Dainik Bhaskar
पहली कड़ी में हमने अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव और इसके सबसे अहम चरण यानी इलेक्टोरल कॉलेज के बारे में विस्तार से जाना। लेकिन, कहानी यहां खत्म नहीं होती। इलेक्टोरल कॉलेज या कहें राष्ट्रपति चुनाव का एक बेहद अहम हिस्सा अभी समझना बाकी है। इसे कहते हैं- विनर टेक ऑल सिस्टम (winner take all system).
कुछ एक्सपर्ट्स इसे अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव का काला हिस्सा या ब्लैक पार्ट कहते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने भी 2018 में इस पर मजाकिया टिप्पणी की थी। लेकिन, अमेरिका के 50 में से 48 राज्य इसे परंपरा के तौर पर स्वीकार करते आए हैं। 2016 में मतदाताओं ने तो हिलेरी क्लिंटन को जिताया था। लेकिन, राष्ट्रपति बने डोनाल्ड ट्रम्प। क्यों? इसी विनर टेक ऑल सिस्टम की वजह से। तो चलिए इस सिस्टम को समझते हैं।
जो जीता वो ही सिकंदर...
2016 में कैलिफोर्निया और टेक्सॉस राज्यों के चुनाव नतीजों को देखिए। बात जल्द समझ पाएंगे। टेक्सास में ट्रम्प को 52.2% और हिलेरी को 46.1% पॉपुलर वोट मिले। राज्य में कुल 38 इलेक्टोरल वोट थे। सभी ट्रम्प को मिले। हिलेरी को कुछ नहीं। कैलिफोर्निया में 55 इलेक्टोरल वोट थे। हिलेरी को 61% पॉपुलर वोट मिले। वे सभी 55 इलेक्टोरल वोट जीत गईं। अब सवाल यह कि आखिर दूसरे नंबर पर रहने वाले कैंडिडेट को कोई भी इलेक्टोरल वोट क्यों नहीं मिला? इसकी वजह विनर टेक्स ऑल सिस्टम है।
आखिर क्या बला है ये ‘विनर टेक ऑल’
दरअसल, इस सिस्टम का सीधा सा गणित यह है कि अगर किसी कैंडिडेट को एक राज्य में 50% से ज्यादा पॉपुलर वोट मिल जाएंगे तो उस राज्य के तमाम इलेक्टोरल वोट भी उस कैंडिडेट को मिलना तय हो जाएगा। दूसरे स्थान पर रहा कैंडिडेट खाली हाथ रहेगा। 2016 में ट्रम्प के साथ टेक्सास और हिलेरी के साथ कैलिफोर्निया में यही हुआ। मायने और नेब्रास्का जैसे दो छोटे राज्य इस सिस्टम को फॉलो नहीं करते। उनका इससे मिलती जुलती अलग व्यवस्था है। बाकी 48 राज्य विनर टेक ऑल पर ही चलते हैं।
थोड़ा और समझिए
2016 में हिलेरी क्लिंटन को 48.2% जबकि ट्रम्प को 46.1% पॉपुलर वोट मिले थे। लेकिन, मामला जब इलेक्टोरल कॉलेज पहुंचा तो ट्रम्प ने बाजी पलट दी। बड़े राज्यों में वे जीते थे। विनर टेक ऑल सिस्टम के चलते इलेक्टोरल कॉलेज में उन्हें कुल 304 जबकि हिलेरी को 227 वोट मिले। यानी जिसे जनता ने कम पसंद किया, वो विनर टेक ऑल की वजह से राष्ट्रपति बन गया।
क्या दल-बदल जैसा कुछ भी मुमकिन है?
आमतौर पर ऐसा होता नहीं है। क्योंकि, इलेक्टर्स अपनी पार्टी और कैंडिडेट की शपथ से बंधे होते हैं। 29 राज्यों में कानून है कि अगर इलेक्टर्स ने शपथ तोड़कर दूसरे कैंडिडेट को वोट दिया तो कार्रवाई होगी। लेकिन, सजा का प्रावधान किसी राज्य में नहीं है। राष्ट्रपति चुनाव के इतिहास में अब तक 163 बार ऐसा हो चुका है जब इलेक्टर्स ने शपथ तोड़कर विरोधी उम्मीदवार को टिकट दे दिया। अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट भी कह चुका है कि शपथ भंग करने वाले इलेक्टर्स को सजा होनी चाहिए, लेकिन राज्य या केंद्र ऐसा कोई कानून नहीं बनाते।
आलोचना क्यों होती है?
कई लोग ये मानते हैं कि अमेरिका में टू पार्टी सिस्टम है। यानी सिर्फ दो ही पार्टियां हैं- रिपब्लिकन और डेमोक्रेट। लेकिन, सच यह है कि वहां भी हमारी तरह बहुदलीय व्यवस्था यानी मल्टी पार्टी इलेक्टोरल सिस्टम है। ग्रीन पार्टी भी है। बहुत छोटी पार्टी और क्षेत्रीय दल जैसी है। लिहाजा, बहुत जिक्र नहीं किया जाता। विनर टेक ऑल के बारे में कहा जाता है कि इससे बड़े राज्यों को फायदा और छोटे राज्यों को नुकसान होता है। बड़ी पार्टियां फायदे में रहती हैं और छोटी नुकसान में। कुछ लोग तो कहते हैं कि विनर टेक ऑल की वजह से ही अमेरिका में नस्लवाद बढ़ा। क्योंकि, अश्वेत आबादी छोटे राज्यों और छोटे शहरों में ज्यादा है।
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