Dainik Bhaskar
भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान विराट कोहली ऑस्ट्रेलिया में मैच छोड़कर पत्नी अनुष्का के साथ रहने भारत लौट आए। अनुष्का की प्रेग्नेंसी का ये आखिरी चरण है और विराट उनके साथ रहना चाहते हैं। कितना सहज और जरूरी फैसला! लेकिन विराट को नई जिम्मेदारी के लिए हौसला देने के बजाए लानत भेजी जा रही है। धोनी की मिसालें दी जा रही हैं। दरअसल, 2015 में धोनी की पत्नी साक्षी ने जब बेटी को जन्म दिया था, तब वे ऑस्ट्रेलिया में थे। मीडिया ने पूछा कि क्या आप साक्षी के साथ को मिस कर रहे हैं तो धोनी ने तपाक से कहा- कतई नहीं। फिलहाल मैं देश की ड्यूटी पर हूं, बाकी सबकुछ इंतजार कर सकता है।
धोनी को अंदाजा भी नहीं रहा होगा कि उनकी ये बात राजनीति से अघाए ट्रोलर्स को कैसा तर माल दे देगी। गनीमत है कि विराट के मैच छोड़कर लौटने को सीधे देशद्रोह नहीं कहा जा रहा। 'लानत विराट' के कोरस से सोशल मीडिया का चप्पा-चप्पा आबाद है। देशभक्ति का पहाड़ा सुना रहे इन लोगों को गौर से सुनें तो बड़ी जानी-पहचानी बातें सुनाई देती हैं। जैसे प्रेग्नेंट बीवी के लिए कोई इतना बड़ा मौका छोड़कर आता है क्या! या फिर- बच्चा पैदा करना तो औरत का काम ही है। इसके लिए आदमी को घर बैठने की क्या जरूरत!
सूर्य की बजाए हमारी धरती इसी बात के इर्द-गिर्द डोल रही है कि बच्चे पैदा करना और पालना-पोसना जनाना फर्ज हैं। मर्द का काम औरत नाम के खेत में बीज डालना है, सो वो बखूबी करता है। अब ऐसी दुनिया में विराट ने मजाक उड़ाने लायक काम ही तो किया। वो लौटे ताकि अपनी दर्द में तड़पती बीवी का हाथ थाम सकें। ताकि बच्चे की पहली आवाज सुन सकें। ताकि जिस बच्चे के पिता वो कहलाने वाले हैं, उसके हर पल का गवाह हो सकें। ऐसी कितनी ही वजहों के बीच विराट के लौटने की एक वजह शायद ये भी हो कि बच्चे के लिए रतजगा वे अनुष्का के साथ बांट सकें।
कल्पना करें, उस औरत की, जो बच्चे को 9 महीनों तक शरीर का सारा कैल्शियम-प्रोटीन, रक्त-मज्जा देती है। उसे दुनिया में लाने के लिए शरीर पर तेज नश्तर सहती है। गर्भ नाम का तोहफा खुद कुदरत ने औरत को दिया तो यहां तक का काम उसी का है। लेकिन इससे आगे! ये किसने तय किया कि जर्जर शरीर के साथ भी रातों को जागना औरत की ही जिम्मेदारी है। प्रसव के बाद निचुड़ चुके शरीर के साथ मांएं लगभग पूरी-पूरी रात जागती हैं। बच्चा सोए तो भाग-भागकर घर के बाकी काम निपटाती हैं। नींद की कमी से आंखों के नीचे काला परदा झूल आता है। इंची-टेप में कसा शरीर बेडौल और आवाज में झुंझलाहट भर आती है।
दूसरी ओर मर्द का रुटीन सेट रहता है। वो सुबह चाय के साथ अखबार पढ़ता है और खा-पीकर दफ्तर को निकल पड़ता है। शाम को लौटते वक्त दोस्तों के साथ खुशगप्पियां करता और घर पहुंचते ही बेदम हो सबसे पहली कुर्सी पर गिर पड़ता है। बीवी बेचारी लपक कर पंखे चलाती और चाय हाजिर करती है। घर के तमाम हंगामे रुक जाते हैं कि थका शौहर थोड़ा आराम कर सके। मुर्गी, हलवा, पोस्ता की दाल और कटहल पकाने की फरमाइश के बीच औरत भाग-भागकर काम निपटाती है। रात में बच्चे के रोने पर अपराध से दबी-झुकी झट बिस्तर छोड़ उसे घुमाते हुए सुलाने लगती है और मर्द पिता पीठ फेर दोबारा सो जाता है।
पति-पत्नी से मां-बाप दोनों एक ही वक्त पर बने, तब ये फर्क कैसा?
अपनी बताती हूं। मां बनी तो सलाह देने को कोई पास था नहीं। न्यूक्लियर फैमिली। सातवें दिन पति के उदार मैनेजर ने मजाकिया लहजे में तंज कसा, 'क्या सीधे बेटी की शादी के बाद लौटोगे!' फोन के उस पार से हंसी की आवाज आ रही थी। फोन के इस पार भी झेंपी हुई हंसी थी। दो रोज बाद पति दफ्तर लौट गए। सी-सेक्शन के 10वें दिन मैं, घर और बच्चा। उस पर जनवरी की जमा देने वाली ठंड। नहीं कहूंगी कि उस मैनेजर पर मेरा गुस्सा अब तक खत्म हो सका है।
लेकिन मेरे या किसी भी औरत के गुस्से से फर्क ही क्या पड़ता है। जहां विरोध करो, तुरंत सवालों का तमंचा तन जाता है। तुम पढ़ी-लिखी औरतें क्या पैटरनिटी लीव का राग अलापती हो। हमारे यहां तो बच्चा कब पल जाता है, बाप को पता ही नहीं लगता। सही बात है। पिता के बच्चा संभालने की बात ही तब आती है, जब मां या तो मर जाए या कोमा में चली जाए। उससे पहले मां को कोई छुटकारा नहीं।
साल 2015 में फेसबुक के CEO मार्क जुकरबर्ग ने पिता बनने पर दो महीने की छुट्टी ली थी, तो मर्दानी धरती जैसी डोल ही उठी थी। किस्म-किस्म के कयास लगे कि मार्क आखिर इन दो महीनों में करने क्या वाले हैं। कइयों ने एलान कर दिया कि छुट्टी में मार्क कोई किताब लिख डालेंगे। किसी ने भी ये नहीं कहा कि मार्क छुट्टियों में और बिजी रहने वाले हैं, मार्क को अपना रुटीन बच्चे के हिसाब से सेट करना होगा। या कि मार्क की रातों की नींद अब हराम होने वाली है। इन सारे कयासों की जगह ये सोचा गया कि छुट्टी लेकर मार्क किताब लिखने वाले हैं। मार्क लौट आए। बगैर कोई किताब लिखे। केवल बच्चे और मां के साथ समय बिताकर।
इस वाकये को पांच साल बीते। काफी कुछ बदला। जापान अंतरिक्ष में लकड़ी का सैटेलाइट भेजने वाला है ताकि प्रदूषण न हो। चीन ने अपने यहां गरीबी खत्म करने की मुनादी पिटवा दी। अमेरिका में रिपब्लिकन को हटाकर डेमोक्रेट्स सत्ता में होंगे। कितना कुछ बदला, लेकिन नहीं बदला तो मांओं को लेकर हमारा नजरिया।
भारत 187 में से उन 90 देशों में है, जहां पैटरनिटी लीव को लेकर कोई पक्की पॉलिसी नहीं। जिन निजी कंपनियों में नए पिता को थोड़ी-बहुत छुट्टियां दी भी जा रही हैं, वहां पिता खुद छुट्टियां लेने को राजी नहीं। क्यों भाई? क्योंकि उन्हें डर है कि छुट्टियों से लौटेंगे तो उनका प्रमोशन रुक जाएगा। या साथी उन्हें जोरू का गुलाम कहेंगे। जेंडर इक्वैलिटी पर काम करने वाली अमेरिकी संस्था प्रोमुंडो (Promundo) के सर्वे में 80 प्रतिशत से ज्यादा भारतीय मर्दों ने माना कि बच्चे की नैपी बदलना, उसे खिलाना या नहलाना औरतों का काम है।
सर्वे करके खलीफागिरी करने वाला अमेरिका भी कोई तीर नहीं मार रहा। वहां भी पिता बनने पर छुट्टी लेने वालों को कंपनी अच्छी नजर से नहीं देखती। छुट्टियां तो अवैतनिक होती ही हैं, साथ ही ऐसे पिताओं का मर्दानापन भी थोड़ा कम हो जाता है। सर्कल में उन्हें 'अलग' नजर से देखा जाता है।
कुल मिलाकर जितनी रिसर्च करो, तस्वीर उतनी साफ है कि ट्रोलर्स की बारात विराट के पीछे क्यों पड़ी। फिलहाल पांच दिनों बाद वक्त अपनी जिल्द बदल रहा है। साल 2021। साइंस इतनी तरक्की कर चुका कि शरीर का हर हिस्सा मर्जी से बढ़ा-घटा सकते हैं, सिवाय दिल और दिमाग के। तो इस साल क्यों न शरीर के इन कलपुर्जों को हवा-पानी दें ताकि विराट की ट्रोलिंग पर वक्त की फिजूलखर्ची छोड़ बाकी मर्द भी ऐसा ही फैसला कर सकें। यकीन जानिए, गर्भवती बीवी की देखभाल या प्रसव के दौरान उसका साथ आपको कतई कम मर्द नहीं बनाएगा, बल्कि रिश्ता कुछ मजबूत ही करेगा।
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