Header Ads



Dainik Bhaskar

बिहार विधानसभा चुनाव सम्पन्न हो चुका है। जनता का फैसला EVM में कैद हो चुका है। 10 नवंबर को नतीजे आ जाएंगे। इसी दिन पता चलेगा कि बिहार की जनता ने ‘तेज रफ्तार तेजस्वी’ को चुना है या ‘फिर से एक बार नीतीशे कुमार’ में भरोसा जताया है। इससे पहले जो है, वो अंदाजा है। अटकलें हैं। चुनावी पंडितों का गुणा-भाग है, लेकिन इस चुनाव से जुड़ी एक तस्वीर परिणाम आने से पहले साफ हो चुकी है।

RCJD नेता और बिहार के पूर्व उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव इस चुनाव में एक नए रूप में दिखे हैं। 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में सुस्त पड़े तेजस्वी इस बार यहां से वहां दौड़ते नजर आए। उन्होंने एक दिन में 19-19 चुनावी जनसभाएं की।

जिस बिहार में कहा जाता था ‘जब तक रहेगा समोसे में आलू, तब तक रहेगा बिहार में लालू’। उस बिहार से लालू प्रसाद यादव गायब कर दिए गए। RJD की तरफ से बनाए गए हर पोस्टर पर तेजस्वी, हर गीत में तेजस्वी और हर चर्चा के केंद्र में तेजस्वी।

31 साल के तेजस्वी एक तरफ और दूसरी तरफ नीतीश कुमार, सुशील मोदी और नरेंद्र मोदी सहित दूसरे कई बड़े और अनुभवी नेता, लेकिन शानदार ये रहा कि पूरे चुनाव प्रचार में NDA के नेता तेजस्वी यादव द्वारा तय किए गए मुद्दे के इर्द-गिर्द बात करते रहे या लालू-राबड़ी शासनकाल को लेकर हमले करते रहे।

इन्हीं वजहों से इस चुनाव में तेजस्वी यादव एक मात्र एजेंडा सेटर और उभरते नेता के तौर पर दिखाई दिए। इस चुनाव में दो युवा चेहरे तेजस्वी और चिराग हैं। दोनों के हाथ में अपनी-अपनी पार्टी की कमान है।

वोट डालने के बाद अपनी मां के साथ तेजस्वी यादव।

चिराग पासवान पूर्व केंद्रीय मंत्री स्वर्गीय रामविलास पासवान के बेटे हैं तो तेजस्वी बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू यादव और राबड़ी देवी के छोटे बेटे हैं। इन तमाम समानताओं के बावजूद लोकप्रियता में तेजस्वी के मुकाबले चिराग कहीं बहुत पीछे हैं।

तेजस्वी यादव इस चुनाव में बिहार के लगभग हर इलाके में पहुंच गए। तेजस्वी के समर्थक आक्रामक तौर से उनका समर्थन करते दिखे तो उनके विरोधी उनकी उतनी ही कड़ी आलोचना। इस चुनाव में तेजस्वी बिहार के एक ऐसे नेता हैं, जिन्हें आप पसंद करें या नापसंद, लेकिन नजरअंदाज नहीं कर सकते।

आरा जिले के जगदीशपुर विधानसभा क्षेत्र में पड़ने वाले दुल्हिन गंज में पान की दुकान पर बैठे 22 वर्षीय बबलू से लेकर समस्तीपुर के हसनपुर विधानसभा सीट के 70 वर्षीय वोटर बुलो यादव तक में तेजस्वी के नाम का क्रेज दिखा।

बबलू युवा है और उसे तेजस्वी का दस लाख रोजगार वाला वायदा सबसे ज्यादा आकर्षित कर रहा है। वो बोले, 'नए उमर के हैं। अच्छे दिखते हैं। नौकरी के लिए कह रहे हैं। अबकी मेरा वोट तेजस्वी को सीएम बनाने के लिए ही है।' जैसे 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में मतदाताओं का एक बड़ा वर्ग नरेंद्र मोदी को पीएम बनाने के लिए वोट कर रहा था। वो स्थानीय उम्मीदवार की तरफ देखता ही नहीं था। पूछने पर कहता था, “नरेंद्र मोदी को PM बनाना है।”

ठीक इसी तर्ज पर इस विधानसभा चुनाव में तेजस्वी के लिए लोगों ने वोट डाला है। ये अलग बात है कि इस आकर्षण का एक जातीय आधार भी ग्राउंड पर साफ-साफ दिखा। यादव और मुस्लिम मतदाता सबसे ज़्यादा तेजस्वी के लिए मुखर दिखे। बुलो यादव कहते हैं, “नया लड़का है। अबकी इसी को देकर देखते हैं। अच्छा काम नहीं किया तो अगली बार कुर्सी से नीचे उतार देंगे।”

राजद ने 2015 का चुनाव नीतीश की अगुआई में लड़ा था, लेकिन इस बार तेजस्वी यादव सीएम फेस रहे।

वहीं, बिहार के दूसरे युवा नेता चिराग पासवान को बिहार में कई जगहों पर परिचय की भी जरूरत होती है। अभी भी चिराग को अपने पिता स्वर्गीय रामविलास पासवान की जरूरत है, जबकि तेजस्वी इस परिचय से इस बार बाहर आ चुके हैं। यहां एक बात बताना जरूरी है, तेजस्वी यादव के ज्यादातर समर्थक यादव और मुस्लिम जाति से आते हैं। बिहार के सवर्ण और दूसरी जातियों में उनके आलोचक ज्यादा हैं।

दरभंगा के एक सहनी बहुल गांव जयंतीपुर में पहुंचते-पहुंचते रात हो गई है। वहां युवाओं का गुट मोबाइल पर गाने सुन रहा है। बुजुर्ग कुर्सी पर बैठे गपिया रहे हैं, वहीं महिलाएं और जवान पुरुष मखाना फोड़ने में लगे हैं। यहां हमारी मुलाकात हुई स्वतंत्र कुमार सहनी से।

तेजस्वी के बारे में बोलते हुए वो बोले, “उन्हें अभी और मेहनत करनी होगी। क्या भरोसा है कि उनके सत्ता में आते ही एक बार फिर बिहार में एक जाति विशेष का कब्जा नहीं हो जाएगा। रही बात रोजगार की तो वो जरूरी है। लेकिन सबसे जरूरी है, कानून का राज। अगर ये कायम रहा तो हम जैसे लोग दो पैसा कमा लेंगे।”

एक बात और नोटिस करने वाली इस बार चुनाव में दिखी। बिहार में जाति के आधार पर मतदान या राजनीति कोई नई बात नहीं है। ये होते रहा है। बिहार की राजनीति में कर्पूरी ठाकुर और लालू यादव के आने से पहले तक भूमिहार, ब्राह्मण और राजपूत का कब्जा था। राजनीति इनके हिसाब से होती थी।

जब लालू आए तो बिहार में ‘अगड़ा बनाम पिछड़ा’ की लड़ाई की शुरुआत हुई। बीच के कुछ चुनावों में ये जातीय गोलबंदी या जाति के आधार पर वोट डालने की रवायत में थोड़ी कमी आई थी लेकिन इस बिहार विधानसभा चुनाव में वोटिंग का यही एक मात्र आधार दिखा है।

इस बार के विधानसभा चुनाव में तेजस्वी यादव ने जमकर चुनाव प्रचार किए। एक दिन में 19-19 रैलियां कीं।

चुनावी मुद्दे रैलियों में या कैमरों के आगे होने वाली चुनावी बहसों तक में सिमट कर रह गए। अगड़ों के बड़े वर्ग ने तेजस्वी को रोकने के लिए वोट किया है। वहीं, यादवों ने तेजस्वी यादव को देखते हुए आरजेडी के लिए वोट किया है। मुसलमानों ने बीजेपी को रोकने के लिए अपना वोट दिया है।

सहनी, कोईरी, कुर्मी, मंडल या दलितों के एक वर्ग ने अपनी जाति के उम्मीदवार को देखते हुए वोट दिया है। इन जातियों के बाकी बचे मतदाताओं ने उस डर को सच मानकर वोट किया जैसे, जिसे बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार, उप मुख्यमंत्री सुशील मोदी और खुद पीएम मोदी अपनी चुनावी सभाओं में बार-बार हवा देते थे।

चुनाव का आखिरी और अंतिम परिणाम तो 10 नवंबर को पता चल ही जाएगा। इस दिन दोपहर होते-होते साफ हो जाएगा कि बिहारी जनता ने किसे मुख्यमंत्री बनाया है और किसे विपक्ष की भूमिका निभाने के लिए चुना है। ये भी संभव है कि अगर किसी भी गठबंधन को सरकार बनाने के लिए जरूरी विधायक ना मिलें तो असल राजनीतिक खेल परिणाम के बाद ही शुरू हों। होने को तो कुछ भी हो सकता है, लेकिन जो हो चुका है वो ये कि इस चुनाव से तेजस्वी यादव एक मजबूत विकल्प की तरह उभरे हैं।



आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
महागठबंधन ने इस बार तेजस्वी यादव को सीएम उम्मीदवार बनाया है।


from Dainik Bhaskar https://ift.tt/2IeZazp

No comments

If any suggestion about my Blog and Blog contented then Please message me..... I want to improve my Blog contented . Jay Hind ....

Powered by Blogger.