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Dainik Bhaskar

17 मार्च से बंद असम के महाशक्तिपीठ कामाख्या मंदिर के दरवाजे 24 सितंबर से भक्तों के लिए खुल रहे हैं। मंदिर ट्रस्ट ने इसके लिए तैयारी शुरू कर दी है। मंदिर में दर्शन के लिए काफी सख्त गाइड लाइंस तय की गई हैं। गुवाहाटी में इस समय कोरोना के काफी केस निकल रहे हैं लेकिन मंदिर खोलने की मांग भी काफी समय से चल रही है।

पहले ट्रस्ट ने प्रस्ताव बनाया था कि मंदिर में केवल परिक्रमा के लिए लोगों को प्रवेश दिया जाए। 24 सितंबर से मंदिर में पूरे दिन में करीब 500 लोगों को प्रवेश मिलेगा। मंदिर में कोई भी व्यक्ति 15 मिनट से ज्यादा नहीं रह पाएगा। मंदिर ट्रस्ट ने सरकार द्वारा तय गाइड लाइन के मुताबिक मंदिर खोलने की पूरी तैयारी कर ली है।

मंदिर ट्रस्ट के मुताबिक, लॉकडाउन से पहले 1500 से 2000 लोग रोज दर्शन करने आ रहे थे। त्योहारों के सीजन में 20 से 25 लाख लोग भी आते हैं। खासतौर पर अंबुवाची उत्सव, जो जून महीने में होता है, इस दौरान मंदिर में भक्तों की संख्या काफी ज्यादा रहती है।

ये रहेंगे मंदिर में प्रवेश के नियम

  • मंदिर की वेबासाइट से दर्शन के कम से कम एक दिन पहले ऑनलाइन बुकिंग होगी।
  • मंदिर की ओर से दर्शन के लिए तय समय दिया जाएगा।
  • एक बार में मंदिर के भीतर सौ लोगों से ज्यादा को प्रवेश नहीं मिलेगा।
  • दर्शन के लिए आपकी कोरोना रिपोर्ट नेगेटिव होनी चाहिए।
  • मंदिर में कोई भी भक्त 15 मिनट से ज्यादा देर नहीं ठहर सकेगा।
  • किसी भी विशेष पूजा आदि में बाहरी लोग शामिल नहीं होंगे।
  • मंदिर को हर दो घंटे में सैनेटाइज किया जाएगा।
  • मंदिर में आने वाले लोगों को रैपिड एंटीजन टेस्ट भी होगा। इसके लिए एक मेडिकल टीम मंदिर में तैनात रहेगी।

लॉकडाउन में मंदिर को भारी नुकसान

लॉकडाउन के दौरान मंदिर 17 मार्च को बंद कर दिया गया था। इसके कारण ट्रस्ट को खासा नुकसान उठाना पड़ा है। मंदिर में दान की आवक इस समय लगभग ना के बराबर ही है। पिछले 6 महीनों में मंदिर की आर्थिक स्थिति खासी प्रभावित हुई है।

हर साल जून में लगने वाला प्रसिद्ध अंबुवाची मेला भी नहीं लगा, इससे मंदिर को मिलने वाला दान लगभग शून्य हो गया है। मंदिर के सफाई कर्मचारियों को तो पूरी सैलेरी दी जा रही है, लेकिन जो स्टाफ घर पर है उसे सिर्फ 40 प्रतिशत सैलेरी ही दी जा रही है। मंदिर में करीब 250 कर्मचारी ही हैं।



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हर साल जून में लगने वाला प्रसिद्ध अंबुवाची मेला भी इस बार नहीं लगा, इससे मंदिर को मिलने वाला दान लगभग शून्य हो गया है।


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