Header Ads



Dainik Bhaskar

67 साल के कमलानंद मंडल भाजपा के कट्टर समर्थक हैं। उनके बेटे ने जब उन्हें प्रधानमंत्री मोदी की तस्वीर वाली सफेद टी-शर्ट लाकर दी थी तो वे बेहद खुश हुए थे। लेकिन इन दिनों वे इसी टी-शर्ट को उल्टा पहनकर बिहार चुनावों में भाजपा के प्रति अपना विरोध दर्ज कर रहे हैं।

कमलानंद कहते हैं, ‘जिस विधायक ने हमारे लिए एक पैसे का काम नहीं किया, भाजपा ने उसी को दोबारा टिकट दे दिया। 2017 की बाढ़ के बाद से हमारा जीना बेहाल हो गया है। हमने कई बार अपने विधायक से गुहार लगाई लेकिन उसने हमारी समस्या पर कोई ध्यान नहीं दिया। इस बार हम उसे किसी भी हाल में नहीं जीतने देंगे।’

कमलानंद मंडल अररिया जिले की फारबिसगंज विधानसभा में रहते हैं। जिस विधायक के प्रति वे अपनी नाराजगी जता रहे हैं, उनका नाम विद्यासागर केसरी है। फारबिसगंज से सिटिंग विधायक विद्यासागर केसरी को भाजपा ने इस बार दोबारा टिकट दिया है और इसी का गुस्सा कमलानंद मंडल और उनके गांव के अधिकतर लोगों में है।

भारत-नेपाल सीमा के पास बसे उनके गांव का नाम नया टोला है। भागकोहलिया पंचायत का यह गांव 2017 में आई बाढ़ से बुरी तरह प्रभावित हुआ था। परमान नदी का तटबंध टूट जाने के चलते उस साल इस इलाके में भारी नुकसान हुआ था। स्थानीय लोगों की शिकायत है कि वह तटबंध 2017 के बाद से कभी बनवाया ही नहीं गया जिसके चलते अब हर साल कम से कम 7-8 बार गांव में बाढ़ आने लगी है।

कमलानंद मंडल भाजपा के कट्टर समर्थक हैं, लेकिन स्थानीय भाजपा के विधायक के काम से नाराज हैं।

यह इलाका कोसी-सीमांचल क्षेत्र में आता है। ‘बिहार का शोक’ कही जाने वाली कोसी नदी के साथ ही नेपाल से भारत में दाखिल होने वाली कई दूसरी नदियां भी यहां हर साल तबाही लेकर आती हैं। परमान ऐसी ही एक नदी है जिसका दंश हजारों परिवार हर साल झेलते हैं।

इसी गांव के रहने वाले महानंद मंडल बताते हैं, ‘2017 में जो तटबंध टूटा था उसके चलते सिर्फ हमारे एक प्रखंड की ही 16 पंचायतें प्रभावित हुई हैं। औसतन हर प्रखंड के पांच-छह गांव इससे प्रभावित हुए हैं और हर गांव में लगभग दो सौ परिवार हैं। 2017 के बाद से हमारी कोई भी फसल पनप नहीं सकी है। महीनों तक खेतों में पानी भरा रहता है। इस साल भी अब तक आठ बार हमारे गांव में बाढ़ आ चुकी है।’

इन गांवों में बाढ़ तो हर साल आती है लेकिन मुआवजे के नाम पर इन लोगों को एक पैसा भी नहीं दिया जाता। गोकुल कुमार मंडल कहते हैं, ‘मुआवजा सिर्फ 2017 में मिला था वो भी सिर्फ छह-छह हजार रुपए। उसके बाद से बाढ़ तो हर साल आती है लेकिन मुआवजा कभी नहीं आता। पटना की सड़कों में आधा फुट भी पानी भरता है तो सब जगह चर्चा होने लगती है, लेकिन हमारे खेत और फसल महीनों पानी में डूबे रहते हैं तो कोई पूछने तक नहीं आता।’

लगातार आने वाली बाढ़ के चलते इस इलाके में खेती बेहद मुश्किल हो चली है। इस कारण इस क्षेत्र से पलायन और भी तेजी से होने लगा है। नया टोला गांव की ही बात करें तो पूरे गांव में एक भी युवा नजर नहीं आता। गांव के अधिकतर जवान लड़के पंजाब की अनाज मंडियों में जाकर मजदूरी करते हैं।

भारत-नेपाल सीमा के पास बसे उनके गांव का नाम नया टोला है। भागकोहलिया पंचायत का यह गांव 2017 में आई बाढ़ से बुरी तरह प्रभावित हुआ था।

करीब दस दिन पहले ही कमलानंद मंडल का बेटा गांव के 25 लड़कों के साथ मजदूरी करने पंजाब गया है। एक ‘पिक-अप’ गाड़ी में भरकर ये सभी लड़के अररिया से पंजाब की 1800 किलोमीटर की यात्रा पर ठीक चुनाव से पहले निकल गए क्योंकि परिवार का पेट पालना वोट डालने से ज्यादा जरूरी काम है।

गांव में अब सिर्फ बुजुर्ग, महिलाएं और अधेड़ उम्र के मर्द ही बचे हैं। यही लोग मिलकर खेती करते हैं और पूरे साल में मुश्किल से जो एक मात्र फसल ये उपजा लेते हैं, उसका भी सही दाम इन लोगों को नहीं मिल पाता। महानंद मंडल बताते हैं कि इस साल उन्होंने 40 क्विंटल मक्की उपजाई थी। मक्की पर न्यूनतम समर्थन मूल्य करीब 1800 रुपए तय हुआ था लेकिन बाजार में कोई भी यह दाम देने को तैयार नहीं हुआ।

वे कहते हैं, ‘मैंने दो महीने तक मक्की अपने घर पर रखी और अच्छे दाम मिलने का इंतजार किया। लेकिन, फिर मक्की में सुंडी (कीड़ा) लगने लगी तो मुझे हजार रुपए प्रति क्विंटल के दाम पर ही मक्की बेचनी पड़ी। ऐसे में हमारे बच्चे मजदूरी करने बाहर नहीं जाएंगे तो क्या करेंगे। इस इलाके में अब खेती से पेट भरना मुमकिन नहीं रह गया है।’

2017 की बाढ़ के बाद से भागकोहलिया पंचायत के कई गांवों पर लगातार खतरा बना रहता है। उस बाढ़ के दौरान परमान नदी के पीपडा घाट पर बना तटबंध टूट गया था जो आज तक ठीक नहीं करवाया गया है। इसके चलते नदी का जलस्तर थोड़ा भी बढ़ता है तो इन गांवों में बाढ़ जैसी स्थिति बन पड़ती है।

2017 की बाढ़ के दौरान परमान नदी के पीपडा घाट पर बना तटबंध टूट गया था, जो आज तक ठीक नहीं करवाया गया है।

गोकुल मंडल कहते हैं, ‘तटबंध अगर ठीक नहीं किया गया तो शायद आने वाले कुछ सालों में परमान नदी की दिशा हमेशा के लिए बदल जाए और नदी हमारे गांव से होकर ही बहने लगे। बथनाह से अररिया होकर निकलने वाली नहर के पूरब में जितने भी गांव हैं, उन सब पर अब यही खतरा बन गया है। विधायक अगर सिर्फ वो तटबंध भी बनवा देते तो कम से कम हमारे मुंह से दाना तो न छिनता।’

गोकुल मंडल यह भी बताते हैं कि सिर्फ उनके गांव ने ही नहीं बल्कि उनके पूरे समाज ने इस बार भाजपा के प्रत्याशी विद्यासागर केसरी को हराने की ठान ली है। वे कहते हैं, ‘इस सीट पर सबसे ज़्यादा मतदाता मंडल समुदाय के ही हैं। करीब सवा लाख वोट यहां मंडलों के हैं जो सालों से भाजपा को ही वोट देते रहे हैं। हमने मीटिंग करके ये तय किया है कि अगर भाजपा के वोट काटने के लिए हमें कोई मंडल प्रत्याशी मैदान में उतारने पड़े तो हम वो भी करेंगे, लेकिन इस बार विद्यासागर केसरी को जीतने नहीं देंगे।’

विद्यासागर केसरी के खिलाफ इस सीट से कांग्रेस के जाकिर अनवर चुनाव लड़ रहे हैं। वे एक बार पहले भी फारबिसगंज से बसपा के टिकट पर चुनाव जीत चुके हैं। मंडल समुदाय के बाद इस सीट पर सबसे बड़ा वोट बैंक मुस्लिम मतदाताओं का ही है। लेकिन, दिलचस्प है कि संख्याबल में सबसे मजबूत होने के बावजूद भी इस सीट से आज तक सिर्फ एक बार ही कोई मुस्लिम प्रत्याशी जीता है और सिर्फ एक बार ही कोई मंडल प्रत्याशी भी।

यह भी पढ़ें :

बिहार के शेरशाहबादी मुस्लिम : इनकी परंपराएं ऐसी हैं कि ज्यादातर लड़कियां ताउम्र कुंवारी रह जाती हैं, परिवार बेटी के लिए रिश्ता नहीं खोज सकते



आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
गांव में अब सिर्फ बुजुर्ग, महिलाएं और अधेड़ उम्र के मर्द ही बचे हैं। यही लोग मिलकर खेती करते हैं, अधिकतर जवान लड़के पंजाब की अनाज मंडियों में जाकर मजदूरी करते हैं।


from Dainik Bhaskar https://ift.tt/2Hb3X4d

No comments

If any suggestion about my Blog and Blog contented then Please message me..... I want to improve my Blog contented . Jay Hind ....

Powered by Blogger.