Dainik Bhaskar
यूपी के जालौन जिले में आने वाले रामपुरा गांव के विकास उपाध्याय कभी ब्रेड बेचा करते थे। आज करोड़ों के टर्नओवर वाली कंपनी के मालिक हैं। दो से तीन लाख रुपए उनकी मंथली इनकम है। विकास खुद बता रहे हैं कि विपरीत हालात में उन्होंने खुद को कैसे आगे बढ़ाया और कैसे अपना बिजनेस सेट किया।
कुछ सालों पहले तक मेरे परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत खराब थी। पिताजी गांव में ही एक छोटी से किराने की दुकान चलाते थे, उससे ही परिवार का गुजर बसर होता था। मां को बीमारी हुई तो पिताजी को कर्ज लेना पड़ा और स्थिति पहले से भी ज्यादा खराब हो गई।
हालात इतने बिगड़े कि पिताजी गांव छोड़कर दिल्ली चले गए और वहां सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी करने लगे। उस समय मेरी उम्र महज 9 साल थी। तभी मेरे दिमाग में ये चलने लगा था कि मैं ऐसा क्या करूं, जिससे कुछ कमाई हो।
एक दिन घर के सामने से कुछ बच्चों को गुजरते देखा। वो चिल्ला रहे थे कि ब्रेड ले लो, ब्रेड ले लो। उन्हें देखकर लगा कि क्यों न ब्रेड बेचूं। कुछ न कुछ तो मिलता होगा, तभी ये लोग भी बेच रहे हैं, तो मैंने भी ब्रेड बेचना शुरू कर दी।
इससे घर में थोड़ी बहुत मदद होने लगी। मैं दिन-रात यही सोचते रहता था कि और क्या कर सकता हूं। गांव की मंडी में आसपास के किसान सामान लाकर बेचा करते थे। मैंने सोचा, इनसे माल खरीदकर सड़क किनारे बेचता हूं, कुछ कमीशन तो मिलेगा। फिर वो काम शुरू कर दिया।
रिचार्ज वाउचर बेचे
इन सबके बीच 10वीं क्लास की एग्जाम दी लेकिन महज 41 परसेंट से जैसे-तैसे पास हुआ। मुझे लगने लगा था कि पढ़ाई मेरे लिए बनी ही नहीं है। लेकिन पिताजी चाहते थे कि जो काम मैं नहीं कर पाया, वो मेरा बेटा करे। वो चाहते थे कि मैं बहुत पढ़ाई-लिखाई करूं और अच्छी नौकरी करूं।
मां ने उनके पास जो थोड़े बहुत गहने थे, उन्हें बेच दिया और मुझे पढ़ने के लिए उरई भेज दिया। क्योंकि वहां पढ़ाई की ज्यादा सुविधाएं थीं। मैं एक रिश्तेदार के घर रहने लगा। मैं घर के हालात के बारे में जानता था इसलिए सोच लिया था कि कुछ भी हो जाए लेकिन घर में अपनी प्रॉब्लम नहीं बताना। हर प्रॉब्लम को खुद ही सॉल्व करूंगा।
मैंने अपने एक दोस्त को घर की स्थिति बताई और उससे कहा कि तेरे पापा से बोलकर मुझे कुछ काम दिलवा दे, क्योंकि उसके पापा बिजनेसमैन थे। उसने उनसे मेरी मुलाकात करवाई तो उन्होंने मुझे रिचार्ज वाउचर बेचने का काम दिलवा दिया।
जब पहले दिन वाउचर बेचने गया तो मन में बहुत झिझक थी। मुझे छोटा बच्चा देखकर कोई सीरियस भी नहीं ले रहा था। लेकिन मैं सोचकर गया था कि वाउचर बेचकर ही आऊंगा। दिनभर घूमता रहा और शाम को एक दुकान पर मेरे पूरे वाउचर बिक गए। उस दिन मेरी खुशी का ठिकाना नहीं था।
फिर मैं हर रोज ये काम करने लगा। साथ में ग्यारहवी की पढ़ाई भी चल रही थी। कुछ ही महीनों में मार्केट में मुझे सब जानने लगे और मैं लाखों रुपए के वाउचर बेचने लगा। मुझे 40 से 50 हजार रुपए मंथली तक का कमीशन उस काम में मिलने लगा था।
ये सब घर में पता चला तो पापा गुस्सा हुए। बोले कि अभी तुम्हें बहुत पढ़ना है, इसलिए इन कामों में ज्यादा मत पड़ो। 12वीं के बाद मैंने बीटेक में एडमिशन लिया। जो पैसे जोड़े थे, वो कुछ दिनों बाद खत्म हो गए। कॉलेज में पढ़ाई सिर के ऊपर से जाती थी क्योंकि इंग्लिश में होती थी और मुझे इंग्लिश बिल्कुल समझ नहीं आती थी।
मैंने पैसे कमाने के लिए एक कंम्प्यूटर इंस्टीट्यूट ज्वॉइन कर लिया। कुछ घंटे वहां काम करता था। रात में सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी भी की। इस तरह अर्निंग फिर शुरू हो गई। धीरे-धीरे इंग्लिश भी समझने की कोशिश की। इतना लेवल हो गया था कि जो पढ़ता था वो जैसे-तैसे समझ लेता था।
इस तरह चार साल बीत गए और मेरा बीटेक कम्पलीट हो गया। लखनऊ की एक कंपनी में प्लेसमेंट भी हो गया। सब बहुत खुश थे लेकिन मुझे खुशी नहीं थी क्योंकि मेरे अंदर बिजनेस का ही कीड़ा था।
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नौकरी छोड़ दी क्योंकि बिजनेस करने का जुनून था
जॉब में शुरुआती सैलरी बहुत कम थी और मेरा मन भी नहीं लग रहा था इसीलिए मैंने रिजाइन कर दिया। जो थोड़े बहुत पैसे जोड़े थे वो लेकर नोएडा आ गया। यहां कुछ दोस्त थे, उनके साथ रहने लगा और काम ढूंढने लगा। मैंने आईटी से बीटेक किया था इसलिए मैं वेबसाइट डेवलपमेंट के प्रोजेक्ट ढूंढ रहा था।
जिस बिल्डिंग में दोस्त रह रहे थे, उनके ऑनर को अपनी कंपनी की वेबसाइट बनवानी थी। मैंने उनके लिए ये काम किया। वो काम से खुश हुए तो मैंने उनसे कहा कि क्या आप मुझे रहने के लिए कोई जगह दे सकते हैं। उन्होंने बिल्डिंग के बेसमेंट में मुझे रहने को बोल दिया। मैं वहां रहने लगा।
अब मेरे दिमाग में किराया देने का टेंशन नहीं था। मैं सुबह से निकलता था और काम ढूंढने के लिए दिनभर घूमता था। छोटे-छोटे काम मिलना शुरू हुए। फिर कुछ दिनों बाद बीस हजार रुपए का एक बड़ा काम मिला। मैंने उसे टाइम पर पूरा किया।
मैं पूरा काम अपने बेसमेंट वाले घर से ही किया करता था। धीरे-धीरे मैंने एप्रोच बढ़ाना शुरू की। कुछ बाहर के काम भी मिलने लगे। फिर मैंने अपने एक दोस्त को और जोड़ दिया। हम दोनों प्रोजेक्ट्स पूरे करने लगे। 2015 में मैंने अपनी कंपनी रजिस्टर्ड करवा ली।
आज मेरी कंपनी में 40 इम्प्लाइज हैं। टर्नओवर करोड़ों में हैं। मंथली दो से तीन लाख रुपए की बचत हो जाती है। अब हमारी कंपनी का नोएडा मैं ऑफिस है। एक ब्रांच कनाडा में खोल चुके हैं और जल्द ही दुबई में भी खोलने जा रहे हैं। मैंने जिंदगी से यही सीखा है कि मेहनत का कोई विकल्प नहीं होता। आप हार्ड वर्क कर रहे हो तो सक्सेस जरूर मिलती है।
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