Dainik Bhaskar
जीतन राम मांझी। बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री। हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष। फिलहाल अपनी पार्टी के अकेले विधायक। पहली बार जीतन राम मांझी कांग्रेस के टिकट पर 1980 में विधायक बने। इसके बाद बिहार की लगभग हर राजनीतिक पार्टी में रहे। विधायक रहे। मंत्री रहे। इस विधानसभा चुनाव में एनडीए का हिस्सा हैं और गया के इमामगंज विधानसभा सीट से चुनाव लड़ रहे हैं। इनसे हमारी मुलाकात सुबह 8 बजे उनके गया स्थित घर पर हुई।
सवाल: खुद को नरेंद्र मोदी का ‘हनुमान’ कहने वाले चिराग पासवान की वजह से आपको ज्यादा मेहनत करनी पड़ रही है क्या?
जवाब: कुछ मेहनत नहीं करनी पड़ रही है। बिहार की जनता सब समझती है। यही वजह है कि चिराग पासवान जी की असलियत जनता के सामने है। एक तरफ वो नरेंद्र मोदी जी की तारीफ करते हैं, लेकिन बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की आलोचना करते हैं। खुद पीएम कह चुके हैं कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ही रहेंगे। इसके बाद भी वो इनके पीछे पड़े हुए हैं।
इसलिए जनता जानती है कि चिराग पासवान को भाजपा का साथ नहीं मिलेगा। यही वजह है कि बिहार में जहां भी उनके कैंडिडेट लड़ रहे हैं, वहां उन्हें वोटकटवा कहा जा रहा है। वो हमारे लिए कोई चैलेंज नहीं हैं। आप देखिएगा कि शायद कोई सीट लोजपा को आवे।
सवाल: आपकी पार्टी सात सीटों पर चुनाव लड़ रही है। तीन सीट पर आप और आपके परिजन चुनाव लड़ रहे हैं। ऐसा क्यों? क्या आपकी पार्टी में दूसरे योग्य उम्मीदवार नहीं थे?
जवाब: देखिए, कमजोर वर्ग के लोगों पर उंगली उठाना बहुत आसान है। आज हिंदुस्तान में कौन ऐसी पार्टी है, जिसमें परिवार के लोग चुनाव नहीं लड़ रहे हैं। राजनीति में नहीं हैं। चाहे भाजपा हो। कांग्रेस हो या कोई और पार्टी। परिवारवाद के सबसे बड़े उदाहरण तो हमारे लालू प्रसाद जी हैं। इनका बेटा, बेटी और दामाद सहित पूरा परिवार इसी फ्रेम में है। जय प्रकाश यादव नाम के एक सांसद हैं। उनकी बहू चुनाव लड़ रही है। बेटा चुनाव लड़ रहा है तो यहां पर भाई-भतीजा वाद नहीं हुआ?
जहां तक हमारी बात है, हमने अपनी समधिन को टिकट दिया है, लेकिन पहली बार हमने नहीं दिया है। 2010 में नीतीश कुमार ने पहली बार टिकट दिया था। उन्होंने टिकट इसलिए दिया था कि वो एनजीओ से संबंधित है। श्री विधि से जो खेती होती है, उसकी वो विशेषज्ञ है। इस वजह से उन्हें पहली बार टिकट मिला था। तब नीतीश कुमार को मालूम भी नहीं था कि वो मेरी समधिन हैं।
मेरा दमाद मैकेनिकल इंजीनियर है। वो आराम से कहीं लाख-डेढ़ लाख कमा सकता था। मानवाधिकार के मामले में उसका काम है। वो पिछले 6 साल से है। अगर दमाद की वजह से ही टिकट देना होता तो 2015 में ना दे देते? वो पढ़ा-लिखा है। राजनीति करना चाह रहा था। उसके लिए जनता से मांग आ रही थी। अब अगर ऐसे पढ़े-लिखे लोग राजनीति में नहीं आएंगे, तो वही सतमा(सातवां) पास और नौमा(नौवां) पास लोग राजनीति में आते रहेंगे। इन सारी वजहों से उन्हें टिकट मिला है। खाली दामाद की वजह से मिला होता तो दामाद तो मेरे और हैं। दो बेटे भी हैं, लेकिन उनको कहां दे दिया?
सवाल: तेजस्वी यादव की रैली में खूब भीड़ जमा हो रही है। क्या महागठबंधन से निकलने का पछतावा हो रहा है?
जवाब: जहां तक भीड़ की बात है, तो भीड़ में कई लोग ऐसे होते हैं, जो केवल देखने-सुनने जाते हैं। ऐसा नहीं है कि वो सारे लोग उनके भोटरे (वोटर्स) हैं। हां, उनका समाज थोड़ा चुलबुला टाइप का है। 100-200 आदमी सामने रहता है और हो, हो, हो करता है। इससे ऐसा माहौल बनता है कि सब हमारे पक्ष में ही है। जबकि, ऐसा नहीं है।
सवाल: आप महा गठबंधन से एनडीए में आने की वजह क्या है?
जवाब: महा-गठबंधन में तो हम सत्ता पक्ष से आए थे। अगर लोभ होता, सत्ता के लाभ का या किसी तरह की बात करने का तो छोड़कर नहीं आना चाहिए था। लेकिन, एक मुद्दा था, जिस पर लालूजी ने अपना हित साधने के लिए हमसे गलत वायदा किया। अररिया और जहानाबाद लोकसभा के उप-चुनाव को जीतने के लिए उन्होंने मुझे अपनी तरफ किया था। हम न्यायपालिका में आरक्षण समान स्कूलिंग की लड़ाई लड़ रहे थे।
लालू यादव ने मुझे कहा- जीतन भाई, आप हमरी तरफ आ जा। ई हम मिलकर करब ना त एकर लड़ाई लड़ब। उनके इसी वायदे की वजह से मैं महा गठबंधन में शामिल हुआ था, लेकिन जब वहां गया तो खेल ही अलग था। लालू यादव अपना वायदा भूल गए। उन्होंने मेरा समर्थन नहीं किया। मेरी बात को आगे नहीं बढ़ाया। दूसरे वहां पैसा लेकर टिकट देने का काम होता है। ऊपर से उन्होंने कह दिया कि महा-गठबंधन में वही रहेगा, जो तेजस्वी की बात मानेगा तो हमको निकलना पड़ा।
सवाल: आप जदयू से बाहर निकले थे, क्योंकि नीतीश कुमार से आपके मतभेद थे। आज आप उन्हीं के साथ चुनाव लड़ रहे हैं, ऐसे में आपके कार्यकर्ता और पार्टी का क्या मतलब है?
जवाब: मेरा कार्यकर्ता जीतन राम मांझी को देखता है। वो कहीं नहीं जाएगा। हम जहां जाएंगे, वहां हमारा 10-11 प्रतिशत वोट जाएगा।
सवाल: बिहार में शराबबंदी एक बड़ा मुद्दा है। आपके नेता नीतीश कुमार इसे कामयाब मानते हैं, वहीं बड़ी संख्या में दलित और गरीब शिकायत करते हैं कि पुलिस पकड़ लेती है। आप कैसे देखते हैं?
जवाब: कोई भी कानून तभी सफल हो सकता है, जब उसे जनता का समर्थन मिले। डंडा से सब काम नहीं किया जा सकता है। शराबबंदी हम चाहते हैं, मेरे परिवार में शराब बनती थी। मेरे माता-पिता दोनों शराब पीते थे। हम आज तक नहीं पिए हैं। तो क्या शराबबंदी कानून की वजह से नहीं पिए हैं? नहीं। हम यही कहते हैं कि समाज में इसके लिए माहौल बनाना होगा।
केवल जेल में डाल देने से नहीं होगा। बड़े-बड़े आदमी नहीं पकड़ाते हैं। गरीब और मेहनती आदमी को पुलिस पकड़ लेती है। जीतने के बाद हम नीतीश कुमार से इस कानून में सुधार की मांग करेंगे। राज्य में दो लाख ऐसे लोग हैं, जो एक-एक घूंट पीने की वजह से जेल जाकर आ चुके हैं। 25 हजार ऐसे लोग हैं, जो जेल में बंद हैं और उनका जमानत करवाने वाला कोई नहीं है।
सवाल: चुनाव परिणाम आने के बाद भी क्या जीतन राम मांझी एनडीए का हिस्सा रहेंगे?
जवाब: अब ई पूछने का क्या मतलब है? ई हम क्यों कहें? परिस्थितियां आएंगी तो देखा जाएगा। अभी हम एनडीए के साथ हैं। ई कोई प्रश्न नहीं है। ई फालतू प्रश्न है। कौन कहां रहेगा, राजनीति में देख नहीं रहे हैं कि क्या हो रहा है। अगर वैसी कोई परिस्थिति आएगी तो हम देखेंगे…अभी नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बनाने के लिए हर कवायद करेंगे।
सवाल: अच्छा अगर रिजल्ट के बाद दूसरे पक्ष से कोई ऑफर मिला तो…?
जवाब: चलिए…अब ई सब फालतू बात मत कीजिए। जाइए अब बहुत हो गया।
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