Dainik Bhaskar
(शिवानी चतुर्वेदी) तमिलनाडु के पुडुककोटाई जिले का अथानाकोटाई गांव। यहां बच्चे ऑनलाइन पढ़ते हैं। इन्हें स्थानीय भाषा में तैयार किए रिकॉर्डेड वीडियो से पढ़ाया जाता है। यहां के किसान अपनी फसल की प्रोेसेसिंग कर बेचते हैं। यानी टमाटर या मूंगफली बेचने की जगह केचअप और मूंगफली का बटर बनाकर बेचते हैं। गांव में स्वच्छता की अलख जगाने के लिए प्रतियोगिताएं होती हैं।
गांव की महिलाएं घर-घर में कुटीर उद्योग चलाती हैं और शराबबंदी के लिए कैंपेन चलाती हैं। दरअसल अहमदाबाद की ग्लोबल नेटवर्क फर्म ने अमेरिका में रह रहे भारतीय की मदद से 19 राज्यों के 62 गांवों को स्मार्ट बनाने के लिए गोद लिया है। फर्म के सीईओ जगत शाह बताते हैं कि हमने 1000 दिन में गांवों को स्मार्ट बनाने का लक्ष्य रखा था। अगस्त 2017 में 5 हजार से कम आबादी वाले गांवों को गोद लिया।
जून 2018 में काम शुरू हो सका। तब से लेकर अब तक करीब 44 गांवों में 80% काम पूरा हो चुका है। एक गांव पर 10 लाख रुपए से लेकर 8 करोड़ रुपए का खर्च आया है। इस गांवों को गोद लेने के लिए एनआरआई को जोड़ने का आइडिया कैसे आया। इस पर शाह बताते हैं कि उन्होंने अपने बिजनेस के सिलसिले में अमेरिका के 35 शहरों का दौरा किया था।
करीब 1500 भारतीयों से मुलाकात हुई। मैंने महसूस किया कि ये लोग अपने गांव से काफी भावनात्मक जुड़ाव रखते हैं। जब मैंने गांवों को स्मार्ट बनाने का आइडिया रखा तो कई लोग आगे आए। उनकी टीम किस तरह काम करती है। इस पर शाह कहते हैं जो एनआरआई गांव को गोद लेता है, उसे तीन दिन के लिए गांव में रहना होता है।
हम पंचायत के लोगों के साथ मिलकर बच्चों, युवाओं, महिलाओं और बुजुर्गों से मिलते हैं। उनकी समस्याओं को नोट करते हैं। इन समस्याओं के समाधान के लिए कार्ययोजना बनाते हैं। इसे लागू करने के लिए गांव के युवाओं की टोली बनाते हैं। इन्हें कम्यूनिकेशन की ट्रेनिंग देते हैं ताकि ये लोग स्थानीय अधिकारियों के सामने अपनी बात बेहतर तरीके से रख सकें। इन्हें 10 हजार रुपए महीने वेतन भी दिया जाता है।
गांव के विकास के लिए सीएसआर फंडिंग, केंद्र-राज्य की योजनाओं, पंचायत फंड, सांसद और विधायक निधि से किया जाता है। हर तीन महीने में विकास कार्यों को मूल्यांकन किया जाता है। शाह बताते हैं कि समस्या का समाधान होने के बाद कुछ नए मुद्दे आ जाते हैं। हालांकि, उन्हें उम्मीद है कि गांव बदल जाएंगे और रोजगार के पर्याप्त अवसर मिलेंगे, पलायन भी रुकेगा।
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