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Dainik Bhaskar

जिंदगी कई बार हमारी परीक्षा लेती है। कई बार वह शरीर की परीक्षा लेती है। यह कोई बीमारी हो सकती है या कोई चोट। फिर जिंदगी विचारों के स्तर पर आपकी परीक्षा लेती है। यह आपको मानसिक रूप से अस्थिर करेगी। आप किसी एक दिशा में सोच रहे होंगे कि अचानक उसमें कोई व्यवधान आ जाएगा, विचारों को कोई बाधित कर देगा।

इससे विचारों का सिलसिला टूट जाएगा, उनका पैटर्न बदल जाएगा। कभी-कभी ऐसा होना आपके मूल्य तंत्र को भी चुनौती देगा। इस संसार में अयोग्य या बिना शर्त बदलाव जैसा कुछ नहीं है। उदाहरण के लिए मान लीजिए कि आप सारे जीवन में झूठ बोलते रहे और सबकुछ सही चल रहा था। लेकिन एक दिन किसी गलती के बाद आपने तय किया कि अब हमेशा सच बोलना है। यह तय करते ही कोई चुनौती सामने आ जाएगी।

आपका मन तुरंत ललचाएगा कि आप झूठ बोलकर इस स्थिति से बच सकते हैं। लेकिन सच बोलते हैं तो ढाई लाख रुपए जुर्माना चुकाना होगा। हमेशा ही ऐसी कोई चुनौती आएगी। वास्तव में आपको कभी ईश्वर पर आस्था नहीं थी और जिंदगी में सबकुछ ठीकठाक चल रहा था। और अचानक आपके जीवन में यह आस्था का कारक आया और आपके अंदर बहुत सारी आस्था जागी। उसके बाद हो सकता है कि ऐसा हो कि आप जो चाहते थे, वह जीवन में तब न मिले। फिर आप ये सोचने लगते हैं कि क्या आस्था वाकई में काम करती है, क्या इसका कोई अर्थ है? इसीलिए बिना शर्त के, अयोग्य बदलाव जैसा कुछ भी नहीं है।

जिंदगी के हर पहलू में आप सोचेंगे कि आप खुद में बदलाव लाए हैं, और जिंदगी तुंरत आपके बदलाव की परीक्षा के लिए कोई अनुभव दे देती है। इस परीक्षा में कई लोग टूट जाते हैं, लेकिन कुछ इसे पार भी करते हैं। इसे एक उदाहरण से समझते हैं। जब बीज धरती में बोया जाता है, तब धरती कभी भी किसी बीज के प्रति दयावान नहीं रहती। वास्तव में धरती बीज की मदद नहीं कर सकती, बल्कि वह तो उसके खिलाफ काम करती है।

धरती बीज पर जो दबाव डालती है, उसी से उसमें अंकुर फूटते हैं। यानी बीज को धरती के विरुद्ध होना ही पड़ता है। अगर धरती बीज के प्रति नरमी बरते तो अंकुरण होगा ही नहीं। और कई बीज धरती का दबाव नहीं झेल पाते और मर जाते हैं। हम उनके बारे में कभी नहीं जान पाते। लेकिन कुछ बीज धरती का दबाव झेलते हैं और छोटी-सी, नाजुक-सी हरी कोपल बाहर आती है।

फिर यह अजीब बात होती है कि जो धरती अब तक उस बीज के खिलाफ काम कर रही थी, वह बीज के लिए काम करने लगती है और उसकी पेड़ बनने में मदद करती है। यानी जब तक आप साबित नहीं करते कि आपकी क्या क्षमता है, वह आपके विरुद्ध काम करती है। एक बार आप साबित कर देते हैं कि आप क्या कर सकते हैं, तो वह आपके पक्ष में काम करने लगती है और एक खूबसूरत संरचना तैयार हो जाती है।

ऐसा ही जिंदगी के साथ होता है। वह आपको चुनौती देती है, परीक्षा लेती है, वह चाहती है कि आप बदलाव के योग्य बनें। एक बार आप बदलाव साबित कर देते हैं, तो वह जिंदगी जो आपके खिलाफ काम कर रही थी, आपका साथ देने लगती है। इसीलिए वह आपके मूल्यों की परीक्षा लेती है, आपकी भावनाओं को चुनौती देती है। जिंदगी कई बार भावनात्मक रूप से खलबली मचा देती है। और फिर वह एक गलती करती है। जिंदगी इंसान की आत्मा, उसके उत्साह को चुनौती देती है। और जब वह ऐसा करती है तो इंसान का बड़प्पन, उसकी महानता, उसकी क्षमता आपके अंदर से उभरती है और बताती है कि आप क्या कर सकते हैं। पहली बार जिंदगी किसी व्यक्ति के आगे झुकती है।
जब आप इंसानों का उत्साह देखते हैं कि वे जिंदगी की चुनौतियों से लड़ते हैं और जिस तरह से उनसे उबरते हैं, वे महान प्रेरणादायी कहानियां बन जाती हैं। इनके लिए आपको इतिहास की किताबें पढ़ने की जरूरत नहीं है। अपने आस-पास देखिए, अपने परिवार में देखिए। हम जिन लोगों के साथ रहते हैं उन्हीं के बीच इतनी प्रेरणा है कि वे हमें जिंदगी में कुछ बड़ा हासिल करने के लिए प्रेरित कर सकते हैं। बस हमें इंसान की आत्मा की शक्ति, उसके उत्साह ही शक्ति का इस्तेमाल करने की जरूरत है।



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महात्रया रा, आध्यात्मिक गुरु। (फाइल फोटो)


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