Header Ads



Dainik Bhaskar

ये बात साल 1971 की है। तब प्रतापगढ़ जिले का एक लड़का वहाज खान सौ रुपए लेकर मुंबई आया था। वहाज ने अपने वालिद के साथ कानपुर में चमड़े की फैक्ट्री में काम किया था, इसलिए मुंबई आकर भी यही काम करने लगा। चार-पांच साल तक यहां-वहां काम करने के बाद कुछ पैसा जोड़ लिया और उसी से धारावी में 1200 रुपए में एक झोपड़ी खरीद ली।

उस समय धारावी में चमड़े का काम करने वाले गिने-चुने ही थे। वहाज ने सोचा जब मुझे काम आता है और थोड़े पैसे भी जुड़ गए हैं तो दूसरे की नौकरी करने के बजाए क्यों न खुद का काम शुरू करूं? फिर उन्होंने 35 हजार रुपए में जमीन खरीदकर खुद की फैक्ट्री शुरू की, जहां चमड़े के प्रोडक्ट्स बनाने का काम होता था।

शुरूआत में काम थोड़ा बहुत ही था, लेकिन धीरे-धीरे बढ़ते गया। आज कंपनी का सालाना टर्नओवर 15 करोड़ रुपए से ज्यादा है और दुनियाभर में उनकी कंपनी के लेदर प्रोडक्ट्स की डिमांड है। वो कहते हैं, मुझे बनाने में धारावी का बहुत बड़ा रोल है। लोग आज मेरे प्रोडक्ट्स को धारावी ब्रांड कहकर बुलाते हैं।

धारावी लाखों लोगों को रोजगार देता है। इसमें अधिकतर वर्कर यूपी, बिहार, गुजरात जैसे राज्यों से होते हैं।

यूं तो 500 एकड़ में फैला धारावी स्लम के तौर पर दुनियाभर में जाना जाता है, लेकिन यहां ऐसे हजारों वहाज खान हैं जो फर्श से अर्श तक पहुंचे हैं। धारावी स्मॉल स्केल इंडस्ट्री का हब है। यहां लेदर, गारमेंट्स, तेल-साबुन से लेकर वेस्ट रिसाइक्लिंग तक की यूनिट हैं।

मिट्टी के प्रोडक्ट्स बड़े लेवल पर बनाए जाते हैं, दिवाली के पहले तो यहां सैकड़ों घरों में दिए से लेकर मूर्ति तक तैयार होती है, जो मुंबई ही नहीं बल्कि पूरे महाराष्ट्र में बिकती है। 1 बिलियन डॉलर से ज्यादा का एक्सपोर्ट धारावी से होता है। दस लाख से ज्यादा लोग रहते हैं, जिनमें 50 से 60% मजदूर हैं।

15 हजार से ज्यादा ऐसी फैक्ट्रियां हैं, जो सिंगल रूम में चल रही हैं। यूपी, बिहार, गुजरात जैसे राज्यों से बड़ी संख्या में आने वाले कामगारों का मुंबई में पहला ठिकाना धारावी की है। ये लोग इन छोटी छोटी फैक्ट्रियों में ही काम करते हैं। यहीं रहते हैं। यहीं खाते-पीते हैं और साल में एक या दो बार अपने घर जाते हैं।

धारावी की गलियों के ये हाल हैं। यहीं हजारों फैक्ट्रियां चल रही हैं, जिनका सामान विदेशों तक पहुंच रहा है।

अभी धारावी में एक बार फिर कोरोना के मामले बढ़ रहे हैं, लेकिन यहां रहने वालों में उसकी फ्रिक नजर नहीं आती। वे पहले की तरह बिना मास्क के घूमते दिखाई देते हैं, लेकिन धारावी से चलने वाली फैक्ट्रियों की कमर जरूर कोरोना ने तोड़ दी। धारावी को जानने के लिए हम दो दिन यहां की गली-गली में घूमें।

हमारे साथी बने यहीं रहने वाले फोटोग्राफर रवि दिनाकरण। रवि एक तमिल अखबार के लिए फोटोग्राफी करते हैं और सालों से धारावी में ही रह रहे हैं। वे कहते हैं, यहां तमिल भी बहुत बड़ी संख्या में हैं, जो अधिकतर खाने-पीने के बिजनेस से जुड़े हुए हैं। तमिल महिलाएं घर में इडली-सांभर, वड़ा-सांभर तैयार करती हैं और उनके पति-लड़के यह सायन में बेचते हैं।

इस तरह से छोटी सी जगह में दस-दस, बारह-बारह वर्कर्स काम करते हैं।

खैर, हम अंदर गलियों में घुसे तो पाया कि धारावी में छोटे-छोटे कारखाने तो खूब हैं, लेकिन न यहां साफ-सफाई है और न ही ड्रेनेज का अच्छा सिस्टम है। जिन कारखानों में वर्कर्स काम करते हैं, उन्हीं में सो भी जाते हैं। कुछ कारखानों के हॉल का साइज बड़ा है तो कुछ दस बाय दस के कमरे में भी चल रहे हैं। कारखानों के सामने से ड्रेनेज लाइन निकली है, जो मलबे से भरी हुई रहती है।

इससे न सिर्फ कारखाने के अंदर तक बदबू आती है बल्कि मच्छर और दूसरे जीव-जंतु भी घूमते रहते हैं, लेकिन उससे यहां काम करने वालों को अब कोई फर्क नहीं पड़ता। वो कहते हैं, यहां सेठ रहने को भी देता है और काम तो मिल ही रहा है। बारिश के मौसम में तो ये लोग घुटने-घुटने पानी में भी काम करने को मजबूर हो जाते हैं।

खास बात ये है कि इन कारखानों में काम करने वाले धारावी के मजदूर कम हैं और यूपी-बिहार के ज्यादा हैं। धारावी के जो मजदूर हैं, वो अधिकतर दूसरे एरिया में मजदूरी करने जाते हैं या खुद ही खाने-पीने का सामान बेचते हैं। कुछ तेल-साबुन बनाते हैं।

कपड़ों से लेकर चमड़े तक का काम यहां होता है।। ये कारीगर चमड़े को फिनिश कर रहा है।

गोरखपुर के अरमान शेख जींस के कारखाने में काम करते हैं। सुबह दस से रात दस बजे तक काम करने के बाद वो कारखाने में ही सो जाते हैं। खाना कहां खाते हो? इस पर कहते हैं, पास में एक होटल है, धारावी के सब मजदूर वहीं खाना खाते हैं। वहां 500 रुपए में एक हफ्ते तक दोनों टाइम भरपेट खाना मिलता है। आपकी कमाई कितनी हो जाती है? इस पर बोले, कमा लेता हूं, दिन का 400-500 रुपए। लेकिन अभी तो बिल्कुल काम नहीं मिल रहा।

यहीं पर घूमते हुए हमें गारमेंट का कारखाना दिखा। अंदर कुछ लोग काम करते दिखे। कारखाना मालिक पप्पू भी मजदूरों के साथ ही काम में जुटे थे। बोले, पंद्रह साल से कारखाना चला रहा हूं। लेकिन जो कमर इस बार टूटी है, वो पहले कभी नहीं टूटी। न गाड़ी की ईएमआई चुका पा रहा हूं और न ही पूरे वर्कर्स को बुला पा रहा हूं, क्योंकि अभी तो जो हैं, उन्हीं के खाने के वांदे हैं।

माल बिक ही नहीं रहा। पहले पंद्रह लोग मेरे कारखाने पर काम करते थे। यहीं सोते थे। अभी सिर्फ तीन वर्कर हैं। धारावी में क्या-क्या बनता है? यह सवाल हमने पप्पू से किया तो बोले, सर यहां चिड़िया का दूध भी बनता है लेकिन अभी कुछ नहीं हो रहा।

कई व्यापारियों ने किराये पर ऐसे कमरे लिए हैं, जहां से काम कर रहे हैं। कहते हैं, लॉकडाउन ने हालत इतनी खराब कर दी कि अब कर्जे में दब गए हैं।

आगे बढ़ने पर मोहम्मद शाहिद का कारखाना नजर आया। वो नाइट सूट बनाने का काम करते हैं। इनके कारखाने में भी लॉकडाउन के पहले 22 वर्कर थे, लेकिन अभी दो आदमी ही हैं। प्रदीप सिंह बैग बनाने का काम करते हैं। पहले 12 लोग रखे थे, अभी तीन से काम चला रहे हैं।

प्रदीप कहते हैं, हम 50 रुपए से लेकर 500 रुपए तक के बैग बनाते हैं। यही बैग बाहर हजारों में भी बिकते हैं। वहाज खान कहते हैं पिछले छ माह में सौ रुपए की बौनी भी नहीं हुई।। पहले 50 वर्कर थे, अब सिर्फ दो-तीन आदमी हैं। अब लोकल का कुछ शुरू हो, बिजनेस बढ़े तब उनको बुलाऊं।

धारावी में बिजनेस करने वाले राकेश गौतम के मुताबिक, धारावी नेताओं के लिए सिर्फ वोटबैंक है। न यहां पर प्रॉपर रोड हैं, न ही प्रॉपर ड्रेनेज सिस्टम है। इलेक्ट्रिसिटी एक बड़ा इश्यू है। अभी लॉकडाउन था, इसके बावजूद फैक्ट्रियों में 50-50 हजार रुपए के बिल थमा दिए गए जबकि फैक्ट्रीज बंद थीं। यदि सरकार यहां पर थोड़ा भी सीरियस होकर डेवलपमेंट करे तो यह देश का सबसे बड़ा इंडस्ट्रियल हब बन सकता है।

ये भी पढ़ें

एशिया के सबसे बड़े स्लम से ग्राउंड रिपोर्ट:'धारावी मॉडल' की दुनियाभर में तारीफ हो रही थी, तो अचानक क्या हुआ कि यहां दोबारा कोरोना ब्लास्ट हो गया?

एक्सपोर्ट हब से रिपोर्ट:कोरोना से धारावी की बदनामी, 50 फीसदी दुकानें खाली हो गईं, मुंबई में इस दिवाली हो सकती है दीये की किल्लत

कोरोना से जंग:भागलपुर में धारावी मॉडल से होगा कोरोना कंट्रोल, ट्रेसिंग और ट्रैकिंग होगी, फिर ट्रीटमेंट से कोरोना को हराएंगे



आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
Dharavi Slum Largest Small Scale Industry


from Dainik Bhaskar https://ift.tt/3n2sSYe

No comments

If any suggestion about my Blog and Blog contented then Please message me..... I want to improve my Blog contented . Jay Hind ....

Powered by Blogger.