Dainik Bhaskar
47 साल के बलवीर सिंह गुड़गांव के एक होटल में नौकरी करते थे। वो ड्राइवर हैं, होटल की गाड़ियां चलाते थे। लॉकडाउन लगने के पहले ही 10 मार्च को होटल ने एक साथ 50 लोगों को निकाल दिया। इस लिस्ट में बलवीर सिंह का भी नाम था। उन्हें कहा गया कि कोरोना के चलते सब कामकाज बंद हो गया है। गेस्ट भी नहीं आ रहे, इसलिए अभी आपकी जरूरत नहीं है। जब काम होगा, तब बताएंगे।
बलवीर को 20 हजार रुपए सैलरी मिलती थी। उनके घर में दो बेटियां, एक बेटा और पत्नी हैं। नौकरी जाने के बाद बलवीर समझ नहीं पा रहे थे कि अब क्या करें। कुछ दिनों बाद लॉकडाउन लग गया और सबकुछ बंद हो गया। घर चलाने के बाद उन्होंने पीएफ में जमा पैसा निकाल लिया।
बलवीर कहते हैं- पीएफ का पैसा भी खत्म होने लगा। फिर लगा कि अब तो कुछ न कुछ करना ही होगा, वरना खाने की भी दिक्कत हो जाएगी। बलवीर ने 15 साल पहले ढाबा चलाया था। उनके मन में ख्याल आया कि खाने-पीने का ही कुछ काम शुरू करता हूं। लेकिन, इस बार वो गलती नहीं करूंगा, जो पहले की थी।
दरअसल, जब वो ढाबा चलाया करते थे, तब तंदूर के लिए एक लड़का रखा था। वो भाग गया तो काम भी बंद हो गया, क्योंकि बलवीर को तंदूर पर नहीं बना पाते थे। इस बार बलवीर ने सोचा कि ऐसा कुछ करूंगा, जो खुद ही कर सकूं, जिसमें किसी दूसरे पर डिपेंड न होना पड़े।
इस बार बलवीर ने राजमा-चावल, छोला, सोया चॉप, रायता तैयार कर बेचने का प्लान बनाया। लेकिन, मुसीबत ये थी कि किराये की दुकान लेने के पैसे नहीं थे। उन्होंने अपनी स्कूटी पर लोहे का एक स्ट्रक्चर तैयार करवाया। ऐसा स्ट्रक्चर जिसमें दुकान का पूरा सामान आ सके। 15 से 20 हजार रुपए खर्च कर चूल्हा, स्ट्रक्चर, खाने का मटेरियल सब खरीद लाए। 20 अगस्त से काम भी शुरू कर दिया।
कहते हैं- जनकपुर सब्जी मंडी के सामने अच्छी भीड़ होती है इसलिए मैं वहीं खड़ा हुआ। लेकिन, शुरू के दो दिन कुछ रिस्पॉन्स ही नहीं मिला। मैं 60-70 ग्राहकों के हिसाब से खाना तैयार करके ले जाता था, लेकिन 15-20 ग्राहक ही मिलते थे इसलिए तीसरे दिन मीराबाग पेट्रोल पंप के सामने खड़ा हुआ। यहां सीएनजी पेट्रोल पंप है, मेन रोड है। मैंने अंदाजा लगाया कि ग्राहक अच्छे मिल जाएंगे। हुआ भी यही। तीसरे दिन उनका पूरा मटेरियल बिक गया।
बलवीर कहते हैं कि धंधा करते हुए करीब दो माह हो चुके हैं। सौ से ज्यादा ग्राहक फिक्स हो चुके हैं। जो हर रोज आते ही हैं। बलवीर 20 रुपए, 40 रुपए और 50 रुपए प्लेट के हिसाब से राजमा-चावल, छोला-चावल देते हैं। वो बोलते हैं कि मैंने यह समझा कि सस्ती चीजें लोग खा लेते हैं। थोड़ी बहुत भूख लगी हो तो 20 रुपए प्लेट में आदमी खा ही लेता है। कुछ की मजबूरी होती है तो कुछ शौक से खाते हैं।
बलवीर कहते हैं कि मैंने ज्यादा कीमत इसीलिए नहीं रखी है। हर रोज सुबह 6 बजे उठ जाता हूं और 10 बजे तक खाना तैयार करना होता है। मंडी से सब्जियां भी खुद ही खरीद कर लाता हूं। 12 से शाम 5 तक दुकान पर रहते हैं। बलवीर अब नौकरी करना नहीं चाहते। कहते हैं- दो महीने में लोगों का बहुत प्यार मिला। हर कोई मुझे जानने लगा। ग्राहक भी बढ़ रहे हैं इसलिए अब इसी काम को बढ़ाऊंगा।
अभी कितना कमा रहे हैं? इस सवाल पर बोले- अभी तो जो पैसा आ रहा है, उससे दूसरी चीजें ही खरीदता जा रहा हूं, जिनकी जरूरत है। फिर भी बचत हो रही है। 20 हजार तक आ जाता है, लेकिन नया काम है इसलिए दूसरी चीजों में पैसा लगाना भी पड़ रहा है।
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