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हिन्दू कैलेंडर के मुताबिक आश्विन महीने की दशमी तिथि और विजय मुहूर्त के संयोग पर विजयादशमी का पर्व मनाया जाएगा। इस संयोग की तारीख को लेकर असमंजस है। ज्योतिषियों के मुताबिक 25 अक्टूबर को दशमी तिथि के दौरान दिन में विजय मुहूर्त में श्रीराम, वनस्पति और शस्त्र पूजा करनी चाहिए। इसके बाद मूर्ति विसर्जन और शाम को रावण दहन की परंपरा है।

विजयादशमी को ज्योतिष में अबूझ मुहूर्त कहा गया है। यानी इस दिन प्रॉपर्टी, व्हीकल और हर तरह की खरीदारी की जा सकती है। इस दिन पूजा, खरीदारी और विसर्जन के लिए 3 मुहूर्त हैं। वहीं, इसके अगले दिन सूर्योदय के समय दशमी तिथि होने से 26 अक्टूबर को भी मूर्ति विसर्जन किया जा सकेगा। इस दिन सुबह करीब 11:30 तक दशमी तिथि होने से मूर्ति विसर्जन के लिए 2 मुहूर्त रहेंगे।

विजयादशमी के बारे में ज्योतिषियों का मत
इस बार दशहरा देश के कुछ हिस्सों में 25 को तो कुछ जगह 26 अक्टूबर को मनाया जा रहा है। वाराणसी, तिरुपति और उज्जैन के ज्योतिषाचार्यों का कहना है कि पंचांग गणना के मुताबिक 25 अक्टूबर को विजयादशमी पर्व मनाना चाहिए। विद्वानों का कहना है कि पंजाब, मुंबई और राजस्थान के भी बड़े पंचांगों में दशहरा 25 अक्टूबर को बताया गया है। क्योंकि इस दिन दशमी तिथि में अपराह्न काल और विजय मुहूर्त का संयोग बन रहा है। इसके अगले दिन यानी 26 अक्टूबर को सूर्योदय के समय दशमी तिथि होने से इस दिन मूर्ति विसर्जन किया जा सकता है।

विजयादशमी के मुहूर्त - (25 अक्टूबर, रविवार)
1. दोपहर 1.30 से 2.50 तक (विसर्जन और खरीदारी मुहूर्त)
2. दोपहर 2.00 से 2.40 तक (खरीदारी, अपराजिता, शमी और शस्त्र पूजा मुहूर्त )
3. दोपहर 3.45 से शाम 4.15 तक (विसर्जन और खरीदारी मुहूर्त)

विसर्जन के मुहूर्त - (26 अक्टूबर, सोमवार)
1. सुबह 6.30 से 8.35 तक
2. सुबह 10.35 से 11.30 तक

रावण पुतला दहन की परंपरा
विष्णु धर्मोत्तर पुराण के मुताबिक विजयादशमी पर श्रीराम ने युद्ध के लिए यात्रा की शुरुआत की थी। विद्वानों का कहना है कि इस दिन धर्म की रक्षा के लिए श्रीराम ने शस्त्र पूजा की थी। इसके बाद रावण की प्रतिकृति यानी पुतला बनाया था। फिर विजय मुहूर्त में स्वर्ण शलाका से उसका भेदन किया था। यानी सोने की डंडी से उस पुतले को भेद कर युद्ध के लिए प्रस्थान किया था। विद्वानों के मुताबिक ऐसा करने से युद्ध में जीत मिलती है। माना जाता है कि तुलसीदास जी के समय से विजयादशमी के दिन रावण दहन की परंपरा शुरू हुई।

विजय प्रस्थान का प्रतीक
भगवान राम के समय से यह दिन विजय प्रस्थान का प्रतीक निश्चित है। भगवान राम ने रावण से युद्ध हेतु इसी दिन प्रस्थान किया था और कई दिनों बाद रावण से युद्ध के लिए इसी दिन को चुना। इसके बाद द्वापर युग में अर्जुन ने धृष्टद्युम्न के साथ गोरक्षा के लिए इसी दिन प्रस्थान किया था। वहीं मराठा रत्न शिवाजी ने भी औरंगजेब के विरुद्ध इसी दिन प्रस्थान करके हिन्दू धर्म की रक्षा की थी। भारतीय इतिहास में अनेक उदाहरण हैं, जब हिन्दू राजा इस दिन विजय-प्रस्थान करते थे। दशहरे का उत्सव शक्ति और शक्ति का समन्वय बताने वाला उत्सव है।

दशहरे का व्यावहारिक महत्व
अश्विन महीने के शुक्लपक्ष के शुरुआती 9 दिनों तक शक्ति पूजा की जाती है। यानी अपने अंदर की सकारात्मक ऊर्जा को पहचान कर देवी रूप में उसका पूजन किया जाता है। इन 9 दिनों तक शक्ति पूजा करने के बाद दसवें दिन शस्त्र पूजा की जाती है। यानी अच्छे कामों का संकल्प लिया जाता है। इसी दिन अपनी सकारात्मक शक्तियों से नकारात्मक शक्तियों पर जीत प्राप्त की जाती है यानी खुद की बुराई पर जीत हासिल करना ही विजय पर्व माना गया है।

भास्कर एक्सपर्ट पैनल :
डॉ. कामेश्वर उपाध्याय, राष्ट्रीय महासचिव, अखिल भारतीय विद्वत परिषद, बनारस
डॉ. कृष्णकुमार भार्गव, केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, तिरुपति
पं. गणेश मिश्र, असि. प्रो. दीनदयाल उपाध्याय कौशल केंद्र, संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय
पं. आनंद शंकर व्यास, पंचांगकर्ता, उज्जैन
डॉ. रामनारायण द्विवेदी, मंत्री, काशी विद्वत परिषद, बनारस
प्रो. गिरिजाशंकर शास्त्री, ज्योतिष विभाग, काशी हिंदू विश्व विद्यालय



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