Dainik Bhaskar
पश्चिम बंगाल के चाय बागान वाले उत्तरी इलाके में आदिवासियों की बहुलता है। यहां काम करने वाले लंबे अरसे से जीवन की मौलिक सुविधाओं से भी वंचित हैं। कई चाय बागान बंद पड़े हैं। कोरोना की वजह से महीनों चले लॉकडाउन ने हालात और बदतर बना दिए हैं। बच्चों की पढ़ाई नहीं हो पा रही है। इस बीच यहां के रहने वाले एक दंपती ने नई पहल की है।
यह दंपती हैं अनिर्वाण नंदी और उनकी पत्नी पौलमी चाकी नंदी। अनिर्वाण IIT खड़गपुर में सीनियर रिसर्च फेलो हैं और पौलमी सोशल साइंस और इकोनॉमी में रिसर्च एसोसिएट हैं। फिलहाल कॉलेज बंद होने की वजह से यह दोनों अपने घर पर रह रहे हैं।
बागानों और गांवों के बच्चों को महज दस रुपए में ट्यूशन पढ़ाने और मोबाइल लाइब्रेरी के जरिए किताबें उधार देने के साथ ही यह लोग महिलाओं मजदूरों और युवतियों में फ्री सैनेटरी पैड भी बांट रहे हैं। अब तक 35 गांवों और 20 चाय बागानों के करीब 18 सौ बच्चे इनकी मोबाइल लाइब्रेरी का लाभ उठा चुके हैं। इनमें से 80 फीसदी लड़कियां हैं।
नंदी दंपती सप्ताह में दो या तीन दिन अलग-अलग इलाकों में जाकर आदिवासी युवतियों और छात्राओं को मुफ्त सैनेटरी पैड भी बांटता है। पौलमी बताती हैं, 'गरीबी की वजह से इन बागानों की महिलाएं पीरियड के दौरान कपड़े का इस्तेमाल करती थीं। इससे उनको अक्सर स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों से जूझना पड़ता था। इसे देखते हुए हमने सैनेटरी पैड बांटने का फैसला किया। अब तक हम करीब 22 हजार पैड बांट चुके हैं। इसके लिए कई लोगों ने सहायता भी दी है।'
एक आदिवासी छात्र सुनीता ओरांव बताती है, 'पहले हम कपड़े का इस्तेमाल करते थे। इस वजह से कई बार बीमारियां हो जाती थीं। चाय बागान में कोई डॉक्टर भी नहीं है। इससे परेशानी और बढ़ जाती थी। लेकिन अब हमें काफी सहूलियत हो गई है।' अनिर्वाण बताते हैं कि गरीब और आदिवासी छात्रों की सहायता करने के लिए उन्होंने पहले मोबाइल लाइब्रेरी शुरू करने का फैसला किया था। इस लाइब्रेरी के लिए नंदी दंपति ने अपने मित्रों और परिजन से मांग कर सात हजार से ज्यादा किताबें जुटाई हैं। लेकिन किताबें मुहैया कराने के बावजूद स्मार्टफोन और इंटरनेट नहीं होने की वजह से आदिवासी छात्र ऑनलाइन पढ़ाई नहीं कर पा रहे थे।
नतीजतन वह लोग शहरी छात्रों के मुकाबले पिछड़ रहे थे। इस समस्या को ध्यान में रखते हुए इस दंपति ने दस टाकार ट्यूशन यानी दस रुपए का ट्यूशन नामक एक कार्यक्रम भी शुरू किया। इसके तहत छात्रों को अंग्रेजी, कंप्यूटर विज्ञान, अर्थशास्त्र, भूगोल और राजनीति विज्ञान जैसे विषय पढ़ाए जाते हैं। इस दौरान सोशल डिस्टेंसिंग का पूरा ख्याल रखा जाता है। लेकिन दस रुपए क्यों? इस सवाल पर अनिवार्ण बताते हैं, 'मुफ्त में पढ़ाने पर शायद ज्यादा छात्र पढ़ने नहीं आते। लेकिन अब उन दस रुपयों की वजह से माता-पिता बच्चों को ट्यूशन भेजते हैं।'
उनकी इस योजना को कई लोगों ने आर्थिक सहायता भी मुहैया कराई है। अनिर्वाण बताते हैं कि बचपन में वह भी इसी ग्रामीण इलाके में रहते थे और पढ़ाई के दौरान काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा था। स्कूल का रास्ता काफी लंबा था। इसके अलावा बढ़िया ट्यूशन नहीं मिला। इसलिए उन्होंने सोचा कि अगर इन बच्चों की थोड़ी-बहुत सहायता कर दी जाए तो वह लोग जीवन में बहुत कुछ कर सकते हैं।
पौलमी बताती हैं, 'इस योजना के जरिए चाय बागान इलाके की आदिवासी लड़कियों में शिक्षा के प्रति एक नई ललक पैदा हुई है। हम सीमित संसाधनों के बावजूद इलाके के लोगों में जागरूकता पैदा करने का भरसक प्रयास कर रहे हैं। इसके लिए लोगों के आगे हाथ फैलाने में भी हमें कोई हिचक नहीं होती।'
इलाके के आदिवासी बच्चे और उनके माता-पिता नंदी दंपती के कामकाज से खुश हैं। मेरीव्यू चाय बागान की रानी मुंडा अपनी सात महीने की बेटी को लेकर ट्यूशन पढ़ने आती है। वह बताती है, 'शादी से पहले अभाव की वजह से चौथी कक्षा के बाद पढ़ाई नहीं कर सकी थी। अब छूटी हुई पढ़ाई दोबारा शुरू करने का मौका मिल गया है।' यह इलाका जिस लोअर बागडोगरा पंचायत के तहत है उसकी मुखिया विभा विश्वकर्मा कहती हैं, 'नंदी दंपति इलाके में शिक्षा और स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता को बढ़ावा देने की दिशा में बेहतर काम कर रहे हैं। इससे आदिवासी छात्रों में शिक्षा के प्रति नई ललक पैदा हुई है। यह एक बेहतरीन पहल है।'
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