Dainik Bhaskar
पटना शहर के आशियाना इलाके का सगुना मोड़ खासा प्रसिद्ध है। यह नये विकसित होते पटना का एक लैंडमार्क भी है। इस मोड़ का यह चाय अड्डा भी कम चर्चित नहीं है। नाम है ‘टी टॉक्स’।
सुबह 7 बजे का समय है। पसीने से तरबतर एक बुजुर्ग अभी-अभी आए हैं। मार्निंग वॉक में बढ़ी सांसों की तेजी थामते हुए बोले- ‘अरे रकेशवा, तुम्हारा चाय आजकल बहुत हल्का हो गया है। चुनाव में दूध की किल्लत हो गई है का रे।’
राकेश बोलता, उसके पहले ही ठेले पर हाथ का सहारा लेकर चाय पी रहा युवक बोल पड़ा- ‘हां सही बात है, चाय की क्वालिटी त गिरा दिए हो’। राकेश ने सफाई दी- ‘ई महंगाई में देख नहीं रहे, हर सामान महंगा हो गया है। लॉकडाउन की मार से अभी उबर नहीं पाए हैं। फिर भी चाय का दाम नहीं बढ़ाए। दो साल से इसी रेट पर पिला रहे हैं।’
महंगाई की बात आते ही मजदूर सा दिखने वाला एक युवक जिसे लोग रघुनाथ कहकर बुला रहे थे, बोला- ‘महंगाई से तो गृहस्थी गड़बड़ा गई है। चाय और चीनी की तो बात ही छोड़िए, हरी सब्जी भी इतनी महंगी कभी नहीं हुई थी। दो टाइम की सब्जी जुटाने में हालत खराब हो जाता है।’
मार्निंग वॉक से लौटे श्याम सुंदर जी अब तक स्थिर हो चुके हैं। गले में उतरती चाय की चुस्की के साथ ही उनके चेहरे के बदलते भाव बता रहे हैं कि कुछ कहने को आतुर हैं। बहुत देर चुप नहीं रह सके। बोल पड़े, ‘अभी का देखे हो। चुनाव और कोरोना ऐसा हालत लाएगा कि आम लोगों की थाली से भी हरी सब्जी का बहुत कुछ गायब हो जाएगा।’ लोगों की बातचीत से लगा ये शर्मा जी हैं और बिजली विभाग से रिटायर हुए हैं।
उन्हीं से मुखातिब बाइक पर टेक लगाकर चाय पी रहा व्यक्ति बोला- ‘शर्मा जी, अब आप ही बताइये, कोरोना में चुनाव कराकर सरकार का बताना चाह रही है? आम लोगों को तो मास्क लगाने और सोशल डिस्टेंसिंग मेंटेन करने को कहा जाता है, लेकिन नेतवन सब तो खूब भीड़ जुटा रहे हैं। लग रहा है जैसे कोरोना से उनकी कुछ साथ गांठ हो कि उनका तो कुछ नहीं ही बिगड़ने देगा।’
बगल में खड़ा युवक बात काटते हुए बोला- ‘का बात कर रहे हैं सोनू भैया, देखिए न कै ठो नेता यहीं सात-आठ दिन में मर गए। ई नेता सब के भी ‘कोरोना’ होगा, देख लीजियेगा। चुनाव में ये सब जैसी लापरवाही कर रहे हैं, सबकी मुश्किल बढ़ा देंगे। मोदी जी के भाषण देने से नहीं न मान जायेगा कोरोना। देख नही रहे हैं, उनकी पार्टी में ही कितना भीड़ उमड़ रहा है। वैसे नड्डा, नीतीश से लेकर तेजस्वी तक किसी की भीड़ पर कोई कंट्रोल नहीं है। अब तो कहने के लिए भी कोई इसकी बात नहीं करता’।
शर्मा जी ने चर्चा मोड़ते हुए सवाल दागा- ‘छोड़ ई सब, हवा केकर बन रहा है इधर...’। जवाब एक नवयुवक ने दिया, ‘अरे चुनाव आता-जाता रहता है। नेता त सब एक जैसा ही रहता है। अब बताइए ई सगुना क्षेत्र ही में क्या विकास हुआ? जो भी नेता चुनाता है, उसका रंग चार से पांच महीने में ही बदल जाता है। कोई काम हो तो खोजते रह जाओ…।’
किसी ने जोड़ा- ‘अरे सारा काम तो उनका ही आदमी न करता है! सड़क की ठेकेदारी से लेकर हर काम, उन्हीं के लोग न करते हैं। ऐसे में नेता जी काहे दिखेंगे क्षेत्र में और काहे दिखेगा उनका आदमी...।’
एक और टिप्पणी आई- ‘सोशल डिस्टेंसिंग का बहाना क्या मिला, सब क्षेत्र से ही गायब हो गया। अब त सब फेसबुक और ट्विटर पर नेता जी आपन यात्रा के फोटो लगाकर क्षेत्र की जनता के बधाई देलें।’
किसी प्राइवेट कंपनी का आईडी लटकाए अंकित ने जैसे समापन टिप्पणी ही कर डाली- ‘अरे नेताजी के ई पता नहीं है कि फेसबुक और ट्विटर पर बधाई देवे वाला ज्यादा दिन मैदान में नहीं टिक पाता। जिस सोशल मीडिया पर नेता जी मौजूद रहते हैं न, वहीं से नेताजी की विदाई की नींव पड़ चुकी है।’
युवक की बात में दम लगा तो कई लोग अचानक उसके पक्ष में खड़े दिखे। लेकिन राकेश की टिप्पणी ने तो जैसे सभा समाप्ति का ऐलान ही कर दिया- ‘इहां बैठ के चर्चा कईले से कुछ नहीं होगा, हर किसी को खुदे आगे आना होगा, कि दमदार प्रत्याशी चुनाए जो विधानसभा में भी हमरा मान बढ़ाए और कामो करे।’
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