Dainik Bhaskar
जयपुर के अमित कुमार पारीक के पास कोई कामकाज नहीं था। दिनरात यही सोचते रहते थे कि आखिर ऐसा क्या करें, जिससे दो पैसे आना शुरू हों। पड़ोस में ही पवन पारीक की दुकान है। उनकी दुकान पर मसाले के पैकेट्स आया करते हैं। उन्हें देखकर अमित अक्सर पवन से कहता था कि, यार मैं इनकी मार्केटिंग का काम शुरू कर लेता हूं। वो यूट्यूब पर भी बिजनेस आइडिया तलाशते रहते थे। एक दिन उन्हें कामकाजी डॉटकॉम नाम के एक यूट्यूब चैनल पर मसाला पैकिंग के काम को करने का तरीका पता चला। अमित ने चैनल में दिए नंबर पर फोन लगाया तो उन्होंने अमित को कंसल्टेशन देने के साथ ही उसे जयपुर के दो लोगों के नंबर दिए, जो ब्लिस्टर पैकिंग मशीन की सप्लाई करते हैं।
अमित उनके पास पहुंच गए। उन्होंने बताया कि, यह मशीन 65 हजार रुपए की है। एक घंटे में सवा सौ से डेढ़ सौ पीस तैयार करती है। अब मुसीबत ये थी कि अमित के पास महज 10 हजार रुपए थे और मशीन 65 हजार की थी। उन्होंने अपने रिश्तेदारों और कुछ दोस्तों से पैसे उधार लिए और मशीन खरीद ली। मशीन के साथ कम्प्रेशर भी आया था। अब पैकिंग मटेरियल खरीदना था। इसमें ब्लिस्टर (जिसमें मटेरियरल भरा जाना था) और उसे पैक करने के लिए पेपर की जरूरत थी। अमित ने तय किया कि वो अपने बेटे नाम से पेपर प्रिंट करवाएंगे।
एक पेपर की प्रिंटिंग कॉस्ट 2 रुपए 55 पैसे पड़ रही थी। वहीं, एक ब्लिस्टर शीट की कीमत साढ़े चार रुपए थी। यहां भी तब मुसीबत आ गई, जब मैन्युफैक्चरर ने कहा कि कम से कम चार-चार हजार पीस का ऑर्डर देना होगा, तभी काम कर पाएंगे। इससे कम में मशीन चलाना महंगा पड़ता है। अमित ने फिर कुछ लोगों से पैसे की मदद मांगी। पूरा मटेरियल खरीदने में 30 से 35 हजार रुपए का खर्चा आया। इस तरह काम शुरू होने के पहले करीब 95 हजार रुपए लग गए।
अब पैकिंग मशीन और पेपर तो आ गया था, लेकिन उसमें जो मटेरियल भरना है, वो नहीं आया था। अमित ने लौंग, इलायची, सौंठ, काली मिर्च, बादाम, किशमिश जैसे ग्यारह प्रोडक्ट्स पैक करने का सोचा था। मटेरियल में अमित की मदद की उनके एक और पड़ोसी अग्रवाल जी ने। उन्होंने अमित को उधारी पर मटेरियल दिलवाया और यह भी बताया कि कितना भरना है, क्योंकि उनकी किराने की दुकान थी और उन्हें इसका अनुभव था। फिर अमित ने घर में ही पैकिंग का काम शुरू कर दिया। अमित के माता-पिता और बेटा भी उनके साथ में काम में हाथ जुटाते हैं। पत्नी घर का कामकाज करती हैं। मां ब्लिस्टर में मटेरियल भरती हैं। अमित मशीन में उसे पैक करते हैं। बेटा पैकेट एक जगह पर रखता है।
प्रोडक्ट बेचने मार्केट नहीं गए
खास बात ये थी कि वो कभी अपने प्रोडक्ट्स को बेचने के लिए मार्केट में नहीं गए, बल्कि उन्होंने आसपास यह बता दिया कि मेरे पास ये प्रोडक्ट्स तैयार हैं और किसी को मार्केटिंग करना हो तो बताना। शुरू में एक, दो सेल्समैन आए। उनसे यह बात हुई कि एक पैकेट पर आपको 10 रुपए का कमीशन मिलेगा। अमित कहते हैं मैंने पैकेट इस हिसाब से तैयार किया था कि पांच से सात रुपए का फायदा मुझे मिले और दस रुपए डोर टू डोर जाकर प्रोडक्ट बेचने वाले सेल्समैन के पास बचें। शुरू के दो-तीन महीने तक सौ-सवा सौ पैकेट ही बिका करते थे। फिर धीरे धीरे बढ़ना शुरू हुए। लॉकडाउन में तो बहुत काम मिला। पैकेट की संख्या चार सौ तक पहुंच गई थी। लेकिन, अभी कामकाज डाउन है। सौ से सवा सौ पैकेट ही बिक रहे हैं।
अमित कहते हैं, पिछले डेढ़ साल में औसत कमाई की बात करें तो हर माह 40 से 45 हजार रुपए की कमाई हुई है। अमित ने अब बर्तन साफ करने वाले स्क्रब की मशीन भी खरीद ली है, जो साढ़े तीन लाख रुपए की आई है। इसमें स्क्रब तैयार करेंगे। इसकी पैकिंग मसाले वाली मशीन से ही हो जाती है। कहते हैं, जिनसे पैसे लिए थे उनके पैसे वापस कर दिए। अब मेरे पास की खुद की मशीनें हैं। घर से काम करता हूं। स्क्रब का काम एक माह पहले ही शुरू हुआ है, अब मटेरियल मार्केट में जाना शुरू होगा, तब इसका रिस्पॉन्स पता चलेगा। कहते हैं, मसाला पैकिंग का काम मैं सुबह के दो घंटे में निपटा लेता हूं। एक घंटे में सौ से सवा सौ पैकेट तैयार हो जाते हैं। फिर सेल्समैन इन्हें घर से ही ले जाते हैं। बाकी टाइम बिजनेस को कैसे आगे बढ़ाना है, इसमें लगाता हूं।
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