Dainik Bhaskar
कहानी- रामायण में श्रीराम, लक्ष्मण और सीता अयोध्या से वनवास के लिए निकल चुके थे। राम के दुःख में राजा दशरथ की मृत्यु हो चुकी थी। उस समय भरत और शत्रुघ्न अपनी नानी के यहां थे। जब वे लौटकर आए तो उन्हें सारी बातें मालूम हुईं।
अयोध्या के लोग भरत पर भी शक कर रहे थे कि ये भी कैकयी और मंथरा के साथ मिला हुआ है। भरत ने सभी से कहा कि वे ये राजपाठ नहीं लेंगे और राम को वनवास से वापस लेकर आएंगे। भरत बहुत जिम्मेदार और गंभीर व्यक्ति थे।
वे अपनी माताओं और अयोध्या के लोगों को साथ लेकर श्रीराम को मनाने के लिए चित्रकूट पहुंच गए। भरत ने राम से कहा कि आप अयोध्या वापस चलें, ये राज्य आपका ही है। राम ने बोले कि मैं पिता के वचन का पालन करूंगा।भरत के बार-बार आग्रह करने पर राम ने भरत को अपनी चरण पादुकाएं दे दीं। भरत दोनों पादुकाओं को सिर पर रखकर लौट आए।
वे अयोध्या में नहीं गए, बल्कि नगर के बाहर ही नंदीग्राम में उन्होंने एक कुटिया बनाई। पादुकाओं को राजगादी पर रखा और पादुकाओं को ही राजा माना। भरत ने 14 वर्षों तक नंदीग्राम से ही अयोध्या की पूरी व्यवस्था बहुत अच्छी तरह चलाई। इस दौरान अयोध्या में कभी कोई संकट नहीं आया। किसी बाहरी राजा ने आक्रमण नहीं किया, ना ही कभी अयोध्या में बिना राजा के प्रजा ने कोई विद्रोह जैसा काम किया।
भरत नंदीग्राम में रह कर ही पूरे नगर और व्यवस्था पर नजर रखते थे, हर छोटी से छोटी घटना की जानकारी लेते थे। उन्होंने कभी ये महसूस ही नहीं होने दिया कि अयोध्या का राज सिंहासन खाली है।
सीख- हम काम ऑफिस से या घर से, कहीं से भी करें, जिम्मेदारी का अहसास हमेशा रहना चाहिए। काम पर पूरी पकड़ रखें और गंभीरता के साथ सारे दायित्व पूरे करें।
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