Dainik Bhaskar
पश्चिम बंगाल की दुर्गापूजा भी इस बार कोरोना की भेंट चढ़ गई है। हालात यह हैं कि जिन पंडालों पर करोड़ों रुपए खर्च होते थे, उनका खर्च इस साल 8-10 लाख पर आ गए है। ऐसा इसलिए, क्योंकि यहां बिजनेस घरानों से मिलने वाले चंदे में भारी कमी आई है। इससे पंडालों ने सीमित खर्च किया है। बंगाल के दुर्गा पूजा के इतिहास में यह पहली बार यह नजारा देखने को मिला, जब पंडालों में ना तो कोई खास तामझाम नहीं किया गया है और ना श्रद्धालुओं की लंबी कतारें हैं।
फोरम फॉर दुर्गोत्सव के मुताबिक, पांच दिनों तक चलने वाली कोलकाता की 100 बड़ी पूजा फेस्टिवल में करीब 4500 करोड़ रुपए का लेनदेन होता है। जबकि, पूरे पं. बंगाल में करीबन 15,000 करोड़ रुपए का लेन-देन होता है। वहीं, लाखों की संख्या में रोजगार देने वाली इस पूजा ने इस साल कई लोगों को बेरोजगार कर दिया है। टूर एंड ट्रैवल, फूड और गारमेंट्स इंडस्ट्री ठप होने के चलते इस साल केवल 30-40% को ही काम मिल पाया है।
कोलकाता में हर साल कुल 4500 कम्युनिटी पूजा होती है। इनमें 200 पूजा ऐसी हैं, जिनमें हर पूजा में 50 से ज्यादा लोगों को रोजगार मिलता है। 4300 ऐसे पूजा पंडाल हैं, जिनमें 20 से ज्यादा लोगों को रोजगार मिलता है। कुल मिलाकर एक लाख के करीब रोजगार पैदा होते हैं और 10 हजार अस्थाई रोजगार पैदा होते हैं। इनमें टैक्सी ड्राइवर, टूर गाइड्स आदि होते हैं।
कॉरपोरेट जगत से नहीं मिला ज्यादा सहयोग
बंगाल की दुर्गापूजा करीब 80% खर्च स्पॉन्सरशिप पर निर्भर रहता है। बाकी रकम इलाके से चंदा इकट्ठा करके और प्राइज मनी से जुटाई जाती है। इस साल कॉरपोरेट जगत से कुछ खास मदद नहीं मिल पाई है। कोरोना और लॉकडाउन के चलते लगभग सभी सेक्टर्स प्रभावित हुए हैं। हर साल कॉरपोरेट जगत से जितना फंड मिलता था, उसका केवल 25% ही फंड मिला। कंपनियों का मानना है कि कोरोना के चलते पहले ही वे नुकसान में हैं, ऊपर से महामारी में ज्यादातर लोग घूमने-फिरने से बच रहे हैं। ऐसे में कंपनियों को ब्रांडिंग से कुछ खास फायदा नजर नहीं आ रहा है।
ब्रांड के जानकारों के मुताबिक, कोलकाता पूजा के दौरान कॉर्पोरेट 800 से लेकर 1000 करोड़ रुपए से ज्यादा तक खर्च करते हैं। इसमें से बैनर्स के एडवरटाईज और गेट पर 1500-200 करोड़ रुपए का खर्च होता है। इस साल आयोजकों के सामने पूजा का खर्च निकालना चुनौतीभरा है। ऊपर से कलकत्ता हाई कोर्ट का आदेश कि पंडाल में सीमित विजिटर्स की ही एंट्री होगी। इस फैसले ने आयोजकों के सामने और मुसीबत खड़ी कर दी है। आदेश के बाद कई स्पॉन्सर्स पूजा पंडाल को स्पॉन्सर करने से मना कर दिया।
नार्थ कोलकाता के मोहम्मद अली पार्क, साउथ कोलकाता के भवानीपुर 75 पल्ली और चेतला अग्रणी जैसे बड़े पूजा पंडाल के आयोजकों का कहना है कि तृतीया के दिन जब सब कुछ तैयार हो गया, तब कलकत्ता हाईकोर्ट ने पंडाल वाले एरिया को कंटेनमेंट जोन में डाल दिया। पंडाल में विजिटर्स की संख्या को सीमित कर दिया। अगर यही फैसला पहले आ गया होता तो हम अपने बजट को और कम कर देते।
उनका मानना है कि कोर्ट फैसले के बाद कई ब्रांड ने पंडाल में पैसे लगाने से मना कर दिया। 75 पल्ली पूजा पंडाल के आयोजक व सचिव सबीर दास बताते हैं कि कोर्ट के फैसले के बाद करीब चार ऐसे ब्रांड हैं, जिन्होंने पंडाल को स्पॉन्सर करने से मना कर दिया। इन कंपनियों का मानना है, जब विजिटर्स आएंगे ही नहीं तो प्रमोशन किसके लिए करें। सबीर दास कहते हैं, पूजा पंडाल में 22 अक्टूबर से 25 अक्टूबर तक के लिए स्पॉन्सर्स के साथ हुई डील हाथ से निकल गई। इस डील से करीब 5 लाख रुपए आने वाले थे।
ऐसी कहानी केवल सबीर दास के साथ नहीं है। हर आयोजक का यही हाल है। 40-50 लाख में होने वाली पूजा का बजट 8 से 10 लाख पर आ गया। नॉर्थ कोलकाता में सबसे मशहूर पूजा पंडाल मोहम्मद अली पार्क (एमडी अली पार्क) में होता है। यहां सबसे बड़ा मेला लगता है। हर साल इस पंडाल का बजट 40 से 60 लाख तक हुआ करता था। लेकिन, इस साल इसका बजट केवल 12 लाख रह गया है।
28 साल की परंपरा को बरकरार रखना मजबूरी
साउथ कोलकाता का चेतला अग्रणी नाम से मशहूर पूजा पंडाल इस साल बेहद सिंपल थीम पर तैयार की गई है। हर साल यहां पूजा पंडाल में एंट्री के लिए करीब 20 गेट बनाए जाते थे और उन सभी गेट्स पर कंपनियों का भारी तामझाम रहता था, लेकिन अबकी बार केवल 7 गेट ही बने हैं। कंपनियों से करीब 20 से 25% ही फंडिंग हुई है। ऐसे में जहां हर साल 30 से 40 लाख तक के बजट में पंडाल तैयार किया जाता था, वो इस साल मात्र 8 लाख के आसपास में सिमट कर रह गई है।
यहां पिछले 28 साल से यहां पूजा का आयोजन किया जा रहा है। यही वजह है कि इस साल पूजा का आयोजन किया गया है ताकि यह परंपरा किसी तरह बची रहे। चेतला अग्रणी पूजा पंडाल को इस साल केवल 15-20 स्पाॅन्सर्स ही मिले हैं। आयोजकों को अपने जेब से पैसे लगाने पड़े हैं। ऊपर से मास्क, ग्लव्स और पीपीटी किट के चलते खर्च अतिरिक्त बढ़ गया है। हालांकि, इस साल ममता बनर्जी की सरकार ने सभी रजिस्टर्ड पूजा-पंडाल को सफाई और हाइजीन को ध्यान रखने के लिए अतिरिक्त खर्च को देखते हुए 50-50 हजार रुपए दिए हैं।
25 किलो सोने से तैयार हुई श्रीभूमि की मां दुर्गा
इस साल कोलकाता के श्रीभूमि स्पोर्टिंग क्लब ने केदारनाथ की थीम पर तैयार पंडाल में मां दुर्गा की मूर्ति को 25 किलो सोने के गहनों से सजाया है। इस पूजा के मुख्य सदस्य राज्य के मंत्री सुजीत बोस हैं। वे कहते हैं कि इस साल पूजा की रौनक फीकी जरूर है, मगर हमने मूर्ति के आकार और उसकी भव्यता से कोई समझौता नहीं किया है। हर साल की तरह इस साल भी हमने मां दुर्गा को सोने के गहनों से सजाया है।
श्रीभूमि स्पोर्टिंग क्लब हमेशा से भव्यता के लिए मशहूर रहा है। हालांकि, बजट को लेकर पूछे गए सवाल पर सुजीत बोस ने साफ कुछ नहीं बताया, लेकिन उन्होंने यह माना है कि पिछले साल के मुकाबले इस साल पूजा पंडाल के बजट में 20% तक की कटौती हुई है। यह वही पूजा पंडाल है, जिसे 2018 में दुनिया का सबसे महंगा पंडाल होने का सर्टिफिकेट दिया गया था। बाहुबली की थीम पर तैयार पूजा पंडाल का बजट करीब 10 करोड़ रुपए था। पंडाल की ऊंचाई 110 फीट रखी गई थी।
पिछले साल 2019 में नार्थ कोलकाता के संतोष मित्रा स्क्वेयर में मां दुर्गा को 50 किलो सोने से तैयार किया गया था। बजट 20-25 करोड़ रुपए बताई गई थी। साउथ कोलकाता का मशहूर पूजा पंडाल भवानीपुर 75 पल्ली में इस साल कपड़े, धागे और मछली पकड़ने वाली जाल से पंडाल को तैयार किया गया है। इस साल इस पूजा का बजट 10 लाख रुपए के आसपास है। वहीं, पिछले साल करीबन 50 लाख के आसपास के बजट में पूजा का आयोजन किया गया था। इंडियन चैंबर ऑफ कॉमर्स पहले ही अनुमान जता चुका है कि 2030 तक दुर्गा पूजा का टर्नओवर मेगा कुंभ मेला के बराबर हो जाएगा, जो कि करीब 1 लाख करोड़ रुपए है।
दुर्गापूजा से हो जाती थी सालभर की कमाई
हजारों की संख्या में ऐसे लेबर से लेकर मूर्तिकार और पूजा के दौरान छोटे-छोटे फूड का स्टॉल लगाने वालों की कमाई पर सीधा असर पड़ा है। इनकी कमाई का जरिया ही दुर्गा पूजा है। इस समय इनकी कमाई इतनी हो जाती है कि ये सालभर छोटे मोटे अन्य काम करके भी घर-परिवार मैनेज कर लेते थे। पिछले दस सालों से पंडाल के पास फूड ट्रक का कारोबार कर रहे आमिर अली इस साल दिन तीनों में महज 15-20 हजार रुपए की कमाई कर पाए हैं। हर साल पूजा में वे इस पांच से छह दिनों में दो लाख से ज्यादा कमा लेते थे।
पहली बार सिंदूर खेला रस्म के बगैर ही होगी मां की विदाई
बंगाल के इतिहास में पहली बार ऐसा हो रहा है, जब दुर्गा पूजा की परंपरा को ही बदलना पड़ा। दुर्गापूजा की शुरुआत मां की प्रतिमा में चक्षु दान के साथ की जाती है और पूजा संपन्न होती है सिंदूर खेला के साथ। ऐसी मान्यता है कि 9 दिन मायके में रहने के बाद मां अपनी ससुराल जाती हैं, इसके पूर्व महिलाएं पान के पत्ते में सिंदूर डालकर मां की मांग भरती है। उसके बाद वही सिंदूर वे एक-दूसरे को लगाती हैं। बता दें कि कोरोना संक्रमण बढ़ने के कारण कोर्ट ने सिंदूर खेला पर रोक लगा दी है।
आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
from Dainik Bhaskar https://ift.tt/3ofxFGe
No comments
If any suggestion about my Blog and Blog contented then Please message me..... I want to improve my Blog contented . Jay Hind ....