Dainik Bhaskar
'कल एक बाबा जी ट्रॉली से गिर गए थे। उनकी आंख फूट गई थी। हमने वॉट्सऐप ग्रुप में पोस्ट डाली तो तुरंत लोग मदद के लिए आ गए। उन्हें कार में डालकर एक लोकल डॉक्टर के पास ले गए। रात में दो लड़के उनके साथ भी सेवा करने के लिए रुके।' इसी तरह से किसान आंदोलन में सोशल मीडिया का इस्तेमाल न सिर्फ फेक न्यूज से फाइट करने के लिए किया जा रहा है, बल्कि छोटी-छोटी जरूरतों के लिए भी इसका इस्तेमाल हो रहा है।
टीकरी बॉर्डर पर किसानों के आंदोलन में शामिल यूथ ने खुद का आईटी सेल डेवलप किया है। जरूरी मैसेज लोगों तक तुरंत पहुंचाने के लिए वॉट्सऐप ग्रुप बनाए गए हैं। सिर्फ टीकरी बॉर्डर पर ही अब तक 10 हजार से अधिक लोगों को ग्रुप में जोड़ा जा चुका है। टीम में शामिल जीत सिंह बोरा के मुताबिक, इसका मकसद आंदोलन से जुड़ी जानकारियों को तुरंत आंदोलन में शामिल लोगों और गांव में रह रहे लोगों तक पहुंचाना है। उनकी टीम 26 नवंबर को यहां पहुंची थी। उस दिन ही बहादुरगढ़ भाईचारे के नाम से एक ग्रुप बनाया गया था। वो अब ऐसे कई वॉट्सऐप ग्रुपों में शामिल हैं।
अनूप सिंह चनौत भी 26 नवंबर को ही आंदोलन में शामिल हुए थे। आम आदमी पार्टी के आईटी सेल में रहे अनूप सोशल मीडिया को बहुत बारीकी से समझते हैं। वो आंदोलन की शुरुआत से ही टीकरी बॉर्डर पर हैं और यहां सोशल मीडिया पर युवाओं की टीम को मजबूत करने में जुटे हैं। अनूप बताते हैं, 'हमें नेशनल मीडिया पर भरोसा नहीं था। हमने अपना आईटी सेल बनाया, जिसमें आंदोलन में आए यूथ को शामिल किया। हमने हर ट्रैक्टर ट्रॉली से संपर्क किया और उसके आधार पर वॉट्सऐप ग्रुप का एक नेटवर्क बनाया। अब तक हम 60 से अधिक ग्रुप बना चुके हैं और जल्द ही ये आंकड़ा ढाई सौ को पार कर जाएगा।'
'वॉट्सऐप ग्रुपों से बॉर्डर पर होने वाले इवेंट की जानकारी तुरंत यहां ट्रालियों पर बैठे लोगों को मिल जाती है। ट्राली में जो लोग हैं, उनके ग्रुपों से गांव-गांव के लोग सीधे जुड़े हैं। एक मिनट में हमारी बात हरियाणा और पंजाब में घर-घर तक पहुंच जाती है।' अनूप कहते हैं, 'किसान आंदोलन के खिलाफ फेक न्यूज और मिसइंफर्मेशन का एक कैंपेन चल रहा है। हम जैसे यूथ इसका मुकाबला कर रहे हैं। हमारी यहां ग्राउंड पर टीमें हैं। इसके अलावा हमारी टीमें घरों और दफ्तरों से भी काम कर रही हैं। हम रोज रात को मीटिंग करते हैं। हमारी टीम का एक सदस्य पांच ग्रुप को हैंडल कर रहा है।'
वो कहते हैं, 'एक बार लीडरशिप से मैसेज क्लियर हो जाने के बाद हम उसे आंदोलन में शामिल लोगों और फिर गांव-गांव तक पहुंचा देते हैं। हम यहां फेक न्यूज और सरकार की तरफ से आंदोलन को बदनाम करने के लिए की जा रही कोशिशों से निपटने के लिए स्ट्रेटजी बनाते हैं।'
जीत सिंह बोरा कहते हैं, 'हम यहां के सीधे वीडियो डालते हैं। घर पर बैठे लोगों के साथ हर जानकारी शेयर हो रही है। लोगों को ये समझ में भी आ रहा है कि हमारी मांगें जायज हैं। हमें राशन से लेकर और किसी भी चीज की जरूरत पड़ती है तो हम सोशल मीडिया पर पोस्ट डालते हैं। पोस्ट डालते ही सबकुछ बॉर्डर पहुंच जाता है।' आंदोलन में शामिल युवा एक दूसरे का कंटेंट फेसबुक और ट्विटर पर शेयर करते हैं ताकि रीच बढ़ सके।
मोनी खालरामना भी फेसबुक पर लाइव करते हैं। वो बताते हैं, 'नेशनल मीडिया किसानों के खिलाफ चीजें दिखा रही हैं। हम सोशल मीडिया के माध्यम से किसानों को जागरुक कर रहे हैं। ग्राउंड लेवल की रिपोर्ट लोगों को दिखाते हैं। जो रिपोर्ट्स किसान आंदोलन के खिलाफ दिखाई जा रही हैं, उसे भी स्पष्ट करते हैं। लोग इस बात को लेकर कंफ्यूज हैं कि किस चैनल पर आंदोलन का सच देखें। आंदोलन की आगे की रणनीति समझने के लिए भी लोग सोशल मीडिया देखते हैं।'
मोनी बताते हैं, 'अमेरिका से एक एनआरआई भाई आज ही हमारे वीडियो देखकर यहां पहुंचे। वो किसानों के लिए खाने-पीने के सामान लेकर पहुंचे थे। हम सोशल मीडिया के माध्यम से किसान नेताओं का मैसेज लोगों तक पहुंचा रहे हैं। इस बड़ी लड़ाई में हम छोटे सिपाही हैं। हम अपने माध्यम से पंजाब-हरियाणा का भाईचारा भी दिखा रहे हैं।'
यहां ट्रालियों में बैठे युवा फेसबुक और ट्विटर पर आंदोलन के खिलाफ की जा रही पोस्ट पर जाकर कमेंट में किसानों का पक्ष रखते हैं। मोबाइल फोन को ये आंदोलनकारी हथियार की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं। कई बार मोबाइल नेटवर्क में दिक्कत रहती है। इससे निबटने के लिए आसपास ब्रॉडबैंड का इंतजाम भी किया गया है ताकि कंटेंट को तेज रफ्तार से शेयर किया जा सके।
किसानों का अखबार ट्राली टाइम्स
नविकरन नथ पेशे से डेंटिस्ट हैं, लेकिन इन दिनों आंदोलन स्थल पर निकल रहे चार पन्नों के अखबार ट्राली टाइम्स की टीम का हिस्सा हैं। ये अखबार आंदोलन से जुड़ी खबरें प्रकाशित करता है और इसे मुफ्त में आंदोलन स्थल पर बांटा जाता है। नवकिरन के मुताबिक, फिलहाल उनकी टीम सप्ताह में दो बार इस अखबार को निकाल रही है। इसका एक एडिशन छप चुका है और दूसरा प्रिंट में है। पहले एडिशन में अखबार की दो हजार कॉपियां छापी गईं थीं।
नवकिरन कहती हैं, 'दिल्ली के चार बॉर्डर पर बड़ा आंदोलन चल रहा है। हम हर बॉर्डर से खबर लाते हैं और पब्लिश करते हैं। स्टेट मीडिया और मेनस्ट्रीम मीडिया आंदोलन के खिलाफ प्रोपेगैंडा कर रहा है। उसका जवाब देने के लिए हम ये अखबार लेकर आए हैं।' इस अखबार को हिंदी और पंजाबी भाषा में प्रकाशित किया जा रहा है। नवकिरन कहती है, 'पंजाबी पढ़ने वाले हिंदी वालों के लिए खबर पढ़ देते हैं, जबकि हिंदी वाले पंजाबी भाषी लोगों के लिए खबर पढ़ देते हैं।'
नवकिरन कहती हैं, 'मीडिया के प्रोपेगैंडा का जवाब मीडिया के जरिए ही दिया जा सकता है। आंदोलन अपना खुद का मीडिया डेवलप कर रहा है। नेशनल मीडिया ने जो भरोसा खोया है, हम उसे फिर से मजबूत कर रहे हैं।'
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