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Dainik Bhaskar

भारत सरकार ने बीते बुधवार को पॉपुलर गेम पबजी (प्लेयर्स अननोन्स बैटलग्राउंड) समेत 118 चीनी ऐप्स पर प्रतिबंध लगा दिया था। पबजी का बैन होना चौंकाने वाला इसलिए भी था, क्योंकि दुनियाभर में इसके सबसे ज्यादा प्लेयर्स भारत में हैं। इसकी लत का आलम यह था कि गेम की वजह से कई लोगों ने मर्डर और आत्महत्या जैसे कदम उठाए, तो वहीं कुछ अपना मानसिक संतुलन खो बैठे।

मेंटल हेल्थ एक्सपर्ट्स सरकार के इस कदम को अच्छा बता रहे हैं। सेंसर टॉवर की रिपोर्ट बताती है कि दुनिया भर में पबजी के 73 करोड़ से ज्यादा डाउनलोड्स हैं, जबकि इस गेम के 23.8% डाउनलोड अकेले भारत में हुए हैं। यह आंकड़ा दुनिया के किसी भी देश से ज्यादा है।

एक्सपर्ट्स के मुताबिक- गेमिंग डिसऑर्डर का शिकार हो जाते हैं लोग
राजस्थान के उदयपुर स्थित गीतांजलि हॉस्पिटल में असिस्टेंट प्रोफेसर और साइकोलॉजिस्ट डॉक्टर शिखा शर्मा इसे गेमिंग एडिक्शन यानि गेम खेलने की लत कहती हैं। उन्होंने कहा कि यह केवल लत है और इसे इंटरनेट गेमिंग डिसऑर्डर कहा जाता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी इंटरनेशनल क्लासिफिकेशन ऑफ डिसीज (ICD-11) में गेमिंग डिसऑर्डर को शामिल किया है। इस डिसऑर्डर से जूझ रहे व्यक्ति को गेमिंग के ऊपर कोई कंट्रोल नहीं होता और किसी भी जरूरी चीज से पहले गेम को प्राथमिकता देता है।

जानिए क्या है गेमिंग एडिक्शन और पैरेंट्स अपने बच्चों को इससे कैसे बचाएं....

आखिर क्यों गेम में इतना खो जाते हैं बच्चे?
गेम खेलने वाले लोगों में हमने अक्सर देखा है कि वे सभी चीजों को छोड़कर अपनी मोबाइल स्क्रीन में इतने व्यस्त होते हैं कि उन्हें दूसरी कोई चीज नजर नहीं आती। डॉक्टर शर्मा ने कहा "इसके दो बड़े कारण होते हैं। पहला अचीवमेंट और दूसरा मोटिवेशन।" उन्होंने कहा कि चैलेंज होने के कारण बच्चे इसकी तरफ अट्रैक्ट होते हैं। इसमें ग्रुपिंग होती है, लेवल्स को क्रॉस करना होता है और बच्चे स्टेज पार करने के बाद मोटिवेट महसूस करते हैं। प्लेयर्स इसके जरिए खुद को साथियों के बीच में साबित करने की कोशिश करते हैं।

पैरेंट्स कैसे पहचानें बच्चा गेमिंग की लत से जूझ रहा है?

  1. चिड़चिड़ापन या गुस्सा करना: अगर आपके घर में बच्चा लगातार गेमिंग कर रहा है और उसका व्यवहार कुछ बदल गया है तो पैरेंट्स सतर्क हो जाएं। इस परेशानी से जूझ रहा बच्चा छोटी से छोटी चीज को लेकर चिड़चिड़ाने लगता है और गुस्सा होने लगता है।
  2. डेली रुटीन का बिगड़ना: अगर कोई भी व्यक्ति गेमिंग की लत का शिकार हो चुका है, तो वह हर काम से पहले गेम को रखेगा। अगर आप यह देख रहे हैं कि कोई अपने दिन भर के जरूरी कामों को छोड़कर केवल गेमिंग में वक्त गुजार रहा है तो यह संकेत हो सकता है।
  3. काम नहीं कर पाना: गेमिंग की लत का शिकार केवल बच्चे ही नहीं, बड़े भी होते हैं। घर में रहने वाले लोग इस बात का ध्यान रखें, अगर व्यक्ति पहले की तरह अपने कामों को पूरा नहीं कर पा रहा है तो हो सकता है वह गेमिंग डिसऑर्डर से जूझ रहा हो।
  4. पढ़ाई का बिगड़ना: बच्चों के बीच यह बात सबसे ज्यादा आम होती है, क्योंकि हद से ज्यादा गेमिंग का असर उनकी पढ़ाई पर नजर आने लगता है। पैरेंट्स ध्यान रखें कि अगर बच्चा पढ़ाई में प्रदर्शन बिगड़ गया है तो बात चिंता करने वाली है। होमवर्क या स्कूल के दूसरे कामों में भी पिछड़ना भी इस बात के संकेत हो सकते हैं।
  5. मिलना-जुलना कम कर देना: गेमिंग डिसऑर्डर से जूझ रहा व्यक्ति मोबाइल या गेमिंग स्क्रीन पर अधिकांश वक्त गुजारता है। ऐसे में वह किसी से मिलना भी पसंद नहीं करता है। हर वक्त उसे केवल गेमिंग की तलब होती है।

गेमिंग डिसऑर्डर से बच्चे को कैसे बचाएं
डॉक्टर शर्मा कहती हैं कि आजकल परिवारों में किसी के पास भी एक-दूसरे के लिए समय नहीं है। कई मामलों में लोग इतना व्यस्त होते हैं कि उनके पास आपस में बात करने का भी समय नहीं होता है। इसे दूर करने का अच्छा तरीका परिवार में अनुशासन लाना है।

उन्होंने कहा कि यह नियम बना लें कि कम से कम एक समय का भोजन सभी साथ मिलकर करें। इससे दिमागी स्तर पर काफी सारी परेशानियों को दूर करने में मदद मिलती है। इसके अलावा ये 5 बातें आपकी गेम की लत छोड़ने में मदद कर सकती हैं...

  1. आउटडोर एक्टिविटीज: घर में अगर कोई गेम की लत से जूझ रहा है तो पैरेंट्स उन्हें बाहर निकलने के लिए प्रोत्साहित करें। पैरेंट्स को बच्चों को आउटडोर गेम्स और एक्सरसाइज जैसी चीजों के लिए तैयार करना चाहिए।
  2. मोबाइल और इंटरनेट टाइम को फिक्स कर लें: यह सलाह गेमिंग लत से जूझ रहे लोगों के लिए काफी फायदेमंद है, क्योंकि अगर आप मोबाइल और इंटरनेट का समय सीमित कर देते हैं तो आपको दूसरे कामों के लिए भी वक्त मिलता है। अपने मोबाइल और इंटरनेट के समय को फिक्स कर दें।
  3. हॉबी पर फोकस करें: लगातार गेम खेलते रहने की आदत के कारण व्यक्ति अपनी पसंद की चीजों को नजरअंदाज करना शुरू कर देता है, जबकि यही चीज आपको गेमिंग डिसऑर्डर से बचा सकती है। पैरेंट्स को भी बच्चों को उनकी पुरानी पसंदीदा चीजों के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए।
  4. बच्चों की हरकतों को पैरेंट्स मॉनिटर करें: पैरेंट्स के लिए बच्चों की हरकतों का ध्यान रखना बहुत जरूरी है। आमतौर पर कम उम्र के बच्चों के पास फोन नहीं होता है, लेकिन वे माता-पिता की डिवाइस का उपयोग करते हैं। इस मामले में तो आप काफी हद तक उनकी एक्टिविटीज को देख सकते हैं, लेकिन निजी मोबाइल फोन रखने वाले बच्चों के मामले में यह मुश्किल हो जाता है। ऐसे में माता-पिता उनकी ऑनलाइन गतिविधियों की जांच करते रहें। मॉनिटर करें कि बच्चा स्क्रीन पर ज्यादा वक्त कहां गुजार रहा है।
  5. एक्सपर्ट्स की सलाह लें: अगर तमाम कोशिशों के बाद भी कोई व्यक्ति गेमिंग की लत से नहीं उबर पा रहा है तो आप एक्सपर्ट्स की सलाह लें। मेंटल हेल्थ एक्सपर्ट्स के अनुसार, ऐसे मामलों में साइकोथैरेपी बेहतर काम करती है।


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