Dainik Bhaskar
कश्मीर के लोगों को इस साल दोहरे लॉकडाउन की मार झेलनी पड़ी। एक पिछले साल आर्टिकल 370 के हटाने के बाद और फिर इस साल कोरोना के चलते। इस दौरान सबसे ज्यादा दिक्कत स्टूडेंट्स को हुई है। लगभग एक साल तक घाटी में न तो ठीक से पढ़ाई हो पाई और न ही हाई स्पीड इंटरनेट कनेक्टिविटी मिल पाई। ऊपर से लॉकडाउन में काम-धंधे बंद होने के बाद आर्थिक तंगी की मार भी झेलनी पड़ी। इन मुश्किल चुनौतियों के बाद भी घाटी के कई छात्रों ने इस बार नेशनल एलिजिबिलिटी कम एंट्रेंस टेस्ट (नीट) की परीक्षा में अपना परचम लहराया है।
कुंजर के बटपोरा गांव के रहने वाले जुड़वां भाई गौहर बशीर और शाकिर बशीर ने इस बार नीट एग्जाम पास किया है। गौहर को 720 अंकों में से 657 और शाकिर को 651 मार्क्स मिले हैं। इनके परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं है। पिता किराने की दुकान चलाते हैं। लॉकडाउन में आमदनी भी बंद हो गई थी। फिर भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और दोनों बच्चों को भरपूर हौसला दिया। दोनों की सफलता से परिवार ही नहीं, घाटी के लोगों में भी खुशी है। रिश्तेदार बधाई देने के लिए इनके घर आ रहे हैं।
गौहर कहते हैं कि उनके परिवार ने काफी सपोर्ट किया। किसी भी चीज की कमी नहीं होने दी। शाकिर का कहना है कि उनके पेरेंट्स ने बचपन से ही हार्ड वर्क करने की सीख दी। वो बताते हैं कि हम एक मिडल क्लास परिवार से थे और कभी-कभी फाइनेंशियल प्रॉब्लम्स होती थीं, लेकिन हमें हमेशा अपनी पढ़ाई पर ध्यान देने को कहा गया और बाकी परेशानियों से हमें दूर रखा।
उनके पिता बशीर अहमद बेहद खुश हैं कि उनके दोनों बेटों को अच्छे नंबर मिले हैं। वो कहते हैं, 'हमारे पास बहुत कुछ नहीं है। फिर भी हम चाहते थे कि बच्चे पढ़ाई करें और कुछ बेहतर करें। मैं अपने स्टोर से मुश्किल से 4,000 से 5,000 रु महीने का कमाता हूं। साथ ही मैं और मेरी पत्नी सड़कों पर भी कुछ काम करते हैं, ताकि इनके पढ़ाई के लिए खर्च निकाल सकें। मुझे खुशी है कि मेरे बेटों ने इतना अच्छा परफॉर्म किया। उन्होंने न केवल अपने माता-पिता को गर्व कराया, बल्कि पूरी घाटी को का मान बढ़ाया है।'
कैब ड्राइवर के बेटे ने बिना कोचिंग के नीट क्लियर किया
शोपियां के बोंगम के रहने वाले 24 साल के वकास इकबाल हाजी ने बिना किसी कोचिंग के नीट का एग्जाम क्लियर किया है। उन्होंने 720 अंकों में से 606 मार्क्स हासिल किए। वो एक कैब ड्राइवर के बेटे हैं। वकास के लिए ये आखिरी अटेंप्ट था, इसके बाद उनकी उम्र ज्यादा हो जाती। वकास सिविल इंजीनियरिंग में बीटेक कर चुके हैं। अभी वो एमटेक कर रहे हैं। उन्होंने गेट भी क्वालिफाई कर लिया है। इसके बाद भी उन्होंने मेडिकल के लिए कोशिश की और वो सफल भी हो गए।
वो बताते हैं- मां चाहती थी कि मैं डॉक्टर बनूं। उन्होंने एक दिन कहा था कि काश आप डॉक्टर होते। वो बात मेरे दिमाग में थी। जैसे ही कश्मीर में लॉकडाउन लगा और लोग घरों में बंद हो गए, स्कूल-कॉलेज, इंटरनेट सब बंद हो गए। उसी दौरान मैंने सोचा कि क्यों न इसका फायदा उठाया जाए। इसके बाद मैंने नीट की पढ़ाई शुरू कर दी।
वकास दो भाई-बहन हैं। वो बताते हैं कि उनके पिता ने आर्थिक दिक्कतों के बाद भी उनकी पढ़ाई में किसी तरह की कमी नहीं की।
वो कहते हैं, पेरेंट्स के चेहरे पर स्माइल मेरे लिए बहुत मायने रखती हैं। उनके लिए जितना भी त्याग करूं, कम है। यह पूछे जाने पर कि क्या उन्हें अपने फैसले पर पछतावा है, क्योंकि उन्होंने पहले ही अपना समय इंजीनियरिंग में लगाया था? इकबाल ने कहा, 'बिल्कुल नहीं।'
वो बताते हैं कि जो भी स्टूडेंट इसकी तैयारी कर रहे हैं, उन्हें रिजल्ट की चिंता नहीं करनी चाहिए। अपनी पढ़ाई पर फोकस करना चाहिए। जो लगातार मेहनत करेगा, उसे सफलता जरूर मिलेगी। इधर-उधर स्टडी मटेरियल के चक्कर में रहने से अच्छा है कि NCERT से तैयारी करें।
इकबाल बताते हैं कि कश्मीर में इंटरनेट बंद होने से मुझे पढ़ाई करने में काफी फायदा हुआ। मैंने इन पर वक्त जाया करने की बजाय पढ़ाई पर फोकस किया। वो कहते हैं कि 2011 से मैंने सोशल मीडिया यूज नहीं किया। अपडेट रहने के लिए मैं वॉट्सऐप का इस्तेमाल करता था।
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