Dainik Bhaskar
भारतीय किसान यूनियन एकता (उगराहां) के आह्वान पर पंजाब के मालवा क्षेत्र के गांव-गांव से किसान दिल्ली बॉर्डर पहुंचे हैं। इस संगठन में युवाओं से लेकर बुजुर्ग प्रदर्शनकारियों तक जिससे भी बात करो, सब एक सुर में कहते हैं- 'हमारे नेता जो फैसला लेंगे हम उसे मानेंगे'। नेशनल हाइवे-9 पर एक पुराने खाली पड़े गोदाम में संगठन ने अपना मुख्यालय बनाया है। यहां कंबलों और पानी गर्म करने के देसी गीजरों का ढेर लगा है। ये सब बीते चौबीस घंटों में दान में मिले हैं।
काल्विन क्लीन की वुलेन जैकेट पहने 75 साल के जोगिंदर उगराहां के चेहरे पर अलग ही चमक है। शांत स्वभाव के जोगिंदर उगराहां के पीछे लाखों किसान खड़े हैं। उनका संगठन आंदोलन में शामिल सबसे बड़ा और मजबूत संगठन हैं। जोगिंदर उगराहां साफ कहते हैं कि ये आंदोलन अब तीन कृषि कानूनों को रद्द कराने से आगे बढ़ चुका है। वे कहते हैं, 'लोग अब ये समझ गए हैं कि सरकार उनके लिए नहीं, बल्कि कार्पोरेट के लिए काम कर रही है। ये कानून वापस होते हैं या नहीं, अब सिर्फ यही मुद्दा नहीं है। आने वाले समय में इस आंदोलन की दिशा कुछ और होगी।'
उगराहां कहते हैं, 'सरकार को इसे अपनी इज्जत का मसला नहीं बनाना चाहिए। सरकार किसानों की बात सुनने को तैयार क्यों नहीं है, ये हमें समझ नहीं आता।' बीते कुछ दिनों में आंदोलन में युवाओं की तादाद बढ़ी है। क्या इस आंदोलन को लंबे समय तक शांतिपूर्ण रखा जा सकेगा? इस सवाल पर उगराहां कहते हैं, 'शुरू में हमें ये खतरा था कि युवा कंट्रोल नहीं होंगे। लेकिन, अब सब नियंत्रित है। हमने पूरे काफिले को समूहों में बांट दिया है और रोजाना हर समूह की मीटिंग होती है।'
हमने युवाओं को समझाया है कि इस आंदोलन का सबसे बड़ा हथियार शांतिपूर्ण प्रदर्शन है। ये आंदोलन शांतिपूर्ण रहता है, तब ही इसकी जीत संभव है। आंदोलन हिंसक होते ही इसकी हार हो जाएगी। 'उगराहां बताते हैं, 'बहुत नौजवान सवाल करते हैं कि हम यहां बॉर्डर पर क्यों बैठे हैं, दिल्ली चलें। हम उन्हें समझाते हैं कि दिल्ली में बसने वाले लोग हमारे भाई है। अगर हमारे दिल्ली जाने से उनका जीवन मुश्किल होता है तो इससे सरकार को कोई फर्क नहीं पड़ेगा क्योंकि सरकार के लोग तो बड़े घरों में, बड़े महलों में रहते हैं।'
अभी तक सरकार ने पीछे हटने या फिर दबाव में होने का संकेत नहीं दिया है। क्या सरकार आंदोलन को नजरअंदाज कर रही है? इस सवाल पर उगराहां कहते हैं, 'इस आंदोलन को नजरअंदाज करना सरकार का दांव-पेच है। हम इस बात को बखूबी समझ रहे हैं। लेकिन, हम ये भी जानते हैं कि ये सरकार के लिए चिंता का विषय बना हुआ है। नेताओं का राजनीतिक जीवन खतरे में हैं। पंजाब में BJP का कोई नेता किसी गांव में नहीं जा सकता। यहां तक कि कोई मंत्री भी गांव में जाकर इन कानूनों के बारे में बात नहीं कर सकता है। हरियाणा में भी राजनीतिक स्थिति गंभीर है। BJP की कम गिनती की सरकार का समर्थन कभी भी टूट सकता है। दूसरे राज्यों में भी चुनाव होने जा रहे हैं। पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश में चुनाव होने हैं। BJP को राजनीतिक नुकसान उठाना पड़ सकता है।'
वे कहते हैं, 'ये आंदोलन एक सूबे या हिंदुस्तान में ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी हो रहा है। जितना ये आंदोलन आगे बढ़ेगा, उतना राजनीतिक नुकसान BJP का होगा।' उगराहां संगठन पर बिना एफसीआरए (FCRA) के विदेशों से चंदा लेने के आरोप भी लगे हैं। जोगिंदर सिंह उगराहां स्वीकार करते हैं कि उन्हें विदेशों से पैसा मिला है।
वे कहते हैं, 'चंदे के बगैर काम नहीं चलता है। बस आती है, उनका भी किराया देना होता है। स्पीकर लगते हैं, उनका भी किराया देना होता है। सवाल ये है कि हमें चंदा भेज कौन रहा है। जो लोग इधर से जाकर उधर मजदूरी करते हैं, ट्रक चलाते हैं, बेर तोड़ते हैं, वो हमें चंदा भेजते हैं। हमने उनसे पैसा भेजने की अपील की है। सरकार दिखाना चाहती है कि कोई बाहर की एजेंसी हमें फंड भेज रही है। ऐसा नहीं है। हमारे अपने लोग हैं, जो विदेशों में काम कर रहे हैं, वो हमें पैसा भेज रहे हैं।
उगराहां कहते हैं, 'इस शांतिपूर्ण आंदोलन को आंतकवादी आंदोलन, खालिस्तानी आंदोलन, कांग्रेस का आंदोलन बताने की कोशिश की जा रही है। BJP ने जितने भी पत्ते चलाए, सब फेल हो गए हैं। इस आंदोलन के समकक्ष किसान कानूनों के समर्थन में सरकार आंदोलन खड़ा करना चाहती है। ये सही रास्ता नहीं है। 36 साल से मैं जमीन पर काम कर रहा हूं। अब हम सरकार के सभी दांव-पेंच समझ चुके हैं। जब सरकार सख्त बोलती है, तब उसका मतलब होता है कि सरकार झुकने वाली है। सरकार कहती है कि किसी हालत में कानून रद्द नहीं होंगे, इसका मतलब है कि कानून रद्द होने की गुंजाइश है। आपको हमारे चेहरे पर दिख रहा होगा। हमारे चेहरे पर कभी निराशा के भाव नहीं आते हैं। हम यहां से जीतकर ही जाएंगे। इसके अलावा कोई संभावना नहीं है। बहुत कुछ हमने जीत लिया है, जो बाकी बचा है उसे भी जीत कर ही जाएंगे।'
क्या आपने सोचा था कि आंदोलन इतना लंबा हो जाएगा? इस सवाल के जवाब में वे कहते हैं, 'हम शुरू से जानते थे कि ये मुद्दा बड़ा है, इसे हासिल करने में बड़ी ताकत और लंबा समय लगेगा। कम ताकत या कम समय में ये हासिल नहीं होगा। युवा ही हमारा हासिल हैं। हमें ऐसा लगता है कि हमने इस आंदोलन में एक नई चीज देखी है, जिसे देखने के लिए हम 36 साल से तरस रहे थे। जिन युवाओं के बारे में कहा जाता था कि वे कान में बाली पहनते हैं, मोटरसाइकिल से पटाखा छोड़ते हैं, वे युवा यहां बुजुर्ग किसानों को नहला रहे हैं, उनकी सेवा कर रहे हैं। युवा इस आंदोलन की ताकत बन गए हैं। वे सब कुछ ठीक कर लेंगे। अब उनके मन में सवाल है कि पीएचडी, एमफिल करने के बाद, इंजीनियरिंग करने के बाद भी उन्हें नौकरी नहीं मिल रही है।
तो अब आगे क्या होगा? जोगिंदर सिंह उगराहां कहते हैं, 'नई दिशा में आंदोलन जाने की संभावना है, ये कानून वापस होते हैं या नहीं होते हैं, ये हम नहीं कह सकते। लेकिन, हम ये जरूर कह सकते हैं कि अब इस देश के युवा देश के भविष्य के बारे में जरूर सोचेंगे। अब बात सिर्फ कानून वापस होने की नहीं है। आने वाले दिनों में कुछ भी हो सकता है।'
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