्श नहीं, सिर्फ मुख दर्शन होंगे



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तस्वीर अंधेरी चा राजा गणपति पंडाल की है। हर साल यहां धूम-धाम से उत्सव मनाया जाता था, ऊंची प्रतिमा होती थी लेकिन कोरोना के चलते इस बार सिर्फ तीन फीट की मूर्ति रखी गई है।


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