Dainik Bhaskar
आज की कहानी राजस्थान के टोंक जिले में रहने वाले अंशुल गोयल की है। यूं तो अंशुल ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है, लेकिन काम स्नैक्स बेचने का कर रहे हैं। कॉलेज में एंटरप्रेन्योरशिप के एक प्रोजेक्ट के दौरान ही उन्होंने सोच लिया था कि बिजनेस ही करना है।
घरवालों के कहने पर डेढ़ साल सरकारी नौकरी की तैयारी भी, लेकिन मन नहीं लगा तो बंद कर दी। तीन साल में अपने पार्टनर के साथ मिलकर एक से डेढ़ लाख रुपए तक की मंथली इनकम पर पहुंच चुके हैं। वही बता रहे हैं, उन्होंने ये सब कैसे किया।
एक सैलरी पर बंधकर काम नहीं करना चाहता था
अंशुल कहते हैं- इंजीनियरिंग की पढ़ाई के दौरान मुझे महसूस हुआ कि नौकरी के बजाए मुझे बिजनेस में जाना चाहिए। मैं एक सैलरी पर बंधकर काम नहीं करना चाहता था, बल्कि खुद अपने काम का बॉस बनना चाहता था। कॉलेज में थर्ड ईयर में एंटरप्रेन्योरशिप प्रोग्राम में पार्टिसिपेट किया।
एक बिजनेस प्रोजेक्ट पर काम किया। तब दिमाग में ये बात घर कर गई कि बिजनेस ही करना है। घरवाले चाहते थे कि मैं पढ़ाई करके नौकरी करूं। सरकारी नौकरी की तैयारी भी की, लेकिन कुछ दिन बाद मन नहीं लगा और बिजनेस के बारे में सोचने लगा।
वो बताते हैं, "मैं मार्केट में बिजनेस सर्च कर रहा था कि आखिर क्या कर सकता हूं। मेरे ज्यादातर रिश्तेदार बिजनेसमैन ही हैं। उनसे भी कंसल्ट कर रहा था। मुसीबत ये थी कि बिजनेस शुरू करने के लिए बहुत पैसा नहीं था। जो भी करना था, छोटे बजट में ही करना था। मैं देख रहा था कि कोई प्रोडक्ट कितना बिक सकता है। उसकी मार्केट में क्रेडिट कितने दिनों की होती है। सबसे ज्यादा कौन लोग उसे खरीदते हैं। कई चीजें देखने के बाद मुझे हरे मटर का काम समझ में आया।"
अंशुल कहते हैं- मैंने देखा कि एक रुपए में फ्राई मटर बेचे जाते हैं। ये पैकेट खासतौर पर बच्चों को टारगेट कर मार्केट में उतारे जाते हैं। रिसर्च करने पर मुझे पता चला कि इस काम में बहुत ज्यादा इंवेस्टमेंट भी नहीं था और रिटर्न आने की संभावना पूरी थी। 2017 में मैंने जयपुर से ही डेढ़ लाख रुपए में ये काम शुरू किया। मेरे करीब 60 से 70 हजार रुपए प्रिंटिंग में खर्च हुए, क्योंकि प्रिंटिंग का ऑर्डर बल्क में देना पड़ता है।
उन्होंने बताया कि पचास हजार रुपए में पैकिंग की एक सेकंड हैंड मशीन खरीदी। इसके अलावा मंडी से दौ सो किलो सूखी मटर खरीदी। शुरू के एक महीने काफी दिक्कतें आईं। अनुभव न होने के चलती कभी हमारी मटर पूरी तरह फ्राई नहीं हो पाती थी। कभी क्रिस्पी नहीं होती थी।
कभी तेल ज्यादा हो जाता था तो कभी मसाला अच्छे से लग नहीं पाता था। मैंने अपने जानने वाले दुकानदारों को सैम्पलिंग के लिए पैकेट दिए थे। सभी ने फीडबैक दिया। फिर पता चला कि तेल सुखाने के लिए भी मशीन आती है। मसाला लगाने के लिए भी मशीन आती है और भी कई छोटी-छोटी बातें पता चलीं।
डेढ़ महीने में ही शुरू हो गई कमाई
वो कहते हैं- एक महीने की लर्निंग के बाद मैं जान गया था कि बढ़िया क्रिस्पी मटर कैसे तैयार किए जाते हैं। हम अच्छा माल तैयार करने लगे। महीनेभर बाद ही ऑर्डर बढ़ना शुरू हो गया। पहले टोंक जिले के गांव में ही मैं पैकेट पहुंचा रहा था। दूसरे महीन से ही मेरी 45 से 50 हजार रुपए की बचत होने लगी। ये काम 6 महीने तक चलता रहा।
फिर दुकानदारों ने ही बोला कि इसके साथ जो स्नैक्स के दूसरे प्रोडक्ट आते हैं, वो भी बढ़ाओ। उन प्रोडक्ट्स की भी काफी डिमांड होती है। मैंने भी सोचा कि प्रोडक्ट्स बढ़ाऊंगा नहीं तो काम कैसे फैलेगा। मटर के काम में मैंने एक बंदा मटर फ्राई करने के लिए रखा था और दूसरा पैकिंग के लिए था। मार्केटिंग का काम मैं खुद देख रहा था।
मार्केट से 50 लाख उठाए, आधे चुका भी दिए
अंशुल ने बताया कि मेरे पास बहुत से प्रोडक्ट्स लॉन्च करने के लिए पैसा नहीं था। फिर अपने साथ एक पार्टनर को जोड़ा। हमने सबसे पहले फर्म रजिस्टर्ड करवाई। मार्केट और बैंक से करीब 50 लाख रुपए उठाए और एक साथ 11 प्रोडक्ट लॉन्च कर दिए। टोंक के साथ ही जयपुर और दूसरे एरिया में भी हम डिस्ट्रीब्यूशन के जरिए प्रोडक्ट्स पहुंचाने लगे।
उन्होंने कहा- कोरोना के पहले हमारी मंथली इनकम एक से डेढ़ लाख थी। मार्केट से जो पैसा उठाया था, उसका 50% चुका भी दिया। कोरोना के चलते 6 महीने का ब्रेक लग गया था। अब फैक्ट्री फिर से शुरू कर दी है। आज मेरे पास करीब 30 लाख रुपए की मशीनें हैं। आठ से दस वर्कर हैं। पैकिंग से लेकर ड्राय करने तक की मशीनें हैं।
अब हम दिवाली के बाद चिप्स लॉन्च करने की तैयारी कर रहे हैं। जो लोग अपना काम शुरू करना चाहते हैं, उन्हें यही कहना चाहता हूं कि जो भी काम करो, पहले उसके बारे में रिसर्च करो। उस प्रोडक्ट के मार्केट को समझो। कॉम्पीटिशन बहुत हाई है, यदि सही प्लानिंग से नहीं गए तो नुकसान हो सकता है। अंशुल यूट्यूब पर कामकाजी चैनल के जरिए लोगों को बिजनेस एडवाइज भी देते हैं।
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