Dainik Bhaskar
पंजाब और हरियाणा के हजारों किसान पिछले 13 दिन से दिल्ली की सीमा पर डटे हुए हैं। आंदोलनकारी किसानों ने आज भारत बंद बुलाया है। इस बंद को कई राजनीतिक पार्टियों और ट्रेड यूनियनों ने भी समर्थन दिया है।
किसान मोदी सरकार के तीन नए कृषि कानूनों का विरोध कर रहे हैं। किसानों और केंद्र सरकार के बीच अब तक पांच दौर की बातचीत हो चुकी है। इसके बाद भी कोई सहमति नहीं बनी है। छठे दौर की बातचीत बुधवार को होनी है। इसके एक दिन पहले ये बंद बुलाया गया है।
आखिर ये बंद क्यों बुलाया गया है? बंद कब से कब तक के लिए बुलाया गया है? किसान किन मांगों पर अड़े हुए हैं? सरकार का नए कानूनों को लेकर क्या पक्ष है? किसानों के आंदोलन के बाद क्या सरकार इन्हें वापस ले सकती है? आइये जानते हैं...
आज का भारत बंद किसने बुलाया है?
बंद किसानों ने बुलाया है। ये किसान तीनों नए कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग के साथ पिछले 13 दिन से दिल्ली की सीमाओं पर डटे हैं। किसानों के बंद को कई विपक्षी दलों और ट्रेड यूनियनों ने समर्थन किया है।
बंद का समय क्या रहेगा, क्या बंद के दौरान किसी को छूट रहेगी?
बंद पूरे दिन का होगा, लेकिन चक्काजाम सिर्फ सुबह 11 बजे से दोपहर 3 बजे तक रहेगा। भारतीय किसान यूनियन के प्रवक्ता राकेश टिकैत ने कहा है कि हम आम आदमी को परेशान नहीं करना चाहते इसलिए
ऐसा टाइम रखा है, क्योंकि 11 बजे तक ज्यादातर लोग ऑफिस पहुंच जाते हैं और 3 बजे छुट्टी होनी शुरू हो जाती है। टिकैत ने कहा कि हम शांति से प्रदर्शन करते रहेंगे।
वहीं, किसान नेता बलदेव सिंह निहालगढ़ ने बताया कि मंगलवार को बंद के दौरान एम्बुलेंस और शादियों वाली गाड़ियां आ-जा सकेंगी।
The bandh will be observed the whole day tomorrow. Chakka jam till 3 PM. It will be a peaceful bandh. We are firm on not allowing any political leaders on our stage: Farmer leader Dr Darshan Pal at Delhi-Haryana Singhu border https://t.co/K0Q7z5Pz92 pic.twitter.com/2LoLdQ4hlJ
— ANI (@ANI) December 7, 2020
कौन-सी पार्टियां किसानों के बंद के समर्थन में हैं और कौन विरोध में?
अब तक करीब 20 राजनीतिक पार्टियां किसानों के बंद को समर्थन दे चुकी हैं। इनमें भाजपा की सहयोगी असम गण परिषद और राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी भी शामिल हैं। बंद का समर्थन करने वाली पार्टियों में कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, बसपा, डीएमके, राजद, टीआरएस, आप, शिवसेना, अकाली दल और सभी लेफ्ट पार्टियां शामिल हैं।
देश की दस केंद्रीय ट्रेड यूनियनों ने भी इस बंद का समर्थन किया है। किसानों ने कहा है कि भारत बंद के दौरान वो दिल्ली को जाने वाली सभी सड़कें ब्लॉक करेंगे। सभी टोल प्लाजा रोके जाएंगे और वहां प्रदर्शन किया जाएगा।
वहीं, गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रुपाणी का दावा है कि गुजरात के किसानों और APMC(Agricultural produce market committee) का भारत बंद को सपोर्ट नहीं है। तमिलनाडु सरकार के मंत्री डी. जयकुमार ने भी इसी तरह की बातें कही हैं।
#WATCH | गुजरात में किसानों और APMC की तरफ से भारत बंद को सपोर्ट नहीं है। गुजरात में ऐसी कोई स्थिति नहीं है। कल ये बंद सफल नहीं रहेगा। सरकार ने भी पूरी व्यवस्था की है कि बंद के नाम पर कोई हिंसक घटना न घटे: गुजरात CM विजय रूपाणी pic.twitter.com/22vnTXfV4O
— ANI_HindiNews (@AHindinews) December 7, 2020
For those holding protest without permission, law will take its own course: Tamil Nadu Minister D Jayakumar on #BharatBandh tomorrow#FarmLaws pic.twitter.com/UEQ9M5DveM
— ANI (@ANI) December 7, 2020
ये तीनों कानून क्या है, जिनका विरोध हो रहा है?
1. कृषि उपज व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन एवं सरलीकरण) विधेयक 2020: किसानों का कहना है कि इससे न्यूनतम मूल्य समर्थन (एमएसपी) प्रणाली समाप्त हो जाएगी। किसान यदि मंडियों के बाहर उपज बेचेंगे तो मंडियां खत्म हो जाएंगी।
हालांकि, सरकार दावा कर रही है कि एमएसपी पहले की तरह जारी रहेगी। मंडियां खत्म नहीं होंगी, बल्कि इस व्यवस्था में किसानों को मंडी के साथ ही अन्य स्थानों पर अपनी फसल बेचने का विकल्प मिलेगा।
2. कृषक (सशक्तिकरण व संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार विधेयक 2020: किसानों का कहना है कि कॉन्ट्रेक्ट करने में किसानों का पक्ष कमजोर होगा, वे कीमत निर्धारित नहीं कर पाएंगे। छोटे किसान को इससे नुकसान होगा। विवाद की स्थिति में बड़ी कंपनियों को लाभ होगा।
सरकार का दावा है कि कॉन्ट्रेक्ट करना है या नहीं, इसमें किसान को पूरी आजादी रहेगी। वह अपनी इच्छानुसार दाम तय कर फसल बेचेगा। अधिक से अधिक 3 दिन में पेमेंट मिलेगा। देश में 10 हजार फार्मर्स प्रोड्यूसर ग्रुप्स (एफपीओ) बन रहे हैं। ये एफपीओ छोटे किसानों को जोड़कर फसल को बाजार में उचित लाभ दिलाने की दिशा में काम करेंगे। विवाद स्थानीय स्तर पर ही निपटाया जाएगा।
3. आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक -2020: किसान कह रहे है कि इससे बड़ी कंपनियां आवश्यक वस्तुओं का स्टोरेज करेंगी। उनका दखल बढ़ेगा। कालाबाजारी भी बढ़ सकती है।
सरकार का दावा है कि इससे कृषि क्षेत्र में निजी निवेश बढ़ेगा। कोल्ड स्टोरेज एवं फूड प्रोसेसिंग के क्षेत्र में निजी निवेश बढ़ने से किसानों को बेहतर इंफ्रास्ट्रक्चर मिलेगा। किसान की फसल खराब होने की आंशका दूर होगी। वह आलू-प्याज जैसी फसलें निश्चिंत होकर उगा सकेगा। इंस्पेक्टर राज खत्म होगा और भ्रष्टाचार भी।
किसानों की मांग क्या है?
किसान नेता हन्नान मोल्लाह का कहना है कि शुरुआत में ही हमने मांग की है कि कानून को वापस लिया जाए। संशोधन नहीं चाहते। ऐसा लगता है कि 9 दिसंबर को मीटिंग में सरकार कानून वापस लेगी। किसान नेता राजेंद्र आर्य भी कहते हैं कि तीनों कानून रद्द करने के अतिरिक्त किसान किसी बात पर नहीं मानेंगे। जरूरत हुई तो एक साल तक सड़क पर बैठेंगे।
शनिवार को पांचवें दौर की मीटिंग के दौरान किसान नेता नरेश टिकैत ने कहा कि सरकार कृषि कानूनों की वापसी पर हां या ना में जवाब दे। तीन घंटे की बातचीत के बाद हल न निकलता देख किसान नेताओं ने सामने रखे कागज पर यस ऑर नो लिखकर मंत्रियों को दिखाया। कुर्सी पीछे कर मुंह पर उंगली रखकर बैठ गए थे। इसके बाद कृषि मंत्री ने किसानों से समय मांगा था। किसानों ने कहा कि हम आपको आखिरी बार समय दे रहे हैं।
किसानों की मांग पर सरकार क्या कह रही है?
किसानों ने चार दौर की बातचीत के बाद वार्ता में उन बिंदुओं पर लिखित जवाब मांगा जिन पर चौथे दौर की मीटिंग में सहमति बनी थी। सरकार ने किसानों को लिखकर दे भी दिया है। वहीं, मीटिंग में सरकार जब संशोधन की बात पर अड़ी हुई थी तो किसानों ने कहा कि जीएसटी में भी आप काफी संशोधन कर चुके हैं लेकिन फायदा कुछ नहीं हुआ।
किसानों का कहना है कि इन बिलों में हमने इतनी आपत्तियां दी हैं कि उनका संशोधन करने के बाद कानूनों का कोई मतलब ही नहीं रहेगा, इसलिए इन्हें पूरी तरह रद्द किया जाए।
...तो क्या कानून वापस ले सकती है सरकार?
5 दिसंबर को किसानों के साथ पांचवें दौर की बातचीत से पहले पीएम मोदी ने गृह मंत्री अमित शाह और तीन अन्य मंत्रियों के साथ मीटिंग की थी। सूत्रों के अनुसार, इस मीटिंग में कानून वापस लेने पर भी चर्चा हुई।
पांचवें दौर की बातचीत में जब गतिरोध खत्म नहीं हुआ तो सरकार ने एक बार फिर समय मांगा। अब नौ दिसंबर की बैठक में कुछ ठोस फैसला हो सकता है।
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