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Dainik Bhaskar

ट्रम्प की टीम के लोगों की एक बात सराहनीय है कि जब वे तपाक से सच बोलते हैं तो ऐसे बोलते हैं कि आप सोच में पड़ जाएं कि क्या उन्होंने सच में यह जोर से कहा। मेरे मन में यही विचार आया जब हाल ही में कैलियान कॉनवे ने कहा, ‘जितना ज्यादा हंगामे और हिंसा का शासन होगा, यह कानून व्यवस्था के लिए सही विकल्प चुनने के लिए उतना ही बेहतर होगा।’

बेहतर होगा? अमेरिका में कोई भी ‘बेहतर’ कैसे हो सकता है, जब यहां इतना हंगामा और हिंसा होगी। यह केवल एक व्यक्ति के लिए बेहतर हो सकता है- डोनाल्ड ट्रम्प के लिए। हर एक दंगा और लूट की कीमत ट्रम्प के फिर चुने जाने के लिए 10 हजार वोट हैं। इसलिए जो बाइडेन के पास चुनौती है कि वे बहुमत इकट्‌ठा करने के लिए मतदाताओं को भरोसा दिलाएं कि वे हिंसा और पुलिसिंग को गंभीरता से लेते हैं।

अगर आप बाइडेन की चुनौती समझना चाहते हैं तो मेरे गृह नगर मिनियापोलिस के संघर्ष का अध्ययन कीजिए। एक तरफ मिनियापोलिस सिटी काउंसिल के अति उदारवादी हैं, जिन्होंने एक पुलिस वाले द्वारा जॉर्ज फ्लॉयड की जान लिए जाने के बाद पुलिस विभाग को हटाने के लिए वोट किया और उसकी जगह ‘सामुदायिक सुरक्षा और हिंसा रोकथाम विभाग’ बनाने का समर्थन किया।

इसका विरोध करने वालों में उत्तर मिनियापोलिस के अश्वेत और श्वेत नेताओं के उभरते गठबंधन हैं। वे ऐसे समय में पुलिस विभाग खत्म करने के पक्ष में नहीं हैं, जब उनके आस-पास हिंसा, गोलीबारी की वारदातें बढ़ रही हैं, खासतौर पर महामारी के बाद बढ़ी बेरोजगारी और हतोत्साहित पुलिस बल के कारण। पिछले कुछ समय में विभिन्न कारणों से पहले ही 100 पुलिस अधिकारी हट चुके हैं।

कुछ ने इस्तीफा दिया, कुछ को निकाला गया, तो कुछ जॉर्ज फ्लॉएड मामले से हुए तनाव के कारण भी नौकरी छोड़ चुके हैं। आशंका जताई जा रही है कि इस साल के लिए तय 888 पुलिस वालों के बजट से भी कम पुलिस वाले मिनियापोलिस में बच सकते हैं। पुलिस विभाग बंद करने का विरोध कर रहे लोग अब पुलिस सुधारों की मांग कर रहे हैं। ऐसे परिवारों का कहना है कि हम सिटी काउंसिल के चमकीले लक्ष्यों के लिए हमारे समुदाय की सुरक्षा को खतरे में नहीं डाल सकते।

कुल मिलाकर बात यह है कि पुलिस विभाग खत्म करने का विरोध कर रहे लोगों का कहना है, काउंसिल को पुलिस अधिकारियों की उचित संख्या बनाए रखना चाहिए। अगर नेतृत्व में हमारे शहर को सुरक्षित रखने की बुद्धिमत्ता नहीं है, तो वे कम से कम तय नियमों का पालन तो कर ही सकते हैं।

हाल ही में अफवाह फैली कि पुलिस वाले ने अश्वेत को गोली मार दी, जबकि उसने आत्महत्या की थी। इसके बाद भड़की हिंसा में कई दुकानों को नुकसान हुआ। पहले ही जॉर्ज फ्लाएड मामले में लूट झेल चुके कई दुकानदार दोबारा कारोबार शुरू करने में डर रहे हैं। ऐसे में पुलिस विभाग को बंद करना स्थितियों को और खराब ही करेगा।

अश्वेतों की शिक्षा और हितों के लिए काम रही संस्था नॉर्थसाइड अचीवमेंट जोन चलाने वाली सॉन्ड्रा कहती हैं, ‘शिक्षा और पारिवारिक स्थायित्व से गरीबी हटाई जा सकती है। इसी से स्वस्थ समाज बनता है और अश्वेत अमेरिकी अपनी पूरी क्षमता पहचान सकते हैं। लेकिन यह सब हंगामे के बीच नहीं हो सकता। हमें दोनों बातें कहने में सक्षम होना होगा। यह कि अश्वेतों की जिंदगी मायने रखती है और यह कि हिंसक होते विरोध प्रदर्शनों को शहर को तोड़ने नहीं दिया जा सकता।’

लेकिन हमारे पास तीसरा मामला भी है। वे कहती हैं, ‘मार्टिन लूथर किंग जूनियर ने 1960 के दशक में जो कहा था, वह आज भी प्रासंगिक है। किंग ने दंगों को ‘आत्मघाती’ बताया था, लेकिन यह भी कहा था कि ‘दंगे उनकी भाषा है, जिनकी बात सुनी नहीं गई।’ और वह क्या है जिसे अमेरिका सुन नहीं पाया?

वह यह सुनने में असफल रहा कि नीग्रो गरीबों का कष्ट पिछले कुछ वर्षों में बढ़ता ही जा रहा है। वह यह नहीं सुन पाया कि आजादी और न्याय के वादे पूरे नहीं हुए हैं। वह यह सुनने में असफल रहा कि श्वेत समाज के बड़े हिस्से को तनावमुक्ति और यथास्थिति की ज्यादा चिंता है, न्याय, समानता और मानवता की नहीं।

और इसलिए वास्तविक अर्थों में अमेरिका की दंगों वाली गर्मी के पीछे अमेरिका की देरी वाली सर्दियां हैं।’ किंग ने तर्क दिया था कि आर्थिक विकास और सामाजिक न्याय ही ‘दंगों की रोकथाम की पूरी गारंटी दे सकते हैं।’

यही कारण है कि अगर बाइडेन इसकी सही संरचना तैयार करें, इसे सही तरह से कहें, तो वे इस चुनाव में ‘कानून व्यवस्था’ के वास्तविक उम्मीदवार बन सकते हैं। क्योंकि वे पुलिस को हटाना नहीं चाहते हैं, उनमें सुधार लाना चाहते हैं। यही तरीका है जिससे आप सभी में कानून के प्रति सम्मान जगा सकते हैं।

बाइडेन जानते हैं कि टिकाऊ कानून व्यवस्था वही राष्ट्रपति दे सकता है, जो एक स्वस्थ और न्यायपूर्ण समाज का निर्माण कर सकता है। वह राष्ट्रपति नहीं, जो सोचता है कि उसके लिए राजनीतिक रूप से यह ‘बेहतर’ होगा कि समाज बंटा रहे।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)



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थाॅमस एल. फ्रीडमैन, तीन बार पुलित्ज़र अवॉर्ड विजेता एवं ‘द न्यूयॉर्क टाइम्स’ में नियमित स्तंभकार


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