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Dainik Bhaskar

यह बॉलीवुड की साजिशों का पर्दाफाश करने में लगे भारतीयों के लिए बहुत जरूरी न हो, लेकिन यह ध्यान देने लायक है कि भारतीय अर्थव्यवस्था बड़ी मुसीबत में है। आखिरी तिमाही में जीडीपी में 24% की गिरावट आई है, जो पूरी तरह अनापेक्षित नहीं था, लेकिन फिर भी डरावना और अभूतपूर्व है।

इससे फर्क नहीं पड़ता कि इसके पीछे कोरोना, भगवान, सरकारी नीतियां या इनका मिश्रण है। यह रसोई में गिरे दूध के कटोरे की तरह है। हम दिनभर बहस कर सकते हैं कि इसे किसी ने गिराया, यह अपने आप गिर गया या बिल्ली ने गिराया। बात यह है कि घर में अब दूध नहीं है और हमें अब इसकी भरपाई करनी है। हमें अपनी अर्थव्यवस्था वापस हासिल करनी है।

जीडीपी में कमी का बड़ा असर होगा

यह मानना कि आखिरी तिमाही एक असंगति थी और तेजी से वापसी होगी, ज्यादा ही आशावादी होना है। हालांकि ऐसा न हो पाने के पीछे कारण है। नोट बंदी दो महीने की घटना थी, लेकिन आर्थिक विकास की गति वर्षों प्रभावित रही। ऐसे ही जीडीपी में कमी का बड़ा असर होगा, जैसे बिजनेस बंद होना, नौकरियां जाना, बैंक लोन डिफॉल्ट होना और आत्मविश्वास खोना।

साथ ही अगर हम इस घातक विश्वास में लगे रहे कि ‘भगवान ने समस्या खड़ी की, वे ही ठीक करेंगे’, तो यह कभी ठीक नहीं होगी। ईश्वर ने हमें दिमाग दिया है, उसके इस्तेमाल से हम हल ढूंढ सकते हैं। पहला कदम होगा समस्या को मानना। अमेरिका की जीडीपी और ज्यादा गिरी है (ऐसा नहीं हुआ है), यह बताने वाले रचनात्मक चार्ट्स बनाने से समस्या हल नहीं होगी। सच कहूं, तो अगर हमने दुनिया के सबसे सख्त लॉकडाउन को मनाया है (कुछ लोगों ने तब कहा था, ‘कमाल कर दिया’), तो जीडीपी का नुकसान उसका बिल है।

अब बतौर विकासशील देश हमें अपनी सीमा समझ आई है कि अमीर देशों से होड़ नहीं करनी चाहिए, जो हमसे ज्यादा शटडाउन झेल सकते हैं। शायद यह उस सोच का नतीजा है कि खुद को कष्ट दो, तो ईश्वर दया करेगा। हमने कष्ट के प्रति प्रेम के कारण ही लॉकडाउन, कर्फ्यू व अन्य अतार्किक चीजें कीं, जिसका संबंध बाबुओं और रहवासी सोसायटी अध्यक्षों द्वारा लोगों को नियंत्रित करने से ज्यादा था, बीमारी नियंत्रित करने से कम। माफ कीजिए, यह कारगर नहीं रहा।

हमें सोचना होगा कि हम क्या चाहते हैं?

एक बार समस्या पहचानने के बाद हमें सोचना होगा कि हम क्या चाहते हैं? हम अमीर देश बनना चाहते हैं? एक सुपरपावर? ऐसा दर्जनों प्लेन खरीदने, विज्ञापन बनाने या नारे लगाने से नहीं होगा। यह सब नकली और बेवकूफी है। यह सब कमजोर आत्मसम्मान से आता है।

हम भारतीय यह मान्यता पाने के लिए आतुर रहते हैं कि हमारे पास खुद के लिए काफी है। कृपया यह बंद करें। वास्तविक बात अमीर देश बनना है। किसी भी गरीब देश का दुनिया में सम्मान नहीं होता, फिर उसका इतिहास कितना ही महान रहा हो। आपको भारत के लिए सम्मान चाहिए? तो उसकी अमीर होने में मदद करें। इसका मतलब है कि हम अर्थव्यवस्था पर ध्यान दें और उसे नुकसान पहुंचाने वाले व्यवहार की निंदा करें। अभी हम विपरीत करते हैं।

उदाहरण के लिए हिन्दू-मुस्लिम मुद्दों से सामाजिक अशांति होती है, उससे बिजनेस का माहौल प्रभावित होता है। कोई भी उस देश में निवेश करना नहीं चाहेगा, जहां लोग एक-दूसरे से नफरत करते हैं। एक और परेशानी है कि सरकार और उसके बाबू नीति और नियमों से हर बिजनेस को नियंत्रित करना चाहते हैं। इन्हें छोड़ें। अर्थव्यवस्था को खोलें।

असली आर्थिक प्रोत्साहन देने की जरूरत

सरकार को तुरंत ही असली आर्थिक प्रोत्साहन देने की जरूरत है। गरीब देश होने के कारण हम बड़ा प्रोत्साहन नहीं दे सकते। लेकिन जो भी है, उसे वास्तविक होना चाहिए, सुर्खियां बनने वाला नंबर एक नहीं।
सरकार अर्थव्यवस्था के लिए कुछ करे, इसके लिए हमें यह भी देखना होगा कि जनता इसकी परवाह करती है। विडंबना है कि अभी सबसे ज्यादा प्रभावित हमारे युवा परवाह नहीं करते।

एक पूरी पीढ़ी बेरोजगार हो जाएगी। आम भारतीय और गरीब हो जाएंगे और कुछ अमीरों की सेवा करेंगे। यह 1980 के दशक के भारत जैसा हो जाएगा। फिर भी युवा अपने फोन में व्यस्त हैं, सस्ते 4जी डेटा पैक में खोए हैं, बचकाने वीडियो देख रहे हैं, वीडियो गेम खेल रहे हैं, पोर्न देख रहे हैं और शायद सोशल मीडिया पर सारा दिन लोगों से लड़ रहे हैं। यह सब बेकार है। यह हमारे निजी लक्ष्यों के साथ राष्ट्रीय मुद्दों से भी ध्यान भटका रहा है।

सस्ता डेटा हमारे युवाओं के लिए अभिशाप है, जहां वे कई घंटे सर्कस देखते हुए बर्बाद कर रहे हैं, जबकि साम्राज्य जल सकता है। युवाओं को फोन बंद कर उठना होगा। अपने सपनों, लक्ष्यों, महत्वाकांक्षाओं और पैसे कमाने पर ध्यान देना होगा, ताकि वे भारतीय अर्थव्यवस्था में योगदान दे सकें। उन्हें यह सवाल लगातार पूछना होगा कि ज्यादा विकास क्यों नहीं हो रहा?

भारत का भविष्य हमारे हाथों में है। हम कम काम वाले बाबुओं और डिलिवरी बॉय का, एक-दूसरे से लड़ने वालों का गरीब देश बन सकते हैं, या हम अमीर देश बनकर दुनिया में सम्मान हासिल कर सकते हैं। इनमें से आप किस तरफ हैं? (ये लेखक के अपने विचार हैं)



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