Dainik Bhaskar
चिराग पासवान ने ‘सात निश्चय’ को लेकर नीतीश कुमार पर हमले की जो शुरुआत की थी, उसे रविवार को पूर्णाहुति दे दी। खींचतान की अटकलों के बीच आखिरकार जदयू-भाजपा गठबंधन यानी एनडीए की सीट शेयरिंग का फार्मूला भी मंगलवार को सामने आ गया। जदयू 122 और भाजपा 121 सीटों पर लड़ेगी। दोनों अपने-अपने खाते के सहयोगियों को इसी में एडजस्ट करेंगे।
चिराग के हमले और जदयू से अलगाव, पर भाजपा का दोस्त बने रहने के मुखर ऐलान के बाद कुछ असहज होते नीतीश को आखिर भाजपा ने मनाया और बात साथ में प्रेस कांफ्रेंस करने तक पहुंची। इस बीच, भाजपा कई चरणों में कभी नीतीश को मनाती, तो कभी सफाई देती दिखी। भाजपा प्रदेश अध्यक्ष को तो नीतीश को मनाने के लिए एक ऐसी प्रेस कांफ्रेंस करनी पड़ी, जिसमें वे 44 सेकंड में 5 बार नीतीश कुमार के नेतृत्व में आस्था जताते दिखे। यानी सब ने देखा कि ‘लोजपा की एक चाल’ ने भाजपा को फिलहाल तो परेशान कर ही दिया है। या शायद दिखा तो वह ऐसा ही रही है।
बिहार चुनाव 2020 में जमीन पर अब तक माहौल बना हो या नहीं, आम बिहारी मानस में यह सवाल जरूर गुलाटी मारने लगा था कि चुनाव बाद क्या होगा? कम से कम बीते 3-4 दिनों में ये सवाल ज्यादा उठा। बिहारी मानस मान रहा है कि अब जो भी होगा, कुछ नया होगा। चिराग से निकली लपट और भाजपा के मूक समर्थन में बस उसे उस कल की एक झलक दिखी है। इसे लेकर आम आदमी भी सोच रहा है और राजनीतिक विश्लेषक भी। अतीत में झांकें तो इस आने वाले कल की जमीन उसी खाद-पानी से तैयार हुई है, जिसका इस्तेमाल खुद नीतीश कुमार लम्बे समय से खुलकर करते आ रहे हैं।
चिराग ने जो बवंडर मचाया है, उसकी धुरी भी स्वाभाविक रूप से सरकार नहीं, नीतीश कुमार हैं। सरकार में तो ‘सब’ थे। सवाल सिर्फ नीतीश कुमार से हुआ है! सवाल सीधा उनके सात निश्चय पर उठा है। बनते-बिगड़ते गठबंधन और उससे उपजे भविष्य को देखने के लिए हमें ‘सात निश्चय’ बनाम ‘साथ निश्चय’ के सूत्र से इस पूरे घटनाक्रम को समझना होगा। यह अनायास नहीं था कि इसी सात निश्चय पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाते हुए चिराग ने मंगलवार को फिर ठीक उस वक्त ट्वीट किया, जब नीतीश पटना में प्रेस कॉन्फ्रेंस कर रहे थे।
अगली सरकार बनते ही सात निश्चय योजना में हुए भ्रष्टाचार की जाँच कर सभी दोषीयों को जेल भेजा जाएगा व लम्बित राशि का तुरंत भुगतान किया जाएगा ताकि अधूरे पड़े कार्य पुरे हों सके।
— युवा बिहारी चिराग पासवान (@iChiragPaswan) October 6, 2020
ताजा राजनीतिक उलटफेर इसी ‘सात’ और ‘साथ’ के इर्दगिर्द है। सात के चक्कर में साथ को भुला दिया गया और ये साथ वाली भूल बार-बार हुई। ‘सात निश्चय’ तो ठीक थे, लेकिन ‘साथ’ निभाने में हर कदम पर चूक हुई। ‘सात’ आप भले पकड़े रहे हों, ‘साथ’ को आपने कभी नहीं पकड़ा। पकड़ा भी तो उसमें वह मजबूती नहीं थी। पकड़ बार-बार फिसली। साथ की पहली शर्त ही मुलायमियत होती है। वह शर्त भी भुला दी गई। ‘मजबूत साथ’ में शर्त नहीं हुआ करती। शर्तों के साथ कोई 'साथ' मजबूत नहीं होता, यह भी नहीं याद रहा।
बिहार के बीते 15 साल का इतिहास गवाह है कि शर्तें हमेशा नीतीश कुमार की ही चलीं। पूर्व एनडीए के साथ वाली सरकार रही हो, लालू प्रसाद के साथ वाली सरकार या फिर 9 माह में किनारे फेंक दिए गये मांझी के साथ वाली सरकार। शर्तें तो इस बार भी नीतीश की ही रही हैं, भले ही कई बार उन्हें खामोशी अख्तियार करनी पड़ी हो। चली तो अभी तक नीतीश की ही। इस हद तक चली कि चुनावी माहौल बनने के पहले जून में ही अमित शाह को नीतीश के ही नेतृत्व में चुनाव लड़ने का ‘मन से अप्रिय’ फैसला लेना पड़ा।
आसान शब्दों में कहें तो ‘साथ’ को लेकर जो अनिश्चय कभी नीतीश ने पैदा किया था, आज वही खुद नीतीश पर ही मंडराने लगा है। भाजपा लाख सफाई दे, लेकिन चिराग के बयान और उसके पूर्व जारी पोस्टर पर उसने जो चुप्पी साधी, उसमें कई सवाल तो छिपे ही हैं। इन हालात ने कई नये सवाल उठाए हैं। पहले और अब में अंतर सिर्फ इतना ही आया है कि पहले आप साथ पर भरोसा नहीं करते थे, अब आपके सहयोगियों ने भी ‘साथ’ पर भरोसा करना छोड़ दिया है।
आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
from Dainik Bhaskar https://ift.tt/30AKH79
No comments
If any suggestion about my Blog and Blog contented then Please message me..... I want to improve my Blog contented . Jay Hind ....