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Dainik Bhaskar

बात अप्रैल-मई की है। कोरोना मरीजों के इलाज के लिए सरकार कॉन्ट्रैक्ट पर हेल्थ वर्कर्स को अपॉइन्ट कर रही थी। 11 मई को रीवा जिले में मेरी ज्वॉइनिंग हुई। मेरा काम अलग-अलग इलाकों में जाकर सैंपलिंग करना था। इसमें हर रोज दो से तीन कोरोना पॉजिटिव आते थे। मेरे घरवाले परेशान थे। उनका कहना था कि इन हालातों में ड्यूटी करने की जरूरत क्या है? लेकिन मैंने सोचा था कि कोरोना में ड्यूटी कर रही हूं, तो हो सकता है कि सरकार आगे हमारे लिए कुछ करे। यह कहना है जयश्री मिश्रा का।

जयश्री 27 नवंबर को संक्रमित हो गईं। 26 नवंबर तक उन्होंने सैंपलिंग का काम किया था। ड्यूटी के दौरान ही उन्हें फीवर आया। बहुत थकान होने लगी। सुबह जांच करवाई, तो पॉजिटिव आईं। हालत ज्यादा खराब थी, इसलिए वो दस दिनों तक आईसीयू में रहीं। अब हॉस्पिटल से उनकी छुट्टी हो चुकी है। जिस दिन बुखार आया था, उसके अगले दिन 28 नवंबर को उन्हें पता चला कि अब सरकार उनकी सेवाएं नहीं लेना चाहती। उनका कॉन्ट्रैक्ट खत्म कर दिया गया है।

जयश्री का दर्द ये है कि जब हमने कोरोना मरीजों को बचाने में अपनी जान तक दांव पर लगा दी, तो सरकार एकदम से हमारा साथ क्यों छोड़ रही है। अभी तो हमारे पास दूसरी नौकरी भी नहीं है। जहां काम करते थे, वो भी क्या पता अब रखेंगे या नहीं।

जयश्री की हालत इतनी खराब थी कि उन्हें दस दिनों तक आईसीयू में रहना पड़ा।

मप्र में 6213 हेल्थ वर्कर्स हुए थे अपॉइन्ट
देशभर में राज्य सरकारों ने कोविड-19 के चलते हेल्थ वर्कर्स को कॉन्ट्रैक्ट पर नियुक्त किया था। मप्र में यह नियुक्तियां अप्रैल-मई में की गई थीं। तब 6213 हेल्थ वर्कर्स को कॉन्ट्रैक्ट पर अपॉइन्ट किया गया था। शुरुआत में इनके साथ 3 महीने का करार हुआ था। यही हेल्थ वर्कर्स थे, जो अलग-अलग अस्पतालों में सेवाएं दे रहे थे। सैंपलिंग कर रहे थे। लैब में काम कर रहे थे। मरीजों को चेक कर रहे थे।

आयुष डॉक्टर्स को सरकार 25 हजार, स्टाफ नर्स को 20 हजार, एएनएम को 12 हजार, फार्मासिस्ट को 15 हजार और लैब टेक्नीशियन को 15 हजार रुपए सैलरी दे रही थी। तीन महीने की अवधि के बाद सरकार ने कॉन्ट्रैक्ट को बढ़ा दिया। जो बढ़ते-बढ़ते अक्टूबर तक आ गया। अब 50% स्टाफ का कॉन्ट्रैक्ट खत्म कर दिया गया है और बाकी का 31 दिसंबर तक खत्म किया जा सकता है। 4 दिसंबर को हेल्थ वर्कर्स ने राजधानी में प्रदर्शन भी किया था और मांग की थी कि स्थाई नियुक्ति दी जाए या संविदा पर रखा जाए। सरकार का कहना है कि अभी नियुक्ति के लिए बजट नहीं है।

तीन महीने की प्रेग्नेंसी थी, तब ज्वॉइन किया
कोरोना के दौर में कई हेल्थ वर्कर्स ऐसी भी थीं, जो प्रेग्नेंट थीं। फिर भी उन्होंने कोरोना वार्ड में नौकरी के लिए हामी भरी, क्योंकि हर किसी को उम्मीद थी कि सरकार आगे उन्हें संविदा नियुक्ति दे सकती है या कॉन्ट्रैक्ट बढ़ा सकती है। ऐसी ही एक स्टाफ नर्स प्रियंका पटेल हैं। प्रियंका ने 4 अप्रैल को सीधी जिले के कोविड सेंटर में ज्वॉइन किया था। इसके बाद कोविड केयर सेंटर में इनकी नियुक्ति हुई। ज्वॉइनिंग के वक्त प्रियंका को 3 महीने की प्रेग्नेंसी थी।

हमने पूछा कि प्रेग्नेंसी के बावजूद आप कोरोना में ड्यूटी के लिए तैयार हो गईं? तो बोलीं, 'परिवार ने तो मना किया था। मुझे लगा कि जब लोगों की जान खतरे में है, तो उन्हें बचाने के लिए हम जो कर सकते हैं, वह हमें करना चाहिए।'

2 अक्टूबर तक प्रियंका की ड्यूटी चली और 3 अक्टूबर को डिलेवरी हुई। कोविड के पहले प्रियंका नर्सिंग कॉलेज में पढ़ा रहीं थीं। कहती हैं कि ड्यूटी के दौरान कई बार मेरा बीपी लो हुआ। सीढ़ियां चढ़ने में दिक्कत होती थी। तीसरे फ्लोर तक चढ़ना पड़ता था। पति प्राइवेट जॉब में हैं, इसलिए नौकरी करना मेरे लिए जरूरी है। प्रियंका का कॉन्ट्रैक्ट अभी खत्म नहीं हुआ है, लेकिन 31 दिसंबर तक खत्म हो सकता है।

मप्र में कई हेल्थ वर्कर्स का कॉन्ट्रैक्ट 30 नवंबर को खत्म कर दिया गया है। बाकी का 31 दिसंबर तक खत्म किया जा सकता है।

जब पद खाली पड़े हैं, तो नियुक्तियां क्यों नहीं
रीवा जिले में आयुष मेडिकल ऑफिसर शशांक शर्मा की भी कांट्रेक्चुअल नियुक्ति हुई है। वे कहते हैं कि 30 नवंबर को सरकार ने एएनएम कैडर खत्म कर दिया। अब जिले में एक और संभाग में दो फार्मासिस्ट रखे जा रहे हैं। बाकी सभी को निकाल दिया।

उन्होंने बताया कि कोरोना में जब कोई काम के लिए आगे नहीं आ रहा था, तब हम लोग आए। अब सरकार अचानक बाहर फेंक रही है। भोपाल गए, तो वहां हम पर लाठियां बरसाई गईं। शर्मा की चिंता ये भी है कि प्रदेश में जब स्वास्थ्य विभाग में हजारों पद खाली पड़े हैं, तो कोरोना वॉरियर्स को नियुक्ति देकर स्वास्थ्य व्यवस्थाओं को मजबूत क्यों नहीं किया जा रहा। हालांकि सरकार की तरफ से इन लोगों को यही कहा गया है कि अभी नियुक्ति के लिए बजट नहीं है।

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