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Dainik Bhaskar

एक नामी न्यूज चैनल पर खबर चल रही है। सुशांत सिंह राजपूत की मौत की तफ्तीश में जुटे नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो ने भेजा इन अभिनेत्रियों को समन। फिर एक-एक कर स्क्रीन पर उनका नाम आता है। पीछे स्क्रीन पर उनकी तस्वीर और उनकी फिल्मों के वीडियो क्लिप्स।

दीपिका पादुकोण, जब एंकर दीपिका के फोन में घुसकर उसकी निजी चैट सार्वजनिक कर रहा है, पीछे पीले रंग की बिकनी में उनका वीडियो दिखाया जा रहा है। पर्दे पर खट से दृश्य बदलता है और अब वो गाढ़े हरे रंग के गाउन में नशे में धुत्त डांस फ्लोर पर नाच रही हैं। कुछ 30 सेकेंड में दृश्य फिर बदलता है। अब वो एक कार में चार लड़कों के साथ हैं। फिर एक फोटो आती है, जिसमें उन्होंने नीले रंग की बिकनी पहन रखी है।

फिर दूसरी फोटो, जिसमें चेहरे से ज्यादा फोकस उनकी छातियों और क्लीवेज पर है। फिर तीसरी फोटो, हॉट पैंट में, फिर एक कामुक वीडियो। इसमें से एक भी फोटो, एक भी वीडियो उनकी रोजमर्रा की जिंदगी का नहीं है। जींस-टॉप में एयरपोर्ट पर दिखती, बैडमिंटन खेलती, काम पर जाती, इंटरव्यू देती, अवॉर्ड लेती, भाषण देती दीपिका पादुकोण। हर वीडियो उनकी फिल्मों से लिया गया है, जिसमें वो कोई एक किरदार में हैं। वो खुद दीपिका पादुकोण नहीं हैं।

बैकग्राउंड में चल रही इन नंगी तस्वीरों के साथ एंकर गला फाड़-फाड़कर चिल्ला रहा है कि कैसे बॉलीवुड की औरतें नशे में डूबी हुई हैं। फिर एक-एक कर और भी नाम आते हैं और पीछे उनकी वैसी ही तस्वीरें और वीडियो। श्रद्धा कपूर, सारा अली खान, रकुल सिंह प्रीत। इन्हें चुनते हुए बस एक बात का पूरा एहतियात बरता गया है कि गलती से भी कोई तस्वीर पूरे कपड़ों में न हो।

मैं एक के बाद दूसरे वीडियो से गुजरती जा रही हूं। तभी वीडियो पॉज होता है और बीच में एक विज्ञापन आने लगता है। एक मर्द लिफ्ट में है। एक बुजुर्ग स्त्री भी साथ में है, आदमी अपने फ्लोर का बटन दबाता है। तभी लिफ्ट में एक गोरी, सुंदर, कमनीय देह वाली स्त्री घुसती है। उसकी पीठ खुली है। मर्द अचानक लिफ्ट के ढेर सारे बटन दबा देता है। विज्ञापन खत्म हो जाता है। स्क्रीन पर एक लाइन लिखकर आती है- मेन विल बी मेन।

विज्ञापन खत्म, खबर दोबारा शुरू हो चुकी है। एक बार फिर दीपिका उसी पीली बिकनी में पर्दे पर हैं। कैमरा चेहरे को छोड़ बाकी हर जगह फोकस है। एंकर का फोकस भी बिगड़ा नहीं है। वो हाथ हवा में झटकता है, आंखें चौड़ी करता है और चिल्लाता है- बॉलीवुड की नशेड़ी औरतें। बीच में एक जगह सुशांत सिंह राजपूत का भी नाम आता है और तुरंत स्क्रीन पर तस्वीर उभरती है- जींस-टीशर्ट में सौम्यता से मुस्कुराते सुशांत की, उसके तुरंत बाद गुलाबी बिकनी में रकुल सिंह प्रीत।

ये देखकर हमें क्या समझ आता है?
यही कि बॉलीवुड की औरतें नशे में डूबी हुई हैं। सिर्फ वही हैं, जो ड्रग्स लेती हैं, लड़के सब संस्कारी हैं, उनके फोन में कोई ऐसी चैट नहीं, जिसे सूंघता नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो उनके घर तक पहुंच जाए। जिसे पढ़कर संस्कारी देश के संस्कारी बेटों के चरित्र पर कोई आंच आए। जांच के दौरान जब गवाहों ने कहा कि सुशांत सिंह राजपूत ड्रग्स लेते थे तो जनता और मीडिया ने हेडलाइन चलाई- सुशांत को ड्रग्स देती थीं रिया चक्रवर्ती। राजा बेटा लेता नहीं था, डायन गर्लफ्रेंड देती थी।

और ऐसा नहीं है कि ये कहने वाले सब अजनबी ट्रोलर्स हैं। मेरे घर के वॉट्सऐप ग्रुप में मामा, चाचा, काका, मौसा, फूफा मीम्स भेज रहे हैं। अतरंगी कपड़ों में रणवीर सिंह की तस्वीरें हैं, नीचे अंग्रेजी में लिखा है- 'व्हैन योर वाइफ शॉप फॉर यू आफ्टर टेकिंग ड्रग्स। एक और मीम है, रणवीर सिंह ने एक बिखरे बालों वाली नशे में धुत्त लड़की को कंधे पर उठा रखा है। नीचे लिखा है- 'बीवी को एनसीबी के दफ्तर ले जाते रणवीर सिंह।'

नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (एनसीबी) ने शनिवार को दीपिका पादुकोण से साढ़े पांच घंटे, श्रद्धा कपूर से 6 घंटे और सारा अली खान से पांच घंटे पूछताछ की।

मेरी बहन ने फेसबुक पर एक पोस्टर शेयर किया है और लिखा है- 'दीपिका पादुकोण को जेल की सलाखों के पीछे देखना चाहते हैं तो इसे शेयर करें।' एक महीने पहले उसी बहन ने पोस्ट लिखकर देश के माता-पिताओं से गुजारिश की थी कि अपने बेटों को लिव इन वाली चुड़ैलों से कैसे बचाएं।

तो ऐसा नहीं है कि ये सब किसी और दुनिया में हो रहा है। ये मेरे घर में हो रहा है। ये आपके भी घर में हो रहा है। ये हमारे टीवी स्क्रीन पर हो रहा है। सब संस्कारी लड़के दूध में हॉरलिक्स में डालकर पी रहे हैं और बर्बाद लड़कियां नशे में धुत्त हैं। और इन सबके बीच लड़कों की कमजोरियों, गलतियों और दरिंदगी तक को हंसी में उड़ा देने वाले चुटकुले भी चल रहे हैं। टैगलाइन है- 'बॉयज विल भी बॉयज मेन विल बी मेन।

बेचारे लड़के ही तो हैं, लड़कों से गलती हो जाती है। वैसे अगर आपको याद हो तो नेताजी ने तो भरे मंच से कहा था रेप करने वाले लड़कों के लिए, 'लड़के हैं, गलती हो जाती है। अब एक सच्ची कहानी सुनाती हूं। ये सोचना आपका काम है कि अलग-अलग नजर आती इन सारी कहानियों के तार आपस में कैसे जुड़े हैं।

फेसबुक पर महिलाओं के एक क्लोज्ड ग्रुप में एक बार लेबनान के एक अमीर घर की लड़की ने अपनी कहानी लिखी थी। शादी के बाद उसे पता चला कि उसके पति का किसी और स्त्री के साथ अफेयर है। इस सदमे और तकलीफ के बीच ही पहले बच्चे का जन्म घर पर ही हुआ। जबकि उसे दिक्कत थी, लेकिन हॉस्पिटल नहीं ले गए।

बच्चा तो पैदा हुआ लेकिन गर्भाशय लटककर बाहर आ गया। फिर उसे ठीक करने के लिए एक ऑपरेशन कराया गया, लेकिन उसके बाद से उसके पेट के निचले हिस्से में दर्द रहने लगा। इतना कि सेक्स करना तकरीबन असंभव हो गया। पति उस दूसरी औरत को घर ले आया।

वो रोई-चीखी तो उसके सास-ससुर और यहां तक कि उसके मां-बाप ने भी कहा कि गलती तुम्हारी है। कमी तुझमें है। तुम पति को खुश नहीं रख पाई, वो डिप्रेशन और ड्रग्स की शिकार हो गई।14 साल बाद जब वो ये कहानी सुना रही थी तो डिप्रेशन, ड्रग्स, पति और ससुराल से आजाद होने और अपने पैरों पर खड़े होने के बाद।

उसकी कहानी के जवाब में दुनिया के और तमाम मुल्कों और शहरों की औरतों ने अपनी कहानी सुनाई और बताया कि कैसे वो भी अकेले ही जिम्मेदार ठहराई गई हैं मर्द की हर गलती की। रेप हुआ तो उनकी गलती, छेड़खानी हुई तो उनकी गलती, पति का अफेयर हुआ तो उनकी गलती, उन्हें मार पड़ी तो उनकी गलती, वो घर से निकाली गईं तो उनकी गलती।

प्रेग्नेंट हो गईं तो उनकी गलती और नहीं हो पा रही तो भी उनकी ही गलती। सुशांत सिंह राजपूत ने आत्महत्या की तो रिया चक्रवर्ती की गलती। बॉलीवुड में ड्रग्स चलता है तो वहां की सारी औरतों की गलती। सब गलती सिर्फ और सिर्फ औरतों की गलती। मर्द सारे पाक-साफ, पवित्र, महान, गंगाजल से नहाए, ईश्वर का अवतार।

दुनिया का इतिहास उठाकर देख लीजिए, अरबों पन्ने कम पड़ जाएं उस कहानी को कहने में कि जितनी बार मर्दों के सारे अपराधों का जिम्मेदार औरतों को ठहराया गया। सिर्फ इतना ही नहीं, कभी उनका गला काट दिया गया, कभी सरेआम फांसी पर टांगा गया।

इंग्लैंड की पहली महिला शासक क्वीन एलिजाबेथ प्रथम की मां एन्न बॉयल को भरे बाजार फांसी दी गई थी क्योंकि उन्होंने अपने पति से झूठ बोला था। अभी इतनी जगह और वक्त नहीं कि पूरी कहानी सुना सकूं। एक फिल्म है 'द अदर बॉयलन गर्ल।' ढूंढ़कर देख लीजिए ताकि कुछ देर दिल पर हाथ रखकर रो सकें, ये मेरे बचपन की घटना है।

इलाहाबाद के एक बड़े नामी लेखक की बेटी ने 16 साल की उम्र में फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली थी। मेरे अवचेतन में आज भी उसके मरने से ज्यादा वो डरावनी कहानियां जिंदा हैं, जो मैंने घर की औरतों और मर्दों के मुंह से सुनी थी। लड़की का चरित्र खराब था, वो प्रेग्नेंट हो गई थी।

घर के जिस लड़के ने उसकी कहानी सबसे ज्यादा चटखारे लेकर सुनाई, उसी ने बाद में एक दिन मौका पाकर मेरे सीने पर भी हाथ मारने की कोशिश की। हालांकि, ऐसा होने से न मैं बदनाम हुई, न गाली खाई, न मरी क्योंकि मैंने ये बात किसी को बताई ही नहीं।

औरतें चुप रहें तो सब ठीक रहता है। पर्दे में रहें, गाय बनकर खूंटे से बंधी रहें, मुंह न खोलें तो न चैनल पर गालियां पड़ती हैं, न नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो चैट खंगालता है, न सलाखों के पीछे डालता है। न दुनिया डायन कहती है, जेएनयू जाकर बताएंगी कि वो सिर्फ सुंदर ही नहीं है, राजनीतिक समझ भी रखती हैं तो कीमत तो चुकानी पड़ेगी न।

और ये सारी कीमतें औरतें अकेले चुकाती हैं, राजा बेटे पर कोई आंच नहीं आती। इतिहास की किताबें पढ़ते हुए ऐसा लगता था हमें कि बर्बर मध्ययुग का अंत हो चुका। जैसे कहा था फोबी वॉलर ब्रिज ने अपने कॉमेडी शो में कि 'पहले हॉर्नी औरतें फांसी पर चढ़ाई जाती थीं, अब उन्हें एम्मी दिया जाता है। लेकिन, ये अब भी मेरे देश का सच नहीं।

बस चार कदम बढ़े थे हम थोड़ा बेहतर, थोड़ा न्यायपूर्ण, थोड़ा मानवीय होने की ओर कि 40 कदम पीछे ढकेल दिए गए हैं। अगर इस देश का पॉपुलर मेन स्ट्रीम मीडिया, न्यायिक संस्थाएं, जांच एजेंसियां एक-एक कर सिर्फ औरतों को निशाना बना रही हैं और कोई इस पर सवाल भी नहीं कर रहा तो ये बात डराने वाली है। और हम औरतों को इस बात से और ज्यादा डर लग रहा है कि औरतों के लिए इतनी तेजी से डरावने होते जा रहे इस देश से मर्दों को डर नहीं लग रहा।

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