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Dainik Bhaskar

अपूर्वा मंडाविली. सेंटर्स फॉर डिसीज प्रिवेंशन एंड कंट्रोल ने कुछ दिनों पहले एक नई गाइडलाइन प्रकाशित की थी। इस गाइडलाइन में कहा गया था कि हवा में उड़ने वाले कण वायरस फैला सकते हैं। हालांकि, एजेंसी ने अपनी इस सलाह को वापस ले लिया है। सीडीसी का कहना है कि यह सलाह एजेंसी की वेबसाइट पर गलत पोस्ट हो गई थी। प्रकाशित डॉक्यूमेंट ने पहली बार इस बात को माना था कि वायरस मुख्य तौर पर हवा में फैलता है।

फैसला बदलने से वैज्ञानिकों के बीच बढ़ी चिंता
गाइडलाइन में यह बदलाव ऐसे वक्त में आया जब वायरस के कारण अमेरिका में मौतों का आंकड़ा 2 लाख तक पहुंच गया है। रोज हजारों संक्रमण के नए मामलों की खबरें आ रही हैं। एक्सपर्ट्स को फिर एक बार मामलों के बढ़ने का डर है, क्योंकि ठंडा मौसम आने वाला है और लोग घर के अंदर ज्यादा समय बिताएंगे।

तेजी से हो रहे गाइडलाइंस में बदलाव के कारण वैज्ञानिकों में हडकंप मच गया है। इसके अलावा एजेंसी के भरोसे पर सवाल उठने लगे हैं। मामले में जानकारी रखने वाले एक्सपर्ट्स ने सोमवार को कहा कि हाल ही में बदला गया फैसला राजनीतिक दखल के बजाए एजेंसी की साइंटिफिक रिव्यु प्रक्रिया में हुई गड़बड़ी का लग रहा है। अधिकारियों का कहना है कि एजेंसी जल्द ही नई गाइडेंस जारी करेगी।

एक्सपर्ट्स ने उठाए सवाल

  • कुछ वैज्ञानिकों का कहना है कि यह समझना मुश्किल है कि पब्लिक हेल्थ से जुड़ा कोई डॉक्यूमेंट बिना किसी अहम जांच के पोस्ट कर दिया गया। हार्वर्ड मेडिकल स्कूल में इंटरनल मेडिसिन फिजीशियन डॉक्टर अबरार करन ने कहा, "हम जानते हैं कि साइंस से जुड़ी बातचीत के मामले में दांव बहुत ऊंचे हैं।"
  • एजेंसी के प्रवक्ता जेसन मैकडोनल्ड का कहना है, "हम हमारी प्रक्रिया की समीक्षा कर रहे हैं और सभी गाइडेंस और अपडेट्स को पोस्ट करने से पहले रिव्यू किए जाने वाले काम को और कड़ा कर रहे हैं।"
  • साइंटिफिक रिसर्च बताती है कि कुछ खास जगहों पर एयरोसोल जरूरी भूमिका निभाते हैं। यह ज्यादातर बार, क्लब, जिम और रेस्टोरेंट जैसे खराब वेंटिलेशन वाली इंडोर जगहों पर होते हैं। एजेंसी ने शुक्रवार को प्रकाशित डॉक्यूमेंट में कहा था कि इन जगहों पर वायरस हवा में लंबे समय तक रह सकता है और 6 फीट से ज्यादा दूरी तय कर सकता है।

सीडीसी की साख पर भी उठ रहे सवाल

  • महामारी फैलने के बाद सीडीसी की साख पर भी सवाल उठते रहे हैं। उदाहरण के लिए अप्रैल में ही अधिकारियों ने पहले कहा था कि मास्क पहनना जरूरी नहीं है, लेकिन बाद में खुद ही चेहरा कवर करने की सलाह दे रहे थे। अगस्त में सीडीसी ने कहा कि जो लोग किसी संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आए हैं और उन्हें लक्षण नजर नहीं आ रहे हैं तो उन्हें टेस्टिंग की जरूरत नहीं है।
  • जबकि, बीते हफ्ते न्यूयॉर्क टाइम्स ने पाया कि यह गाइडेंस वैज्ञानिकों के बजाए प्रशासन में मौजूद अधिकारियों की तरफ से आया था। इसके बाद एजेंसी ने अपना फैसला बदला और कहा कि संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आने के बाद सभी को टेस्टिंग कराना जरूरी है।
  • बीते हफ्ते अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प एजेंसी के डायरेक्टर डॉक्टर रॉबर्ट रेडफील्ड के वैक्सीन से जुड़े बयान पर भड़क गए थे। डॉक्टर रेडफील्ड ने कहा था कि वैक्सीन अगले साल के मध्य तक भी उपलब्ध नहीं होगी। इस पर ट्रम्प ने कहा था, "यह केवल एक गलत खबर है।"

हवा के जरिए वायरस फैलने की बहस ने फिर बढ़ाई चिंता
महामारी की शुरुआत से ही वैज्ञानिक इस बात को जानते थे कि कोरोनावायरस खांसी या छींक के जरिए सांस के कणों से बाहर निकलने पर फैल सकता है। बाद में डब्ल्युएचओ जैसी स्वास्थ्य एजेंसियों ने बातचीत, सांस लेने या गाना गाने के कारण निकलने वाले एयरोसोल की भूमिका को माना। सीडीसी के नए डॉक्यूमेंट में दोनों तरीकों को एयरबोर्न ट्रांसमिशन का नाम दिया गया है, लेकिन अधिकारियों ने पहले एयरोसोल की भूमिका पर जानकारी नहीं दी थी।

शुक्रवार को प्रकाशित डॉक्यूमेंट में सीडीसी ने क्या कहा
सीडीसी के अनुसार, जब एक संक्रमित व्यक्ति खांसता, छींकता, गाता, बात करता या सांस लेता है तो सांस के कण या छोटे कण तैयार होते हैं, जैसे एयरोसोल में होते हैं। यह कण सांस के जरिए अंदर जाकर इंफेक्शन की शुरुआत कर सकते हैं। एजेंसी के मुताबिक, यह वायरस फैलने का मुख्य तरीका माना जाता है।

सीडीसी ने यह भी कहा था कि कोविड 19 समेत हवा के जरिए फैलने वाले वायरस बेहद संक्रामक होते हैं और आसानी से फैलते हैं। जॉर्ज मेसन यूनिवर्सिटी में हॉस्पिटल एपेडेमियोलॉजिस्ट सास्किया पॉपेस्कु ने कहा कि यह एक ऐसा बयान है जो इस बात में उलझन खड़ी करता है कि अस्पतालों को कैसे कोरोनावायरस मरीजों का ख्याल रखना चाहिए।

एयरबोर्न वायरस के मामले में मरीजों को कथित नेगेटिव प्रेशर कमरों में रखने की जरूरत हो सकती है। यह तरीका वायरस को बचकर बाहर निकलने से रोकेगा और स्वास्थ्य कर्मी हर वक्त N95 मास्क पहनेंगे। डॉक्टर सास्किया ने कहा, "तब यह चुनौती होगी कि हम हर एक मरीज को नेगेटिव प्रेशर कमरों में रखने में सक्षम नहीं होंगे।"

उन्होंने कहा कि अगर वेंटिलेशन और इंफेक्शन कंट्रोल सिस्टम अस्पताल में सही सुरक्षा नहीं दे रहे हैं तो अस्पतालों के कारण संक्रमण बढ़ेगा। डॉक्टर सास्किया का कहना है, "मुझे लगता है वे इस बात को समझते हैं कि आप एयरबोर्न को ऐसे ही नहीं बता सकते। अस्पतालों पर इसके प्रभाव बहुत गंभीर होंगे।" उन्होंने कहा, "मुझे लगता है कि इसलिए शायद उन्होंने यह फैसला वापस ले लिया।"

एयरोसोल और ड्रॉपलेट्स की बहस
कुछ एक्सपर्ट्स का कहना है कि इस बात से फर्क नहीं पड़ता कि क्या जरूरी है- ड्रॉपलेट्स या एरोसोल्स। इस बात से फर्क पड़ता है कि लोगों को खुद को सुरक्षित कैसे रहना चाहिए। वर्जीनिया टेक में एयरबोर्न वायरस की एक्सपर्ट लिंसे मार ने कहा, "मुझे लगता है कि एयरोसोल बहुत जरूरी होते हैं। यह इतने जरूरी तो हैं कि पब्लिक हेल्थ सलाह में इन्हें आगे और बीच में रखना चाहिए। मुझे उम्मीद है कि यह इस तरह से वापस आएगा, जिससे एयरोसोल के महत्व का पता लगेगा।"

सीडीसी ने एक हफ्ते में बदला दूसरी बार अपना फैसला
बीते शुक्रवार को ही सीडीसी ने अपनी एक और गाइडलाइन वापस ली थी, जिसमें एजेंसी ने 24 अगस्त को कहा था कि अगर किसी संक्रमित व्यक्ति से मिलने के बाद आपको लक्षण नजर नहीं आ रहे हैं तो टेस्ट कराने की जरूरत नहीं है। हालांकि, बाद में एजेंसी ने यह साफ किया कि किसी भी संक्रमित व्यक्ति से 15 मिनट से ज्यादा संपर्क में रहे हैं तो टेस्टिंग जरूरी है। यह फैसला सीडीसी ने एक्सपर्ट्स के भारी विरोध के बाद लिया था।

अटलांटा स्थित सेंटर्स फॉर डिसीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन का हेडक्वार्टर। एक अधिकारी के मुताबिक, कोरोनावायरस ट्रांसमिशन को लेकर प्रकाशित हुई जानकारी समय से पहले ही पोस्ट हो गई थी। गाइडलाइन की अभी भी जांच जारी है।

सेंटर्स फॉर डिसीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (CDC) के बारे में जानिए
सेंटर्स फॉर डिसीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (CDC) अमेरिका की राष्ट्रीय स्वास्थ्य संस्था है, जिसका हेडक्वार्टर अटलांटा में है। यह सरकार के डिपार्टमेंट ऑफ हेल्थ एंड ह्यूमन सर्विसेज के तहत काम करती है। वेबसाइट के मुताबिक, सीडीसी की शुरुआत कम्युनिकेबल डिसीज सेंटर के तौर पर 1 जुलाई 1946 में अटलांटा स्थित एक भवन के फ्लोर पर हुई थी।

संस्था का शुरुआती काम राष्ट्र में मलेरिया के फैलने को रोकने का था। दक्षिण में संस्था के विस्तार के बाद सीडीसी के संस्थापक डॉक्टर जोसेफ माउंटिन ने सीडीसी की जिम्मेदारियां दूसरी बीमारियों की ओर बढ़ाने पर जोर लगाया। 1967 में सीडीसी का नाम बदलकर नेशनल कम्युनिकेबल डिसीज सेंटर (NCDC) किया गया। इसके बाद 1970 में संस्था का नाम सेंटर फॉर डिसीज कंट्रोल (CDC) हो गया।



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एक्सपर्ट्स का कहना है कि इस बात से फर्क नहीं पड़ता कि क्या जरूरी है- ड्रॉपलेट्स या एरोसोल्स। इस बात से फर्क पड़ता है कि लोगों को खुद को सुरक्षित कैसे रहना चाहिए।


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