Header Ads



Dainik Bhaskar

धार्मिक पुस्तकों के लिए पूरी दुनिया में मशहूर गीता प्रेस में काम कर चुके मेघ सिंह चौहान पिछले दो साल में 335 धार्मिक ग्रंथ और किताबें डिजिटल कर चुके हैं। जोधपुर के मूल निवासी मेघ सिंह चौहान 25 साल तक गीता प्रेस गोरखपुर में असिस्टेंट मैनेजर रहे। कुछ साल पहले उन्होंने गीता प्रेस की किताबों को ई-बुक में तब्दील करने की ठानी।

2017 में नौकरी छोड़ शुरू किया काम

संस्थान में नौकरी करते हुए यह संभव नहीं हुआ तो इसके लिए उन्होंने 2017 में गीता प्रेस की नौकरी छोड़ दी। नौकरी छोड़ने के बाद भी उन्हें कई जगहों से लाखों रुपए महीने के पैकेज का ऑफर मिला, लेकिन उन्होंने ठुकरा दिया। उद्देश्य एक ही था कि युवाओं के हाथ में मोबाइल है तो इस मोबाइल में युवा पीढ़ी को संस्कार लाने वाली कुछ चीजें को भी उपलब्ध करवाना चाहिए। जोधपुर लौटकर 2018 से उन्होंने गीता प्रेस की किताबों को डिजिटल प्लेटफार्म पर लाने के लिए काम शुरू किया।

इसके लिए गीता सेवा ट्रस्ट एप बनाने के अलावा वेबसाइट, इंस्टाग्राम, फेसबुक, व्हाट्सएप पर लाने के लिए काम शुरू किया। इसके लिए लोगों की मदद से गीता सेवा ट्रस्ट बनाया और मात्र दो साल में धर्म ग्रंथों की 335 पुस्तकों को हिंदी-अंग्रेजी की ई-बुक में बदल दिया।

आज साढ़े 3 लाख लोग डिजिटल प्लेटफार्म से जुड़े हैं। अब कन्नड़, तमिल, बांग्ला सहित सहित क्षेत्रीय भाषाओं में धार्मिक पुस्तकों को डिजिटल प्लेटफार्म पर लाने के लिए काम हो रहा है। 2021 में तक अधिकांश क्षेत्रीय भाषाओं में गीता प्रेस की पुस्तकें उपलब्ध होंगी, वो भी निशुल्क।

स्कैन की जगह हर शब्द को दोबारा टाइप किया गया
मेघ सिंह कहते हैं कि इन्हें पढ़ने के लिए पुस्तकों को धार्मिक ढंग से सहेजना भी होता है। हजारों पेजों की पुस्तकों को आसानी से पढ़ा जा सके, इसके लिए स्कैन करने की जगह हर शब्द को टाइप किया गया। 50 लोगों की टीम ने दिन-रात काम किया। लोगों की मदद से गीता सेवा ट्रस्ट बनाया और गीता प्रेस की अधिकांश पुस्तकें आज एक एप पर मुफ्त में ऑनलाइन उपलब्ध हैं। अन्य भाषाओं के लिए अब भी लोग घर से काम कर रहे हैं।

सबसे बड़ी खासियत, हर पुस्तक को पढ़ने के साथ हर शब्द का शुद्ध उच्चारण साथ-साथ सुनने को मिलता है। यानी अगर आप रामायण पढ़ रहे हैं तो एप पर साथ-साथ उच्चारण भी ऑडियो में चलता रहेगा। गीता ट्रस्ट गोरखपुर के ट्रस्टी ईश्वर प्रसाद पटवारी कहते हैं कि गीता प्रेस और गीता सेवा ट्रस्ट दोनों अलग ईकाई हैं। लेकिन दोनों में कोई आपत्ति या विवाद नहीं है।

चूंकि गीता प्रेस डिजिटल प्लेटफार्म पर नहीं आ सकता था तो गीता सेवा ट्रस्ट ये काम कर रहा है। लॉकडाउन के दौरान सबसे ज्यादा लोग डिजिटल प्लेटफार्म पर आए और लाभ लिया। मेघ सिंह बताते हैं कि गीता प्रेस में तकनीकी काम देखते हुए हमने रिसर्च किया कि देश में सब कुछ डिजिटल होता जा रहा है। हर युवा के हाथ में मोबाइल है लेकिन हमारी धार्मिक किताबों का डिजिटल वर्जन नहीं है।

मैंने ट्रस्ट से बात की। उन्हें समझाया कि अब हमें समय के साथ गीता प्रेस को डिजिटल करना चाहिए। इसके लिए डिजिटल प्लेटफार्म तैयार करना चाहिए। ट्रस्ट ने मुझे सलाह दी कि तुम चाहो तो व्यक्तिगत तौर पर डिजिटल प्लेटफार्म तैयार कर सकते हो। लेकिन ट्रस्ट की सलाह मानकर काम करना संभव नहीं था, क्योंकि नौकरी के दौरान इतना समय निकालना और डिजिटल प्लेटफार्म के लिए मददगार ढूंढना संभव नहीं था। मैंने फैसला लिया की नौकरी छोड़कर ये काम करुंगा। ट्रस्ट ने कहा कि हमारी तरफ से पूरा सहयोग रहा, ये अलग बात है कि ई-बुक तैयार करने में ट्रस्ट मेरी मदद नहीं कर सकता था।



आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
335 धार्मिक ग्रंथों को डिजिटल करने वाले मेघ सिंह।


from Dainik Bhaskar /national/news/with-online-reading-you-can-also-hear-pronunciation-their-35-lakh-users-127963894.html

No comments

If any suggestion about my Blog and Blog contented then Please message me..... I want to improve my Blog contented . Jay Hind ....

Powered by Blogger.