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Dainik Bhaskar

‘मेरी बहन पुलिस फोर्स में भर्ती होना चाहती थी, लेकिन उसे जिंदा जला दिया गया। हमें इसका बिलकुल अंदाजा नहीं था कि आरोपी ऐसा भी कर सकते हैं। हमें तो पुलिसवालों ने भी नहीं बताया हमें तो उस आदमी से पता चला, जिसने उसे जिंदा जलते देखा था।’

यह कहते हुए रेप विक्टिम की छोटी बहन रो पड़ती है। साड़ी का पल्लू संभालते हुए पीड़िता की भाभी अपनी ननद को संभालते हुए कहती हैं कि ‘जब हमारे घर की बेटी मरी तो तमाम बड़े नेता आए, देश भर का मीडिया भी आया लेकिन अब मेरे 6 साल के बेटे का अपहरण हो गया है तो कोई पूछने नहीं आ रहा। पुलिस भी 14 दिन से ढूंढ नहीं पाई है। अब तो मैंने उसके जिंदा रहने की उम्मीद भी छोड़ दी है।’

छोटी बहन कहती है, ‘12 दिसंबर 2018 की मनहूस तारीख को मेरी बहन से शिवम और शुभम ने असलहे के बल पर गैंगरेप किया था। हमने जब इसकी शिकायत थाने में की तो पुलिसवालों ने नहीं सुनी। मजबूरी में कोर्ट के जरिए मुकदमा लिखा गया। सुनवाई शुरू हुई तो बहन खुद केस की पैरवी करने कोर्ट जाया करती थी। मामले में शिवम कोर्ट में पेश हो गया, लेकिन दबंग शुभम गांव में ही रहा। आए दिन हम लोगों को धमकाता था।'

बहन ने कहा- वह 5 दिसंबर 2019 का दिन था। रायबरेली कोर्ट में हमारे केस की सुनवाई थी। तय हुआ था कि मेरी बहन, मैं और भाई जाएंगे। सुबह-सुबह 5 किमी दूर स्टेशन से ट्रेन पकड़नी थी, लेकिन किसी वजह से हमारा जाना कैंसिल हो गया तो हम रुक गए और बहन तड़के निकल गई।

सुबह के 4.30 बज रहे होंगे, बहन गांव से थोड़ी दूर ही बाहर पहुंची थी कि दो दिन पहले जमानत पर छूट कर आये आरोपियों ने अपने तीन साथियों के साथ मिलकर उसे ज़िंदा जला दिया। मेरी बहन बहादुर थी, उसने जलते-जलते लोगों से मदद मांगी। लेकिन, उन्नाव से लखनऊ फिर दिल्ली जाकर उसने 7 दिसंबर 2019 की रात 11 बजे दम तोड़ दिया। आखिरी वक्त में वह यही कहती रही कि मुझे इंसाफ जरूर दिलाना।

सुरक्षा के लिए पुलिस दी और उनके रहते 6 साल का बेटा गायब हो गया, ऐसी सुरक्षा से क्या फायदा?

उन्नाव से लगभग 50 किमी दूर बिहार थाने से 8 किमी गांव में घुसते ही लगभग 100 से 150 मीटर दूरी पर दूर दुष्कर्म पीड़िता का बाएं हाथ पर फूस के छप्पर का घर बना है। अंदर थोड़ा बहुत कंस्ट्रक्शन का काम चल रहा है। रोजाना की तरह पिता और भाई खेतों पर जाने की तैयारी कर रहे हैं, लेकिन हमें देख रुक गए हैं। घर के सामने ही पुलिसकर्मी भी खड़े हुए हैं, जो परिवार की सुरक्षा में मुस्तैद है।

भाई से जब हमने बात की तो बोले, ‘साहब, सरकार ने हमारी सुरक्षा के लिए पुलिस दी थी। इनके रहते हुए हमारा 6 साल का बेटा गायब हो गया है। ऐसी सुरक्षा से क्या फायदा है? 2 अक्टूबर को हम सब खेत पर चले गए। घर के अंदर पत्नी थी और बच्चा बाहर खेल रहा था। जब हम सब लौटे तो बच्चा गायब था। गांव में, खेतों में सब जगह ढूंढ लिया, कहीं नहीं मिला। 14 दिन से रोज थाने पर जाते हैं, कहीं कोई सुनवाई नहीं होती। मुकदमा लिख कर काम खत्म हो गया है। अभी सुराग तक नहीं मिला है।’

घर के बाहर बने बरामदे में पिता वहीं बैठे हैं, जहां 10 महीने पहले उनकी बेटी की लाश रखी हुई थी। वे कहते हैं कि ‘मेरी बेटी पढ़ी लिखी थी। दुनियादारी जानती थी। अब वाे नहीं है। जिस दिन मर कर वह घर वापस आई, उसके बाद एक-एक करके सब यहां से चले गए। उसके बाद किसी ने पलट कर नहीं देखा कि हम कैसे हैं।

आए दिन आरोपी धमकी देते हैं, गाली-गलौज करते हैं। गांव में गिनती के वाल्मीकि समाज के घर हैं। दबंगों से हम सब डरते हैं इसलिए कोई हमारे साथ खुलकर खड़ा भी नहीं होता है। अब हमारा पोता गायब कर दिया गया। इन लोगों ने हमें डराने धमकाने के लिए उसे अगवा कर लिया है, लेकिन हम डरेंगे नहीं।’

छोटी बहन ने कहा कि ‘कोर्ट में केस पहुंच गया है, लेकिन कोरोना की वजह से सुनवाई नहीं हो पा रही है। अब ये सरकार को सोचना चाहिए कि हम लोगों को न्याय कैसे मिलेगा। सरकार ने परिवार के एक सदस्य को नौकरी देने को कहा था, वह भी नहीं दी। सरकार ने घर देने को कहा था, तो उन्नाव में एक कमरे का कांशीराम आवास दिया। अब आप ही बताइए कि 10 लोगों का परिवार कैसे रहेगा?

मैंने कई बार कहा कि हमें सीएम साहब से मिलवा दो, लेकिन नहीं मिलवाया। जब मैं खुद तीन महीने पहले सीएम आवास पर लखनऊ पहुंची तो मुझे पुलिस वाले थाने लेकर चले गए। रात में 10 बजे मुझे छोड़ा गया। उस समय प्रियंका गांधी, सपा के नेता और सरकार के मंत्री आए थे। तमाम लोग फोन नंबर देकर गए थे, लेकिन अब फोन करो तो नाम सुनते ही काट देते हैं। अब समझ नहीं आ रहा कि इंसाफ के लिए कहां जाएं।’

रेप विक्टिम के भाई कहते हैं कि ‘दस महीनों में बहुत कुछ बदल गया है। मैं दिल्ली में काम करता था, मुकदमेबाजी के चक्कर में मेरा काम छूट गया। अब कोई काम नहीं है। छोटी बहन सिलाई का काम करती थी, उसका भी काम छूट गया है। जो पैसे सरकार से मिले थे वो मुकदमे में और घर का खर्च चलाने में खर्च हो रहा है। अगर सरकार कोई नौकरी ही दे देती तो कम से कम जीवन-यापन में आसानी हो जाती।



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