Dainik Bhaskar
क्रिसथिन वांग. बुरे दिन सभी की जिंदगी में आते हैं। अक्सर हमारे परिवार, ऑफिस और दोस्तों में कोई न कोई ऐसा कहने वाला मिल जाता है कि 'आज का दिन काफी मनहूस रहा।' इसे ही निगेटिविटी कहते हैं। हमारे साथ कभी-कभी ऐसी घटनाएं होती हैं, जिसका नकारात्मक असर पूरे दिन बना रहता है। कभी-कभी निगेटिव दिन हफ्ते में बदल जाता है, हफ्ता महीने में और महीना साल में। अब कोरोनावायरस को ही ले लीजिए, इसके आने से जो निगेटिविटी शुरू हुई, अब उसके एक साल पूरे होने वाले हैं।
साइकोलॉजिस्ट शेल्डोन सोलोमोन कहते हैं कि कोरोना से दुनिया भर में आई निगेटिविटी अभी कब तक रहेगी, कुछ कह नहीं सकते। इस तरह से कई बार होता है कि निगेटिविटी शुरू होती है और खत्म होने का नाम नहीं लेती। ऐसे में लोगों के सामने यह बड़ी चुनौती है कि निगेटिविटी से ब्रेक कैसे लें? अगर सही समय पर इसकी रोकथाम पर ध्यान नहीं दिया गया तो निगेटिविटी तनाव, एंग्जाइटी और डिप्रेशन की वजह भी बन सकती है।
निगेटिविटी में सोचना और निर्णय लेना मुश्किल
मैकिंगन यूनिवर्सिटी में साइकोलॉजी के प्रोफेसर एथन क्रॉस कहते हैं कि निगेटिविटी दलदल की तरह होती है। जब हमारे साथ बुरी घटनाएं घटती हैं और हम निगेटिव हो जाते हैं तो हमारी मानसिक सक्षमता घट जाती है। यानी हम निर्णय नहीं ले पाते, गलत सही में फर्क नहीं कर पाते। जिसके चलते उस निगेटिविटी से बाहर आने के बजाय हम उसमें और भी फंसते जाते हैं। निगेटिविटी के वक्त हम पॉजिटिव चीजों को सोचने के बजाय निगेटिव चीजों को ही सोचते हैं।
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निगेटिविटी में निगेटिव हो जाती है हमारी समझ
डॉक्टर क्रॉस कहते हैं कि जब हम किसी चीज को देखते हैं, पढ़ते हैं या किसी के बातों को सुनते हैं तो हम उसे दो तरह से ले सकते हैं। पहला पॉजिटिव और दूसरा निगेटिव। जब हम निगेटिव दौर से गुजर रहे होते हैं तो हमारी हर चीज को ज्यादातर निगेटिव “इंटरप्रेट” करते हैं। इसलिए हमको यह लगता है कि दुनिया में हर चीज निगेटिव ही हो रही है। यह भी एक वजह है, जो हमें निगेटिविटी से और ज्यादा निगेटिविटी की तरफ ले जाती है।
निगेटिविटी से ब्रेक लेने के तीन उपाय-
1. परेशान होने के बजाय निगेटिविटी की वजह तलाशें-
- बिहैवियर साइंटिस्ट निक हॉब्सन के मुताबिक, आमतौर पर हम अपनी निगेटिव फीलिंग को निगेटिव होते हुए भी इग्नोर करते हैं। हम यह मान कर चलते हैं कि कुछ दिन में सबकुछ सही हो जाएगा। हमारा यह तरीका या इस तरह की सोच गलत है। यह सोच बैक फायर भी कर सकती है। इसके चलते हम निगेटिविटी से डिप्रेशन में भी जा सकते हैं।
- इसलिए सबसे जरूरी है निगेटिविटी को स्वीकार करना। ऐसा करने से हम उसे ऑब्जर्व कर पाएंगे कि निगेटिविटी का कारण क्या है? इससे कैसे निपटा जाए? निगेटिविटी को इग्नोर करके हम उससे जितना दूर भागेंगे, उसका असर हम पे उतना ही गहरा होता जाएगा।
- इससे निपटने के लिए सबसे जरूरी और बेहतर उपाय है कि हम इसे स्वीकार करें। इसकी वजहों को तलाशें। ऐसा करने से निगेटिव फीलिंग कम भी हो जाती है और इससे बाहर निकलने के कई रास्ते भी खुल जाते हैं।
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2. निगेटिविटी को स्वीकार करें और खुद को सुझाव दें
- सिर्फ निगेटिविटी को स्वीकार करना ही काफी नहीं है। उसे स्वीकार करके खुद को सुझाव देना भी जरूरी है। डॉ. क्रॉस के मुताबिक, खुद को 'आउटसाइडर' यानी तीसरे आदमी की तरह रखें। अपनी निगेटिविटी को स्वीकार करें। उसकी वजह ढूंढें और तीसरे आदमी के तौर पर खुद को ही सुझाव दें।
- निगेटिविटी में खुद को मोटिवेट करने का यह एक तरीका है। कई बार हम निगेटिविटी से परेशान होकर अकेला महसूस करने लगते हैं। हमें दूसरों के सुझावों की कमी महसूस होने लगती है। ऐसी स्थिति में खुद को ही तीसरा आदमी समझकर खुद को ही सुझाव देना बहुत ही कारगर उपाय है।
- खुद को सुझाव देना किसी दूसरे की तुलना में इसलिए भी असरदार है, क्योंकि हम खुद की समस्या और वजहों को किसी दूसरे की तुलना में ज्यादा समझते हैं। एक्सपर्ट्स के मुताबिक, यह एक तरह का सेल्फ मोटिवेशन ही है। निगेटिविटी और डिप्रेशन जैसी स्थिति में सेल्फ मोटिवेशन से बढ़कर दूसरा कोई उपाय भी नहीं हो सकता।
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3. परंपराओं के मुताबिक कुछ प्लान करें
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निगेटिविटी से ब्रेक लेने के लिए हम 'ट्रेडिशन' यानी परंपराओं का सहारा भी ले सकते हैं। परंपराओं के अनुसार कोई भी काम किसी खास मौके पर ही किया जाता है। जाहिर ही उस वक्त हम खुश और पॉजिटिव रहते हैं। इसलिए परंपरागत तौर पर किसी इवेंट या काम को प्लान करने से हम खुद को पॉजिटिविटी से जोड़ सकते हैं। यह निगेटिविटी का सबसे बड़ा तोड़ है कि हम खुद को वहां ले जाएं, जहां से पॉजिटिविटी आ सकती है।
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