Dainik Bhaskar
जिम कोरियर एक सफल टेनिस खिलाड़ी थे। उन्होंने काफी लंबे समय तक टेनिस खेला और अच्छा प्रदर्शन करते रहे और लंबे समय तक शीर्ष खिलाड़ियों में शामिल रहे। मुझे नहीं लगता कि ‘मुश्किल’ शब्द की व्याख्या जिम कोरियर से बेहतर किसी और ने की है। उन्होंने कहा, ‘प्लीज एक बात समझिए, अगर कुछ करना आसान है, तो इसे अभी किया जा सकता है।
अगर यह मुश्किल होगा तो इसमें कुछ और समय लगेगा।’ बस यही अंतर है। ऐसा बिल्कुल नहीं है कि उसे न किया जा सके। अच्छी चीजें मुश्किल होती हैं और उनमें समय भी लगता है। लेकिन, इसका मतलब यह बिल्कुल नहीं है कि इन्हें किया ही नहीं जा सकता। बस इन्हें और वक्त लेने दीजिए।
अगर हर काम तुरंत ही हो जाए तो उनका कोई मोल नहीं रहेगा। मान लीजिए कि सड़क की सतह पर 10 रुपए का नोट पड़ा है। तब आप उसे 10 रुपए ही कहेंगे। अगर आप तीन फीट गड्ढा खोदते हैं और फिर 10 रुपए मिलते हैं तो आप उसे खजाना कहेंगे। दोनों एक ही चीज हैं, लेकिन तीन फीट का गड्ढा खोदने में लगी मेहनत से उसका 10 रुपए मोल बढ़ गया। मेहनत करना जीवन का हिस्सा है, प्रयास करना जीवन का हिस्सा है।
वह ईमानदारी, जो आज आपके जीवन का हिस्सा है, मुश्किल से ही आई होगी। जीवन ने आपके समक्ष अनंत अवसर पेश किए होंगे, आपको उन कुछ पलों में बेईमान होकर भौतिक सुखों के फायदे दिखाए होंगे। और इन अस्थायी भौतिक सुखों से, लालच से खुद को बचाए रखने, अपने निजी ईमानदारी के गुण को बनाए रखने में मुश्किल तो हुई होगी। खुद में यह बदलाव लाना मुश्किल रहा होगा, लेकिन इसका मोल था। एक सकारात्मक आदत बनाना या नकारात्मक आदत को छोड़ देना मुश्किल तो होगा, लेकिन इसका मोल है, इसका लाभ है।
यहां तक कि अगर आप ‘कुछ न करना’ भी चाहेंगे, तो वह भी आसान नहीं होगा। पहले दिन से ही बहुत ज्यादा नाटकीयता रहेगी। उदाहरण के लिए किसी ने तय किया कि आज से वह कुछ नहीं करेगा। वह अपनी पत्नी को बुलाता है और कहता है, ‘सुनो मैं आज से कुछ नहीं करूंगा। बस आराम करूंगा। फोन का रिसीवर अलग कर दो। मोबाइल बंद कर दो।
मैं अपना कमरा बंद कर रहा हूं, मुझे कोई व्यवधान नहीं चाहिए।’ फिर वह सोचेगा कैसे आराम करूं। एक अच्छा तकिया चुनने से शुरुआत होगी। फिर ध्यान की स्थिति में बैठने का प्रयास करेगा। बहुत से विचार आने लगेंगे। ‘कौन-सी पोजीशन अच्छी होगी… उन्होंने कहा था कि पालथी लगाकर बैठना जरूरी नहीं है… थोड़ा टिक कर बैठ जाता हूं, पीठ को आराम मिलेगा... जमीन पर नहीं बैठना चाहिए, चटाई बिठा लेता हूं… गरमी लग रही है, पंखा चला लेता हूं… हम्म, जब ये पंखा एक की स्पीड पर चलता है तो इसकी ब्लेड दिखती हैं, पांच पर नहीं दिखतीं… वो महात्रया रा ने कौन-सा सिद्धांत बताया था, टीओई, थियोरी ऑफ… गूगल करके देखना पड़ेगा… कोई फोन क्यों नहीं उठा रहा, अनुमा जरा फोन देखो... हम्म… महात्रया रा ने कहा था की छोटे-छोटे से शुरुआत करना चाहिए… चलो आज के लिए इतना ‘कुछ न करना’ पर्याप्त है... अब कुछ कर लेता हूं।’ और वह उठ जाएगा।
पहले दिन इतना ही हो पाएगा। और इसके बाद कुछ होगा, जो बहुत जरूरी है। वह फेसबुक पर जाएगा और पोस्ट करेगा, ‘मैं आज से ध्यान करना शुरू किया है।’ और बहुत से लोग उसे लाइक करेंगे। फिर वह तीन बाद फोटोग्राफर को बुला लेगा। अपनी फोटो खिंचवाने पर मेहनत करने लगेगा। ‘देखो यहां से फोटा लेना… ये लाइट अच्छी रहेगी… थोड़ी नीली रोशनी डालना…।’ यह भी मुश्किल ही है। यह आसान नहीं होगा, खासतौर पर कॉफी के समय में, जब कॉफी उबलने की खुशबू आएगी। ध्यान भटकेगा। मुश्किल है, लेकिन उसका मोल है, उससे लाभ है।
इसीलिए जिम की बात बिल्कुल सही है। अगर कोई चीज आसान है, तो अभी हो जाएगी। मुश्किल है, तो उसमें समय लगेगा। लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं है, जो नहीं किया जा सके।
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