वैज्ञानिकों ने हिमाचल की रिवालसर झील की तलहटी के नमूनों की जांच के जरिए साल 3200 में मानसून के पैटर्न का पता लगाया है ,
मानसून का अर्थव्यवस्था और व्यापारिक गतिविधियों से सीधा संबंध
वैज्ञानिकों ने हिमाचल की रिवालसर झील की तलहटी के नमूनों की जांच के जरिए साल 3200 में मानसून के पैटर्न का पता लगाया है। जिस अवधि में जलवायु गर्म में बदल गई, उस अवधि के किसी बिंदु पर उपयुक्त वर्षा हुई है । बढ़ती ठंड के कारण मानसून कमजोर पड़ गया। इसमें एक नजर डालें तो मानसून की गणना 4 अवधियों में की गई है। ये 4 अवधि रोमन गर्म अवधि, मध्ययुगीन जलवायु ऐनाबेले और लिटिल आइस पीरियड और वर्तमान गर्म अवधि हैं।
इसके अनुसार वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के शोधकर्ताओं के माध्यम से एक नजर डालें तो मानसून रोमन गर्म लंबाई (1200 ईसा पूर्व से 450 सीई) में सटीक हो गया। 450 विज्ञापन से 950 विज्ञापन तक बहुत कम बारिश और सूखे की लंबी अवधि थी। मानसून रात की जलवायु ऐनाबेली (950 से 1350 विज्ञापन) में उपयुक्त में बदल गया। लेकिन १३५० से १६०० विज्ञापन के लिए लिटिल आइस पीरियड में एक बार और कमजोर हो गया । इसके बाद, मानसून आधुनिक गर्मी की अवधि की अवधि के लिए साधारण हो जाता है।
करेंट वार्म पीरियड में एक्स्ट्रीम इवेंट की घटनाएं बढ़ जाएंगी। रिसर्च के मुख्य लेखक प्रो. अनिल कुमार गुप्ता बताते हैं कि इस स्टडी के लिए झील के बीचोबीच जहां पानी की गहराई 6.5 मीटर थी, वहां सेपिस्टन की मदद से 15 मीटर मोटी सतह का नमूना लिया गया। 14 नमूनों की रेडियोकार्बन डेट्स 200 से लेकर 2950 वर्ष पूर्व की तय की। नमूनों के ऑर्गेनिक कार्बन, नाइट्रोजन व कार्बन आइसोटोप्स रेश्यो के वैल्यू की गणना से पता लगाया कि कब कितनी बारिश हुई।
चरम अवसर घटनाओं वर्तमान गर्मी की अवधि के भीतर बूम होगा । अध्ययन के प्रमुख लेखक प्रो अनिल कुमार गुप्ता बताते हैं कि इस जांच के लिए 15 मीटर मोटी सतह सेपिस्टन की सहायता से सैंपल में बदल गई, जिसमें पानी की गहराई झील के बीच में ६.पांच मीटर हो गई । रेडियोकार्बन 14 नमूनों की तारीख २०० से २९५० साल पहले की तारीख । जैविक कार्बन, नाइट्रोजन और कार्बन आइसोटोप नमूनों के अनुपात के शुल्क की गणना निर्धारित कैसे बहुत बारिश हुई ।
अर्थव्यवस्था और उद्यम गतिविधियों के साथ मानसून का सीधा संबंध
मानसून अर्थव्यवस्था, साम्राज्यों और व्यापार के खेल के विस्तार में एक सही दूर डेटिंग है । रोमन गर्मी के दौर में मानसून किसी स्तर पर बेहतरीन था। उस समय भारत में मौर्य वंश था। कृषि में तेजी आई। कस्बों और शहरों का निर्माण किया गया। व्यापार की सुविधाएं विकसित की गईं। वाणिज्यिक उद्यम यूरोप, मेसोपोटामिया, मिस्र और अफ्रीकी तटों तक विस्तारित हुआ। इसे सतयुग के नाम से जाना जाता है।
- यहां 450 से 950 एडी तक अतिसंवेदनशील मानसून बना। गुप्ता वंश ढह गया। 1400 से 1600 के बीच 3200 साल में मानसून सबसे कमजोर में बदल गया, जब यूरोपीय पर्यटक भारतीय महाद्वीप में पहुंचे। अरब और अफगानियों के माध्यम से हमले हुए हैं, और मुगल साम्राज्य ब्रिटिश साम्राज्य के माध्यम से मनाया जाता है।
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