Dainik Bhaskar
करीब दो साल पहले 40 साल की एक विधवा आदिवासी महिला के साथ आधी रात को दो लोग जबरन उसके टूटी हुई झोपड़ी में घुसकर दुष्कर्म करते हैं। सुबह जब वो आस-पड़ोस और अपने रिश्तेदारों को बताती है तो उल्टा उसी पर लोग लांछन लगाने लगते हैं। उसकी बात को अनसुना कर मामले को दबा दिया जाता है लेकिन, कुछ महीने बाद वो विधवा मां बनने की अवस्था में पहुंच आती है।
और फिर यहां से मामले को गांव से लेकर थाने तक लोग मैनेज करने में लग जाते हैं। यह घटना अनगड़ा ब्लॉक में पड़ने वाले नारायण सोसो गांव की है जो झारखंड की राजधानी रांची से करीब 25 किलोमीटर की दूरी पर है। मुखिया, रिश्तेदार, आस-पड़ोस समेत कई लोग यह तो मानते हैं कि पीड़िता के साथ गलत हुआ, उसके साथ दुष्कर्म हुआ, लेकिन आरोपियों को सजा तो दूर उनके खिलाफ आजतक कोई एफआईआर तक नहीं हुई।
गांव की एक महिला नाम नहीं लिखने की शर्त कहती है, 'इस घटना को हर तरह से दबाने की कोशिश की गई। गांव में इसे लेकर पहले बैठक हुई। उस महिला से पूछा गया कि किसका बच्चा है, जब उसने आरोपी का नाम बताया तो लोग उल्टा उस पर लांछन लगाने लगे। तब हमलोग गांव की ढेर सारी महिला उस (पीड़िता) के साथ चार अक्टूबर 2018 को रात में ही थाना गए और एफआईआर करने को कहते रहे, लेकिन थाना प्रभारी ने एफआईआर दर्ज नहीं किया।'
वो आगे बताती हैं, 'मैंने इस मामले को उठाया तो आरोपियों ने धमकाया। मेरे गांव की औरतों से कहा गया कि किसी भी दिन जब रात, बेरात मैं अकेले बाहर निकलूंगी तो वे लोग मुझे उठा (किडनैप) लेंगे।'
पीड़िता के पति की पांच साल पहले बीमारी से मौत हो चुकी है। वो अभी दिहाड़ी मजदूरी का काम कर अपने बच्चों की परवरिश करती है। इस मामले में पीड़िता ने घटना की सुबह जिन्हें सबसे पहले पूरी बात बताई, वो भी मानते हैं कि उसके साथ गलत हुआ। लेकिन, दबाव के कारण कुछ बोलने से कतराते हैं। वहीं, पीड़िता के परिवार वालों के मुताबिक, उन्होंने मामले को थाने तक पहुंचा, लेकिन आगे कुछ नहीं हो पाया।
आंगनवाड़ी केंद्र की सेविका इस बारे में कुछ भी बताने से इनकार करती हैं। लेकिन, वो इतना जरूर कहती हैं कि बच्ची दो दिसंबर 2018 को पैदा हुई थी। तब उसका वजन ढाई किलो था। दुष्कर्म के बाद जन्मी बच्ची से पहले पीड़िता के पास तीन और बच्चे (दो बेटी, एक बेटा) थे।
गांव की कुछ महिलाओं का मानना था कि बच्ची को बेच दिया गया। तब इस बारे में पीड़िता के परिवार और खुद पीड़िता ने भी कुछ नहीं बताया था। इस मामले में दो आरोपियों का नाम आया, जो पास के ही गांव के रहने वाले हैं। ललकु कुम्हार और राजू कुम्हार। इन दोनों ने अपने को बेकसूर बताया।
लेकिन, ललकु कुम्हार ने अपने एक बयान कहा था, “गांव वालों के कहने पर उसने पीड़िता को 15 हजार रुपया दे दिया। अब उसकी जिम्मेदारी खत्म हो गई, बच्चा कहां और कब पैदा हुआ, उसको नहीं पता।'
तब अनगड़ा थाना प्रभारी शंकर प्रसाद ने कहा था, आरोपी और पीड़िता पक्ष के लोग आपस में मामले को सुलझाने के लिए तैयार हैं। इसमें अब वो क्या कर सकते हैं। और आरोपी पक्ष ने पीड़िता के पेट में पल रहे बच्चे की देखरेख का जिम्मा भी ले लिया है लेकिन, पीड़िता आकर आज भी आवेदन दे तो हम केस दर्ज कर लेंगे।'
इस पर गांव की महिलाएं कहती हैं, “हमलोग उसको (पीड़िता) थाना लेकर गए थे। वो बेचारी मजदूरी करती है, एकदम अनपढ़ है। अब बताइए कि वो कैसे आवेदन देगी लिखकर। जब हमलोग उसकी सहमति पर आवेदन दे रहे थे कि केस दर्ज कीजिए तो उन्होंने (थाना प्रभारी) किया नहीं। गांव के मुखिया मधुसूदन मुंडा की माने तो उन्होंने भी कोशिश कि केस हो और पीड़िता को इंसाफ मिले। लेकिन, गांव वालों ने उन्हें बिना बताए बैठक कर मामले को दबा दिया।'
बहरहाल, जब बच्ची को बेचने और बलात्कार को लेकर खबर छपी तो रांची चाइल्ड वेलफेयर कमिटी ने मामले में हस्तक्षेप किया। एसपी से होते हुए मामला रांची के सिल्ली डीएसपी तक पहुंचा। फिर जांच के निर्देश के बाद अनगड़ा थाना सक्रिय हुआ और बच्ची की खोजबीन में लगा। जल्द ही बच्ची को बरामद करके चाइल्ड वेलफेयर कमिटी को सौंप दिया गया।
क्या इसके बाद कोई एफआईआर हुई, इसके जवाब में तत्कालीन थाना प्रभारी शंकर प्रसाद कहते हैं, “मेरे रहते हुए कोई एफआईआर नहीं हुई। मैं किसके बयान पर एफआईआर दर्ज करता। पीड़िता का कहना था कि वो किसके खिलाफ एफआईआर करे, उसको वहीं(गांव में) रहना है, जीना खाना है। हो सकता है उस पर दबाव हो, इसलिए वो किसी के खिलाफ नहीं बोली हो कुछ।
उससे जब पूछा कि बच्चा कहां, बच्चे को बेच दिया क्या?, तो उसने कहा कि बेचा नहीं है। अपने मन से किसी रिश्तेदार को पोसने पालने के लिए दी है। लेकिन, वो बताई नहीं कि बच्चा कहां और किसको दी है। फिर गांव वालों की मदद से बच्चा को रांची के डोरंडा से बरामद किया और सीडब्लूसी को सौंप दिया।
अनगड़ा के मौजूदा थाना प्रभारी अनिल कुमार तिवारी कहते हैं कि कोई आवेदन देने के लिए तैयार नहीं था इसलिए एफआईआर नहीं हो पाया। बच्ची अभी भारत सरकार के अडाप्शन सेंटर में है।
रांची चाइल्ड वेलफेयर कमिटी (सीडब्लूसी) की चेयरपर्सन रूपा वर्मा ने बताया, “हमलोगों की रिपोर्ट में यह बात आई है कि पीड़िता रेप विक्टिम थी। बच्चे को हमलोग ने रिकवर करके पहले सारा पेपर वर्क किया। इसके बाद कानूनन इसमें 60 दिन तक इंतजार किया जाता है जो हमलोगों ने किया।
ऐसे मामले में दावेदार जैसे मां-बाप या अन्य रिश्तेदार अगर बच्चा या बच्ची लेने आते हैं तो एक इंक्वायरी सेटअप करके ये देखा जाता है कि दावेदार सही हैं कि नहीं। सही रहने पर बच्ची या बच्चे को सौंप दिया जाता है। अनगड़ा वाले केस में जब कोई नहीं आया तो हमलोगों ने उस बच्ची को भारत सरकार के सेंट्रल एडॉप्शन रिसोर्स अथॉरिटी को दिया।
कानून के मुताबिक, अगर को कोई 60 से एक दिन बाद भी आता है। यहां तक के उसके सगे मां-बाप भी आते हैं तो बच्चे, बच्ची को नहीं दिया जाता है।
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