Dainik Bhaskar
वर्ल्ड हार्ट फेडरेशन हर साल 29 सितंबर को वर्ल्ड हार्ट डे मनाता है, ताकि लोगों को दिल की बीमारियों के बारे में जागरुक कर सके। 1999 में वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन के साथ मिलकर इसकी शुरुआत हुई थी। लेकिन, तब तय हुआ था कि सितंबर के आखिरी रविवार को वर्ल्ड हार्ट डे मनाया जाएगा। पहला वर्ल्ड हार्ट डे 24 सितंबर 2000 को मना था। 2011 तक यही सिलसिला चला।
मई 2012 में दुनियाभर के नेताओं ने तय किया कि नॉन-कम्युनिकेबल डिसीज की वजह से होने वाली मौतों को 2025 तक घटाकर 25% लाना है। इसमें भी आधी मौतें सिर्फ दिल के रोगों की वजह से होती है। ऐसे में वर्ल्ड हार्ट डे को मान्यता मिली और हर साल यह 29 सितंबर को मनाया जाने लगा।
इस कैम्पेन के जरिये वर्ल्ड हार्ट फेडरेशन सभी देशों और पृष्ठभूमि के लोगों को साथ लाता है और कार्डियोवस्कुलर रोगों से लड़ने के लिए जागरुकता फैलाने का काम करता है। दुनियाभर में दिल के रोग नॉन-कम्युनिकेबल डिसीज में सबसे ज्यादा घातक साबित हुए हैं।
हर साल करीब दो करोड़ लोगों की मौत दिल के रोगों की वजह से हो रही है। इसे अब लाइफस्टाइल से जुड़ी बीमारी माना जाता है, जिससे अपनी लाइफस्टाइल को सुधारकर बचा जा सकता है।
1954 में सर्न की स्थापना हुई
यूरोपीय परमाणु अनुसंधान संगठन यानी ‘सर्न’ की स्थापना 29 सितंबर 1954 को हुई थी। ‘सर्न’ एक फ्रेंच शब्द ‘कौंसिइल इरोपिन पाउर ला रिचरचे न्यूक्लियर’ है जिसका अंग्रेजी अर्थ है- यूरोपियन काउंसिल फॉर न्यूक्लियर रिसर्च। भारत कुछ साल पहले ही इसका हिस्सा बना है।
सर्न पार्टिकल फिजिक्स की सबसे बड़ी लैब है, जो फ्रांस एवं स्विट्जरलैंड की सीमा पर जेनेवा के उत्तरी-पश्चिमी क्षेत्र में है। सर्न में भारत समेत 22 सदस्य देश हैं। दुनिया के 70 देशों के सैकड़ों विश्वविद्यालयों से लगभग 8 हजार वैज्ञानिक और इंजीनियर इसमें काम करते हैं।
भले ही 2002 में भारत सर्न का सदस्य बना हो, 1960 से ही वह इसमें अपना योगदान देता आया है। यहां 10 साल की मेहनत के बाद दुनिया का सबसे बड़ा कोलाइडर यानी लार्ज हेड्रॉन कोलाइडर बनाया गया था। 4 जुलाई 2012 को इसी कोलाइडर में हिग्स बोसॉन खोजा गया था, जिसे गॉड पार्टिकल भी कहा जाता है।
इस महाप्रयोग में कोलाइडर से प्रोटॉन और लेड आयन के कण लाइट की स्पीड से टकराए तो प्राथमिक कण (god particle) पैदा हुआ था। वैज्ञानिकों का मानना है कि हमारा ब्रह्मांड बिग बैंग के बाद इन्हीं कणों से बना है।
एमएस एस्टोनिया डूबा: सदी का सबसे बड़ा हादसा
एस्टोनियाई ध्वज वाली रो-रो पैसेंजर फेरी एस्टोनिया 27 सितंबर 1994 को तल्लिन, एस्टोनिया से स्टॉकहोम (स्वीडन) के लिए निकला था। इस दौरान उस पर करीब 989 लोग सवार थे। उसमें 852 लोगों की मौत हो गई थी। इसे टाइटेनिक के बाद यूरोपीय जहाज के डूबने दूसरा सबसे बड़ा हादसा कहा जाता है। इसे शांतिकाल का सबसे बड़ा हादसा भी कहा जाता है।
इतिहास में आज को इन घटनाओं के लिए भी याद किया जाता है...
- 1650ः इंग्लैंड में पहले मैरिज ब्यूरो की शुरुआत हुई।
- 1789ः अमेरिका के युद्ध विभाग ने स्थाई सेना स्थापित की।
- 1836ः मद्रास चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री की स्थापना हुई।
- 1915ः टेलीफोन से पहला इंटर-कॉन्टिनेंटल मैसेज भेजा गया।
- 1927ः अमेरिका और मैक्सिको के बीच टेलीफोन सेवा की शुरुआत हुई।
- 1977ः सोवियत संघ ने स्पेस स्टेशन साल्युत-6 को पृथ्वी की कक्ष में स्थापित किया।
- 2006ः विश्व की पहली महिला अंतरिक्ष पर्यटक ईरानी मूल की अमेरिकी नागरिक अनुशेह अंसारी पृथ्वी पर सकुशल लौटी।
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