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कोरोना के चलते इस बार अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में 7 करोड़ लोग पहले ही वोट डाल चुके हैं। यह 2016 में पड़े कुल वोट का 50% है। इन सबके बीच चुनाव को प्रभावित करने की कोशिशें शुरू हो गई हैं। राज्य सरकारें फाइनल वोटिंग से पहले उन जगहों से पोलिंग बूथ हटवा रही हैं, जहां उन्हें खुद की पार्टी के जीतने की संभावना कम दिखती है।
मतदाताओं को गलत मतपत्र भेजे
मतदाताओं को बड़ी संख्या में गलत मतपत्र भेजे जा रहे हैं। फर्जी बैलेट ड्रॉप बॉक्स लगाने की भी खबरें आई हैं। यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया के पॉलिटिकल साइंस के प्रोफेसर ए. शिक्लर बताते हैं कि आज के हालात में विदेशी ताकतों से ज्यादा खतरा देश में पनप रही अनुशासनहीनता से है। पूरी कोशिश हो रही है कि ज्यादा से ज्यादा लोग वोट न दे पाएं। वहीं एबसेंटी बैलट के कानून ऐसे हैं कि वे भी तकनीकी कारणों से खारिज किए जा सकते हैं। टेक्सॉस जैसे रिपब्लिकन राज्यों की सरकारों ने हर काउंटी में एक ही पोलिंग स्टेशन का कानून बनाया है। यह साफ करता है कि लोगों के वोट डालने के रास्ते में अड़चनें पैदा की जा रही हैं।
एक परेशानी यह भी
ये वोटर्स को दबाने, वोट देने से रोकने और प्रोसेस में रुकावट डालने जैसे कदम हैं। यहीं नहीं, ज्यादातर पोल में बाइडेन से पीछे चल रहे राष्ट्रपति ट्रम्प और उनकी रिपब्लिकन पार्टी चुनाव को फर्जी साबित करने में लगी है। नजदीकी मुकाबलों में हर वोट मायने रखता है। डाक से भेजे गए वोटों की गिनती करने में 1 से 2 हफ्ते लगते हैं। ट्रम्प इन मतपत्रों की गिनती को गैरकानूनी बता रहे हैं। चुनाव विशेषज्ञ इसे चुनाव में हस्तक्षेप का सबसे बड़ा उदाहरण बताते हैं।
विदेशी दखल: ईरान और रूस द्वारा भेजे मेल में ट्रम्प को हराने की अपील
21 अक्टूबर को अमेरिका के इंटेलीजेंस डायरेक्टर जॉन रैटक्लिफ ने कहा- रूस और ईरान ने अमेरिकी वोटर्स की लिस्ट चोरी कर ली है। वोटर्स को फर्जी वोट भेजकर डराया जा रहा कि वे ट्रम्प को वोट न दें। हालांकि इसके कोई सबूत नहीं हैं कि फर्जी ईमेल का वोटर्स पर क्या प्रभाव पड़ता है।
सुप्रीम कोर्ट ने 3 नवंबर के बाद डाक से मिलने वाले वोटों की गिनती रोकी
विस्कोंसिन की कोर्ट ने आदेश दिया था कि डाक से भेजे गए वोट 3 नवंबर के बाद भी मिलते हैं तो उनकी गिनती होगी। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी है। इससे राज्य के बचे 4 लाख वोटर्स में से 1 लाख वोट नहीं डाल सकेंगे। 2016 में ट्रम्प यहां 22,748 वोट से जीते थे।
प्रशासनः गलत मतपत्र भेजे और 21 हजार पोलिंग बूथ तक हटवा लिए
लोगों को गलत मतपत्र भेजे जा रहे हैं। न्यूयॉर्क शहर में ही 1 लाख लोगों को गलत मतपत्र मिले हैं। जिन पर उनके नाम और पते गलत थे। इससे वोटिंग में देरी हो रही है। यहीं नहीं विस्कॉन्सिन में 21 हजार पोलिंग स्टेशन 21 अक्टूबर तक हटा लिए गए थे। यहां गरीब और अश्वेत आबादी ज्यादा है।
रिपब्लिकन पार्टी ने खुद माना कि उसने फर्जी ड्राप बॉक्स लगवाए
डेमोक्रेटिक के गढ़ कैलिफोर्निया में रिपब्लिकन पार्टी ने माना कि उन्होंने सर्वाधिक आबादी वाले इस राज्य में आधिकारिक तौर पर डाले जा रहे वोटों को प्राप्त करने के लिए फर्जी बैलट ड्रॉप बॉक्स रखे थे। एक्सपर्ट के मुताबिक, यह कदम गैरकानूनी और धोखाधड़ी को बढ़ावा देने वाला है।
- इतिहास बताता है कि जब भी वोटर टर्नआउट बढ़ता है इससे रिपब्लिकन पार्टी को नुकसान होता है। इसलिए ट्रम्प और उनकी पार्टी हर मुमकिन कोशिश कर रही है कि कम से कम वोटिंग हो। विशेषज्ञ इसे चुनावी धांधली बता रहे हैं।
आयोग में कमिश्नर के 6 में 3 पद खाली, कार्रवाई के लिए चार जरूरी
अमेरिका में धांधली और विदेशी हस्तक्षेप के मामले में चुनाव आयोग कोई कार्रवाई नहीं कर सकता। यहां तक ट्रम्प के धांधली के आरोपों पर भी चुनाव आयोग उन्हें नोटिस तक नहीं भेज सकता। क्योंकि अमेरिकी चुनाव में आचार संहिता जैसी कोई व्यवस्था नहीं है। ये कहना है अमेरिका के केंद्रीय चुनाव आयोग के सबसे अनुभवी कमिश्नर एलेन विनट्राब का। विनट्राब ने चिंता जताई कि मौजूदा चुनाव में चुनाव आयोग की स्थिति दयनीय है, क्योंकि आयोग में कमिश्नर के 6 पदों में से 3 खाली हैं।
आयोग किसी मुद्दे पर कोई निर्णय ले सके, इसके लिए 4 कमिश्नर का होना जरूरी है। मतलब यह है कि अगर कोई चुनावी फंडिंग, धांधली को लेकर शिकायत दर्ज करता है तो आयोग तब तक कोई कार्रवाई नहीं कर सकता जब तक कोरम पूरा न हो जाए।
अमेरिका के केंद्रीय चुनाव आयोग (एफईसी) की जिम्मेदारी बस इतनी है कि वह चुनाव में सीधे तौर पर दिए गए चंदे कि निगरानी करे। मई 2020 तक प्रचार की फंडिंग से संबंधित 350 शिकायतें आयोग प्राप्त कर चुका है।
2016 में रूस ने चीफ ऑफ स्टाफ का मेल हैक कर दखलंदाजी की थी
2016 में रशियन सिक्योरिटी सर्विसेज के हैकरों ने व्हाइट हाउस के चीफ ऑफ स्टाफ और हिलेरी क्लिंटन के चुनावी कैंपेन के चेयरमैन जॉन पोडेस्टा का ईमेल हैक कर लिया था। इन हैकरों ने उनके मेल से 20 हजार पन्ने प्राप्त किए थे, जिन्हें विकीलीक्स ने चुनाव से पहले सार्वजनिक कर दिए थे। सोशल मीडिया पर भी विदेशी खुफिया एजेंसियों ने फर्जी खबरों की बाढ़ ला दी थी।
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