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Dainik Bhaskar

कोरोना वैक्सीन जिस तेजी से अप्रूव हो रही हैं और वैक्सीनेशन शुरू हो रहा है, उसी रफ्तार से उससे जुड़े विवाद भी सामने आ रहे हैं। नया विवाद वैक्सीन में इस्तेमाल होने वाले जिलेटिन को लेकर है, जो सुअर के गोश्त से बनाया जाता है। मुस्लिम देशों और संगठनों को इस पर आपत्ति है। वहीं, क्रिश्चियन कैथोलिक्स में इस बात को लेकर गुस्सा है कि कुछ वैक्सीन में अबॉर्ट किए गए भ्रूण से मिले सेल्स का इस्तेमाल किया है।

इन विवादों के बीच अलग-अलग देशों में सरकारें और धार्मिक संगठन भी सक्रिय हो गए हैं, ताकि वैक्सीन को लेकर किसी तरह का संदेह या फेक न्यूज प्रसारित न हो जाए। UAE में देश के सर्वोच्च धार्मिक संगठन फतवा काउंसिल ने कहा कि वैक्सीन में पोर्क जिलेटिन का इस्तेमाल हुआ भी होगा, तो वैक्सीन खानी थोड़ी है। यह तो दवा है। इंजेक्शन के तौर पर लगेगी। वहीं, इजरायल में यहूदी धार्मिक संगठन भी जिलेटिन से जुड़े विरोध को दूर करने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। कैथोलिक्स के संदेहों को दूर करने का जिम्मा वेटिकन ने उठाया है।

कैसे उठा यह विवाद, किस धर्म में किस बात का विरोध?

  • अक्टूबर में यह मुद्दा उठा था। इंडोनेशिया के डिप्लोमैट्स और मुस्लिम धर्मगुरु चीन गए थे। वे इंडोनेशिया के नागरिकों के लिए वैक्सीन की डील करने गए थे। तब धर्मगुरुओं ने ऐसी वैक्सीन लेने से इनकार कर दिया, जिसमें जिलेटिन का इस्तेमाल किया गया हो।
  • दरअसल, सुअर के गोश्त से बने जिलेटिन का इस्तेमाल वैक्सीन को स्टोरेज और ट्रांसपोर्ट के दौरान सेफ और इफेक्टिव रखने में होता है। जिलेटिन को लेकर वैक्सीन का विरोध पहली बार नहीं है। इससे पहले भी वैक्सीन का मुस्लिम देशों में विरोध होता रहा है।
  • सुअरों के गोश्त को लेकर मुस्लिमों के साथ-साथ परंपरावादी यहूदियों में विरोध है। भारत में भी इसे लेकर विरोध शुरू हो गया है। मुंबई में सुन्नी मुस्लिमों की रजा अकादमी के महासचिव सईद नूरी ने तो वीडियो संदेश जारी कर पोर्क-फ्री प्रोडक्ट्स की मांग की है।
  • सईद का कहना है कि मेड इन इंडिया और विदेशी वैक्सीन का ऑर्डर देने से पहले केंद्र सरकार उन वैक्सीन के इन्ग्रेडिएंट्स की लिस्ट जारी करें। चीनी वैक्सीन का ऑर्डर नहीं देना चाहिए, जिसमें पोर्क जिलेटिन का इस्तेमाल किया गया है।
  • कुछ हफ्ते पहले रोमन कैथोलिक्स में यह चर्चा थी कि वैक्सीन को बनाने में अबॉर्टेड भ्रूण के टिश्यू का इस्तेमाल किया है। अमेरिका के दो बिशप ने कहा था कि वैक्सीन बनाने की प्रक्रिया अनैतिक है। इस वजह से वे वैक्सीन नहीं लगवाएंगे। बाकी लोग भी न लगवाएं।

इस मुद्दे को धर्मगुरु कैसे देख रहे हैं?

  • UAE फतवा काउंसिल के प्रमुख शेख अब्दुल्ला बिन बयाह ने कहा कि वैक्सीन पर इस्लाम के पोर्क से बनाए प्रोडक्ट्स पर प्रतिबंधों का असर नहीं होगा। यह प्रोडक्ट मनुष्यों की जान बचाने के लिए है। वैक्सीन में इस्तेमाल पोर्क जिलेटिन को दवा समझा जाए और खाना नहीं।
  • इजरायल में रब्बीनिकल ऑर्गेनाइजेशन त्जोहर के चेयरमैन रब्बी डेविड स्टाव ने कहा कि यहूदी कानून में पोर्क के इस्तेमाल पर पाबंदी सिर्फ खाने तक सीमित है। अगर उसका इस्तेमाल दवा के तौर पर हो रहा है तो कोई समस्या नहीं है। इस पर प्रतिबंध नहीं है।
  • वेटिकन ने बयान जारी किया। कहा कि अबॉर्टेड भ्रूण से सेल्स पर रिसर्च के बगैर वैक्सीन बन जाए तो वह सही है। पर अगर यह संभव नहीं है और इस वजह से इस प्रक्रिया को आजमाया गया है तो यह अनैतिक नहीं है। रोमन कैथोलिक्स को ऐसी वैक्सीन स्वीकार करनी चाहिए।

भारत में उपलब्ध वैक्सीन में क्या होगा?

  • दरअसल, अब तक सिर्फ फाइजर, मॉडर्ना और एस्ट्राजेनेका ने ही बताया है कि उनकी वैक्सीन जिलेटिन-फ्री है। बाकी वैक्सीन कंपनियों ने कंटेंट्स के बारे में बहुत ज्यादा बात नहीं की है। भारत बायोटेक, जायडस कैडिला समेत अन्य कंपनियों ने भी यह नहीं बताया है।
  • इससे यह तो साफ है कि भारत में सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया (SII) में बन रही एस्ट्राजेनेका और ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की वैक्सीन पोर्क-फ्री होगी। इतना ही नहीं, भारत में इमरजेंसी अप्रूवल मांग रही फाइजर की वैक्सीन में भी पोर्क का इस्तेमाल नहीं हुआ है।
  • इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च में एपीडेमियोलॉजी और कम्युनिकेबल डिसीज के हेड साइंटिस्ट रहे डॉ. रमन गंगाखेड़ेकर ने बताया कि वैक्सीन में जिलेटिन इस्तेमाल होता रहा है। पर कोरोना के किस वैक्सीन में यह इस्तेमाल हो रहा है, जब तक कंपनियां नहीं बतातीं, तब तक कुछ भी कहा नहीं जा सकता।

विशेषज्ञ क्या कह रहे हैं इस मुद्दे पर?

  • ब्रिटिश इस्लामिक मेडिकल एसोसिएशन के महासचिव डॉ. सलमान वकार के मुताबिक, वैक्सीन की डिमांड, मौजूदा सप्लाई चेन, लागत और कम शेल्फ लाइफ की वजह से ज्यादातर वैक्सीन में पोर्सिन जिलेटिन का इस्तेमाल होता है।
  • वकार का कहना है कि इंडोनेशिया में ही विरोध की शुरुआत हुई है। वहां की सरकार ने वैक्सीन को सपोर्ट दिया है, पर कंपनियों को आगे आना होगा। वे इस प्रक्रिया को जितनी पारदर्शी और ओपन रखेंगी, उतना ही ज्यादा प्रोडक्ट पर लोगों का भरोसा बनेगा।
  • यूनिवर्सिटी ऑफ सिडनी में एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. हरुनोर रशीद के मुताबिक, पोर्क जिलेटिन के वैक्सीन में इस्तेमाल को लेकर बहस काफी पुरानी है। सीधी-सी बात है कि अगर आपने यह वैक्सीन नहीं ली, तो आपको ज्यादा नुकसान होगा।
  • कुछ कंपनियों ने वर्षों तक पोर्क-फ्री वैक्सीन बनाने पर काम किया है। स्विस फार्मा कंपनी नोवार्टिस ने पोर्क-फ्री मेनिंजाइटिस वैक्सीन डेवलप की। वहीं, सऊदी और मलेशिया की एजे फार्मा भी अपनी ऐसी ही वैक्सीन पर काम कर रही है।

अन्य मुस्लिम देशों में चीनी वैक्सीन को लेकर क्या स्थिति है?

  • वैक्सीन का विरोध इंडोनेशिया के धर्मगुरुओं के चीन दौरे से शुरू हुआ। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, चीनी कंपनियों ने अपनी वैक्सीन में पोर्क जिलेटिन का इस्तेमाल किया है। लेकिन, अब भी कई मुस्लिम देशों में चीनी वैक्सीन इमरजेंसी यूज के तहत लगाए जा रहे हैं।
  • पाकिस्तान में चीनी कंपनी कैनसिनो बायोलॉजिक्स वैक्सीन के अंतिम स्टेज के क्लीनिकल ट्रायल्स चल रहे हैं। बांग्लादेश ने सिनोवेक बायोटेक की वैक्सीन के क्लीनिकल ट्रायल्स के लिए एग्रीमेंट किया था। बाद में फंडिंग विवाद की वजह से यह ट्रायल्स टल गए।
  • विशेषज्ञों का कहना है कि लिमिटेड सप्लाई और पहले से मौजूद लाखों डॉलर की डील्स की वजह से इंडोनेशिया जैसे मुस्लिम आबादी वाले देशों में वह वैक्सीन उपलब्ध होती रहेंगी, जिन पर जिलेटिन-फ्री नहीं लिखा होगा।


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