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Dainik Bhaskar

अगले महीने लद्दाख को देश के बाकी हिस्से से जोड़ने वाले दोनों रास्ते बंद हो जाएंगे। लगभग छह महीने तक इस इलाके को अपनी जरूरतों के लिए एयर कनेक्टिविटी का सहारा लेना होगा। ऐसे में सबसे ज्यादा असर पड़ेगा सब्जी और फलों की सप्लाई पर।

लद्दाख में 1962 के पहले तक सिर्फ 4 सब्जियां उगाई जाती थीं। आज यहां के किसान 25 सब्जियां उगा रहे हैं, जबकि लेह के डीआरडीओ लैब में 78 सब्जियों पर काम हो रहा है। जितनी सब्जियां दिल्ली में नहीं उगाई जातीं, उससे ज्यादा अब लेह के किसान उगाने लगे हैं।

लेह में डीआरडीओ के यूनिट डिफेंस इंस्टीट्यूट ऑफ हाई एल्टीट्यूड रिसर्च ने बाकायदा इसके लिए वहां के किसानों और आर्मी यूनिट्स को ट्रेनिंग दी है। ये इसलिए खास है, क्योंकि जब लद्दाख में तापमान माइनस 30 से 40 डिग्री चला जाता है तो सब्जी उगाना नामुमकिन होता है।

सैनिकों को फ्रेश सब्जियां मिलती रहे, बर्फबारी में रास्ते बंद होने के बाद भी इसलिए इस लैब ने अपनी ये टेक्नोलॉजी गलवान, पैन्गॉन्ग, देमचोक, दौलत बेग ओल्डी जैसे सीमा से सटे इलाकों तक में पहुंचा दी है।

लद्दाख के किसान अभी 25 तरह की सब्जियां उगा रहे हैं, जबकि 1962 के पहले यहां सिर्फ 4 सब्जियां उगाई जाती थी।

सब्जियों के एक बंकर की कैपेसिटी 20 से 100 टन तक भी हो सकती है

चीन सीमा पर तैनात भारतीय सैनिकों को फ्रेश सब्जियां, फल और मीट पहुंचाया जा सके इसके लिए डिफेंस इंस्टीट्यूट ऑफ हाई एल्टीट्यूड रिसर्च लगातार काम कर रहा है। फिलहाल वो सेना के लिए बंकर में माइक्रोग्रीन्स उगाने की तकनीक पर काम कर रहे हैं। यही नहीं वो सीमा से सटे इलाकों में सब्जियों को स्टोर करने की खास अंडर ग्राउंड स्टोरेज टेक्नीक लाए हैं।

यहां सर्दियों के लिए तीन-चार महीने तक सब्जी स्टोर की जा सकती है। वो भी बिना कार्बन एमिशन के। यही नहीं इस स्टोरेज को जरूरत पड़ने पर सैनिक बंकर के तौर पर इस्तेमाल कर पाएंगे। इस स्टोरेज में आलू 6 महीने तक सुरक्षित रखा जा सकते हैं। एक बंकर की कैपेसिटी 20 से 100 टन तक भी हो सकती है।

पिछले महीने उगाए 50 टन तरबूज, लेटस, ऑरिगेनो से लेकर कई विदेशी सब्जियां भीं

लेह से 12 किमी दूर फे गांव के किसानों ने पिछले महीने 50 टन तरबूज उगाने का रिकॉर्ड बनाया है। ये तकनीक उन्होंने डीआरडीओ से ही ली है। 2016 में इस गांव के 10 किसानों ने ट्रायल शुरू किया था। इसके अलावा डिफेंस लैब ने किसानों और फौजियों को ब्रॉकली, ऑरिगेनो, लेटस जैसी तमाम विदेशी सब्जियां उगाना भी सिखाया है। यही वजह है कि लेह के बाजार में अब फ्रेश पारस्ले से लेकर कीनुआ और एप्रीकॉट और एपल की लद्दाखी वैरायटी आसानी से मिल रही हैं।

डिफेंस इंस्टीट्यूट ऑफ हाई एल्टीट्यूड रिसर्च ने किसानों और आर्मी यूनिट्स को इसके लिए ट्रेनिंग दी है।

लद्दाख के लोकल सीबकथॉर्न से कोरोना का मुकाबला

लद्दाख के जंगली फल सीबकथॉर्न में एंटी ऑक्सीडेंट और इम्युनिटी बूस्टर्स होते हैं। यही वजह है कि सैनिकों के लिए लद्दाख के इस लैब में सीबकथॉर्न जूस और हर्बल टी बनाई जा रही है। पहले ये सीबकथॉर्न चीन से इम्पोर्ट होता था, लेकिन चीनी प्रोडक्ट्स पर रोक लगने के बाद अब लद्दाख के सीबकथॉर्न की डिमांड बहुत ज्यादा बढ़ गई है।

देश का 70 फीसदी सीबकथॉर्न लद्दाख में उगाया जाता है। हर साल यहां 400 टन सीबकथॉर्न हार्वेस्ट होता है जो 150 रुपए किलो बिकता है।

सीमा से सटे इलाकों में सब्जियों को स्टोर करने के लिए खास अंडर ग्राउंड स्टोरेज टेक्नीक लाए हैं। यहां सर्दियों के लिए 3-4 महीने तक सब्जी स्टोरी की जा सकती है।

चीन सीमा पैट्रोलिंग के लिए दो कूबड़ वाले ऊंट

चीन से सटे इलाकों में जहां सड़कें नहीं हैं और खच्चरों का जाना भी मुश्किल है, अब सेना वहां पैट्रोलिंग और सामान ले जाने के लिए डबल हंप यानी दो कूबड़ वाले ऊंटों का इस्तेमाल करेगी। ये ऊंट सिर्फ लद्दाख के हुंडर इलाके में पाए जाते हैं और उनकी कुल आबादी सिर्फ 400 है।

डिफेंस इंस्टीट्यूट ऑफ हाई एल्टीट्यूड रिसर्च ने इसके लिए राजस्थान और हुंडर दोनों जगहों से ऊंट मंगवाए हैं। ये ऊंट दौलत बेग ओल्डी और आसपास के इलाके में जहां रेतीली जमीन है, वहां बेहतर परफॉर्म कर पाएंगे और एक बार में 170 किलो सामान ले जा सकते हैं। अभी तक जंस्कार ब्रीड के खच्चर का इन कामों में इस्तेमाल होता था।

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