Dainik Bhaskar
कोरोनावायरस का बच्चों के दिमाग पर गलत असर पड़ रहा है। वजह- बच्चे लंबे समय से घर पर ही हैं। उनका स्कूल, एक्सरसाइज, खेलकूद, घूमना-फिरना सब बंद है। इसके चलते बच्चे चिड़चिड़े हो रहे हैं। ऐसे में पैरेंट्स के सामने बड़ी चुनौती है कि वे बच्चों को कैसे संभालें? उन्हें कैसे खुश रखें? ताकि कोरोना का उनके दिमाग पर असर न पड़े।
इमोशनल इंटेलिजेंस एंड सोशल इंटेलिजेंस किताब के राइटर डेनियल गोलेमन कहते हैं कि एक पैरेंट्स के नाते अगर आप अपने बच्चों में कोई पॉजिटिव चेंज देखना चाहते हैं, तो सबसे पहले आपको उनकी फीलिंग्स को समझना होगा।
बच्चों में चिड़चिड़ापन क्यों आता है?
बच्चों में चिड़चिड़ापन 'मेल्टडाउन' के चलते आता है। मेल्टडाउन एक दिमागी प्रक्रिया के चलते होता है। छोटे बच्चों में मेल्टडाउन बहुत आम है। यह तब होता है, जब बच्चों को किसी चीज से खतरा या सुरक्षा की कमी महसूस होती है। इसी दौरान वे चिड़चिड़ापन जाहिर करते हैं। इस वक्त पैरेंट्स को बच्चों से तब-तक कोई बात नहीं करनी चाहिए, जब-तक वह मिड-फ्रीक आउट स्टेज में न आ जाएं।
मिड-फ्रीक आउट क्या है?
जब बच्चा जिद या गुस्सा करते हुए अचानक शांत हो जाता है तो उसे मिड-फ्रीक आउट स्टेज कहते हैं। यह लगभग सभी बच्चों में कॉमन है। इस स्टेज में बात करने पर पैरेंट्स यह पता लगा सकते हैं कि बच्चा क्यों जिद कर रहा है।
मेल्टडाउन की साइकोलॉजी क्या है?
व्हाय वी स्नैप के राइटर और न्यूरो साइंटिस्ट आर डॉग्लस फील्ड्स के मुताबिक, चिड़चिड़ेपन में दिमाग के दो हिस्से इन्वॉल्व रहते हैं। पहला हिस्सा है अमिग्डाला, जो गुस्से और डर जैसी भावनाओं पर पहले रिएक्ट करता है। दूसरा हिस्सा है हाइपोथैलेमस, जो शरीर के हार्ट रेट और टेम्प्रेचर जैसे फंक्शन को कंट्रोल करता है।
जब आपके बच्चे बेड पर अकेले सोने जैसी जिद करें, तो आपको यह समझ लेना चाहिए कि उसके दिमाग के पहले हिस्से अमिग्डाला ने कोई थ्रेट या डर डिटेक्ट किया है। इसी वजह से दिमाग के दूसरे हिस्से 'हाइपोथैलेमस’ ने उसे सोने की तरफ आकर्षित करना शुरू कर दिया है। ऐसे में आपको अपने बच्चे को वही करने देना चाहिए, जो वह करने की जिद कर रहा है।
बच्चों की आंखों में देखकर बात करने से वे जल्दी मान जाते हैं
हार्वर्ड मेडिकल स्कूल में न्यूरोसाइंस के प्रोफेसर डॉक्टर चार्ल्स नेल्सन के मुताबिक, बच्चे को मनाने के दौरान सबसे अच्छा जैश्चर होता है कि आप उसके सामने घुटनों के बल बैठ जाएं। इसके बाद उनके दोनों हाथों को पकड़ कर उनकी आंखों में देखकर बात करें। ऐसे में बच्चे के जल्दी नॉर्मल होने की संभावनाएं ज्यादा रहती हैं। बच्चे जल्द खुश हो जाते हैं।
बच्चों की सोच को समझने की कोशिश करें
वैज्ञानिकों का कहना है कि कोरोना की वजह से जीने का तौर-तरीका बदला है। आप भी खुद को बदलें। परंपरागत तौर-तरीकों से बाहर आएं। बच्चों की सोच को समझने की कोशिश करें।
मनोवैज्ञानिकों के मुताबिक, मोटिवेशन दो तरीके के होते हैं। पहला आंतरिक (Internal) और दूसरा बाहरी (External)। जानते हैं कि दोनों क्या हैं-
इंटरनल मोटिवेशन से किसी काम को करने में हमें ज्यादा मजा आता है। काम के बाद संतुष्टि मिलती है। इसके अलावा सीखने की हमारी ललक और ज्यादा बढ़ जाती है।
एक्सटर्नल मोटिवेशन से किसी काम में हमारा आउटकम यानी परिणाम बेहतर होता है। जैसे- जब हम किसी परीक्षा से पहले कड़ी मेहनत करते हैं और नंबर अच्छा आ जाते हैं तो उसके पीछे हमारी एक्सटर्नल मोटिवेशन होती है।
दुनिया में हर 10 में से 1 बच्चा अपनी भावनाएं शेयर करने में झिझकता है
बचपन सीखने-समझने और चीजों को एक्सप्लोर करने का सबसे अच्छा दौर होता है। एक इंसान अपनी पूरी लाइफ में जितना सीख पाता है, उसका 50% अपने बचपन में सीखता है। कुछ ऐसे बच्चे भी होते हैं, जो बहुत कम बोलते हैं। वे इंट्रोवर्ट हो जाते हैं। वे अपने मन की बात को दिल में ही रखते हैं। दुनिया में हर 10 में से 1 बच्चा अपनी भावनाओं, जरूरतों और समस्याओं को किसी से साझा करने में झिझक महसूस करता है।
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