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Dainik Bhaskar जब हम स्वीकार करना सीखते हैं, जीवन उत्सव बन जाता है

मेरे युवा-नौजवान भाईयों-बहनों, अग्नि यदि समस्या है तो इसका समाधान है पानी। कहीं पर आग लगी है, कोई घर जल रहा है तो इसका उपाय क्या है? रोना? नहीं। छाती पीटना? नहीं। निराशा की गर्त में डूब जाना? नहीं। भाग खड़ा होना? नहीं। ये तो पलायन और कायरता हुई। सवाल अब भी वही है कि समाधान क्या है? जवाब है पानी। रोग का उपाय है स्वास्थ्य। बहुत ठंड लग रही हो तो उसका समाधान ऊष्णता है। लेकिन एक और तत्व है हमारा मन। मन की समस्या का समाधान दूसरा कुछ नहीं, केवल मन ही है। मन में नकारात्मक भाव है, तो सकारात्मक भाव भी हैं। हमें नकारात्मकता की बात नहीं करनी है। हमें अस्वीकार नहीं अपितु स्वीकारोक्ति का मंत्र ग्रहण करना है। जब हम स्वीकार करना सीखते हैं, जीवन उत्सव बन जाता है। रहीम का बहुत सुंदर दोहा है-

रहिमन रोष न कीजिए, कोई कहे क्यूं है?
हंस कर उत्तर दीजिए, हां बाबा यूं है।

हम सकारात्मक चिंतन वाली राह के राही बनें, पॉजिटिव सोच अपनाएं। सत्य से मुंह न फेरें, इसके सम्मुख जाएं। प्रेम से विमुख नहीं होना है, करुणा से भी नहीं। इनके समीप जाना है। हनुमानजी क्या हैं? सकारात्मकता के पर्याय। हनुमानजी को समझने हेतु पहले शब्दार्थ-भावार्थ समझिए। हनुमान का पहला अक्षर है- ‘ह’। ‘ह’ का अर्थ है सकारात्मकता। मतलब हमारे जीवन में पॉजिटिविटी आए। अब हनुमानजी के चरित्र को समझते हैं। हनुमानजी अक्षुण्ण रूप से सकारात्मक हैं। उन्हें समझना है तो ‘ह’ को समझिए। भगवान राम ने जो कहा, उस पर ‘हां’। आप सकारात्मकता की ओर बढ़ें, ऐसे विचारों को अपनाएं तो हनुमानजी पास आने लगेंगे।

हम पर संकट और कोई आपदा आने से पहले इनका समाधान भी सुनिश्चित हो जाता है। ये पक्का भरोसा रखिए। यही सीख रामायण हमें देती है। और हम, समस्या के दस्तक देते ही समाधान की खोज में दौड़ पड़ते हैं! अस्तित्व का नियम ही है- ईश्वर यदि पानी का सृजन नहीं करता है तो उसे प्यास रचने का भी अधिकार नहीं है; परमात्मा अन्न की व्यवस्था नहीं करता है तो उसे हमें भूख देने का भी अधिकार नहीं है। यानी ईश्वर समस्या से पहले समाधान सुनिश्चित कर देते हैं। ऐसे वक्त में हम आस-पास देखें तो कोई न कोई बैठा नजर आएगा। समस्या आने पर आस-पास न देखना, ऊपर देखना, न देखना, ऊपर किसी सद्गुरु का हाथ होगा… ये सब विश्वास की बात है। ये गणित सूत्रों की भांति सिद्ध नहीं कर सकते। यह तो जिसने जाना, अनुभव किया, वह ही ‘इति सिद्धम’ बोल सकता है। ये बहुत फायदे का हिसाब-किताब है साहब, संतोष से नींद में प्रवेश, उल्लास से दिन का श्रीगणेश।

मेरे पास युवा आते हैं। जिज्ञासा से सवाल पूछते हैं। मैं उनसे इतना ही कहता हूं कि इतने निराश और दु:खी क्यों हो? ये जीवन में प्रसन्न रहने के पल हैं। यहां एक बात याद रखिए। जो व्यक्ति रात मेें संतोष के साथ सोता है और सुबह उल्लास के साथ जागता है वह आध्यात्मिक है। अब सवाल उठता है कि आध्यात्मिक व्यक्ति का परिचय क्या है? तिलक करो, मन में आनंद। अब सवाल उठेगा कि क्या तिलक से आध्यात्मिकता आ जाती है? नहीं, लेकिन जो व्यक्ति सब काम करके रात्रि में संतोषभाव से सोए और सुबह जागते समय उमंग-उल्लास से सराबोर हो, यह अवस्था आध्यात्मिकता है। यह कोई वस्त्र बदलने की घटना नहीं है अपितु मनुष्य को नकारात्मक विचारों, भावों और ऐसे ही एहसासों के भंवर से खुद को निकालते हुए सकारात्मकता में परिवर्तित करने की विद्या है।

बहुत लाभ का सौदा है साहब, रोजाना निरीक्षण की आदत तो बनाइए इसे। मतलब हमें खुद देखना चाहिए कि क्या हम संतोष के साथ सोते हैं? युवा अवस्था प्रसन्नचित रहने की अवस्था है। इसमें एक दूजे के लिए प्रेम, समर्पण होना है। ऐसे में नकारात्मक विचार बहुत उलझन पैदा करते हैं। एक वाक्य मंत्र की भांति याद रख लीजिए कि सोइए संतोष से और उल्लास संग जागिए। कोई तिलक लगाने, माला फेरने की जरूरत नहीं है। ये हो सकता है तो ठीक है, नहीं तो कोई समस्या नहीं। हमारे युवा, नौजवान बहुत सोच-विचार-मंथन करते हैं। ये अच्छी बात है लेकिन यह भी समझ लीजिए, सुखी, प्रसन्न, आनंदित रहना न रहना भी अपने ही हाथ में हैं। इसी क्षण जीवन सुधार लीजिए। देर न कीजिए।



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मोरारी बापू, आध्यात्मिक गुरु और राम कथाकार


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