Dainik Bhaskar
नोटबंदी के बाद भारत में पेमेंट्स करने और लेने के तरीके ही बदल गए हैं। जो चेक ट्रांजेक्शन के लिए किसी जमाने में एक महत्वपूर्ण दस्तावेज होता था, आज उतना काम का नहीं रहा। यह बात खुद RBI के डेटा से सामने आई है। पेपर क्लियरिंग या चेक से होने वाली क्लियरिंग वित्त वर्ष 2019-20 में घटकर वॉल्यूम का सिर्फ 2.9% और वैल्यू का सिर्फ 20.08% रह गई है।
वित्त वर्ष 2016 में रिजर्व बैंक ने डिजिटल पेमेंट्स को बढ़ावा देने के लिए आक्रामक तरीके से पुश किया था और जब नोटबंदी हुई तो वॉल्यूम में चेक्स की हिस्सेदारी 15.81% हो गई थी। कुल रिटेल पेमेंट्स में 46.08% हिस्सेदारी चेक की होती थी। डिजिटाइजेशन के लिए की जा रही कोशिशें पेपर क्लियरिंग को कम करने में काफी हद तक कामयाब रही है।
सिर्फ वॉल्यूम ही नहीं, वैल्यू भी कम हुई
पिछले पांच वर्षों में चेक पेमेंट्स के सिर्फ वॉल्यूम ही नहीं बल्कि वैल्यू में भी कमी आई है। वित्त वर्ष 2015-16 में कुल पेमेंट्स में चेक से होने वाले भुगतान की हिस्सेदारी होती थी 15.81 प्रतिशत, जो 2019-20 में घटकर रह गई सिर्फ 2.95 प्रतिशत। इसी तरह वैल्यू देखें तो 2015-16 में ट्रांजेक्शन की कुल राशि का पेमेंट 46.08% चेक से हुआ, वहीं अब यह वैल्यू भी घटकर 20% रह गई है।
डिजिटल पेमेंट्स में हर साल 55.1% की बढ़ोतरी
वित्त वर्ष 2015-16 और 2019-20 के बीच डिजिटल पेमेंट्स में भी सालाना 55.1% की तेजी आई। वित्त वर्ष 2015-16 में 593.61 करोड़ लेन-देन डिजिटल हुए थे, जो 2019-20 में बढ़कर 3,434.56 करोड़ हो गए। यदि राशि देखें तो यह बढ़ोतरी भी करीब दोगुनी होकर 920.38 लाख करोड़ रुपए से 1,623.05 लाख करोड़ रुपए हो गई है। यानी हर 15.2% की बढ़ोतरी।
लॉकडाउन में डिजिटल पेमेंट कई गुना बढ़ा
महामारी और लॉकडाउन के प्रतिबंधों को देखते हुए डिजिटल पेमेंट्स का वॉल्यूम कई गुना बढ़ गया है, वहीं महामारी में सबकी स्थिति को देखकर वैल्यू में गिरावट आ सकती है। वैसे, NEFT, RTGS और ECS पेमेंट्स के जरिए भी सरकार ने डिजिटल पेमेंट्स को बढ़ाने पर फोकस किया है।
यूपीआई-बेस्ड पेमेंट्स के साथ-साथ ऐप-बेस्ड पेमेंट्स ने भी अपनी पूरी ताकत लगाई है और पेमेंट्स सिस्टम में बढ़ोतरी को देखते हुए यह भी तेजी से बढ़े हैं। नॉन-बैंक कंपनियों की इंट्री और कस्टमर बिहेवियर में कैश से डिजिटल पेमेंट्स की ओर आ रहा बदलाव भी इसे सपोर्ट कर रहा है। कस्टमर बिहेवियर में किस कदर बदलाव आया है, यह इस बात से भी दिखता है कि वित्त वर्ष 2015-16 में डेबिट कार्ड का इस्तेमाल 20% था, जो अब बढ़कर 45% को पार कर गया है।
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