Dainik Bhaskar
आज की पॉजिटिव खबर 27 साल की उरूज हुसैन की। वे नोएडा में स्ट्रीट टेम्पटेशन नाम का एक रेस्त्रां चलाती हैं। वे कहती हैं- मैं एक एंटरप्रन्योर हूं, सोशल वर्कर हूं। लेकिन, जब भी लोग मुझे देखते हैं तो मेरी पहली पहचान ट्रांसवुमन के तौर पर ही करते हैं। लोगों की नजर मे हमारी तस्वीर कुछ इस तरह की बन गई है कि उन्हें हम सिर्फ एक किन्नर के तौर पर ही नजर आते हैं।
उरूज कहती हैं- लोगों को लगता है कि हम या तो ताली बजाकर भीख मांगते हैं या हम सेक्स वर्कर्स होते हैं। लेकिन, असलियत इससे काफी अलग है। मुझे खुद पर गर्व होता है कि मैं समाज के बनाए स्टीरियोटाइप तोड़ कर, खुद के दम पर अपना रेस्त्रां चला रहीं हूं।
फैमिली ने कहा- लड़कों की तरह बर्ताव करो
उरूज बताती हैं, ‘मैंने भी एक सामान्य बच्चे की तरह जन्म लिया था। धीरे-धीरे मुझे एहसास होने लगा कि मेरा शरीर ही सिर्फ लड़कों जैसा है, लेकिन मेरी फीलिंग्स एक औरत जैसी हैं। इसी वजह से मुझे परिवार और समाज में काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा। मेरे दोस्त, फैमिली चाहती थी कि मैं एक लड़के की तरह बर्ताव करूं। मैंने कोशिश भी की, लेकिन मुझसे नहीं हो पाया।
इंटर्नशिप के दौरान लोग बुरा बर्ताव करते थे
उरूज ने कहा- बचपन में क्लास में भी लड़के मेरा मजाक बनाते और मुझे परेशान करते लेकिन मैंने हार नहीं मानी। स्कूल के बाद मैंने होटल मैनेजमेंट का कोर्स किया और 2013 मे मैं दिल्ली आ गई। यहां एक इंटर्नशिप के दाैरान वर्कप्लेस पर मेरे साथ बहुत बुरा बर्ताव होता था। लोग मुझे गलत तरीके से छूने की कोशिश करते थे, मुझे परेशान करते थे।
इसके चलते मैंने खुद को लोगों से दूर रखना शुरू कर दिया। एक समय तो मैंने खुद को घर में बंद रखना तक शुरू कर दिया। तब मुझे लगने लगा था कि मैं हार चुकी हूं। लेकिन, तभी मैंने तय किया कि अगर मैं हिम्मत हार जाऊंगी, तो टूट जाऊंगी और मैं टूटना नहीं चाहती थी।
22 साल तक आइडेंटिटी से भागती रही
वो कहती हैं, ‘मैं अपनी आइडेंटिटी से भागती रही। 22 साल तक मैं दुनिया की नजर में एक लड़का थी। मैं वर्कप्लेस पर एक मेल एम्पलाई की तरह ही काम करती थी। लेकिन, कलीग्स हमेशा मुझे चिढ़ाते थे। मैं हमेशा कंफ्यूज रहती थी कि मैं क्या चाहती हूं। इससे पहले मुझे ट्रांजिशन के प्रोसेस के बारे में पता भी नहीं था, क्योंकि मैं बिहार के छोटे से शहर में रही थी।'
'साल 2014 में मैंने सोचा कि मुझे अब खुद को बदलना चाहिए। इसके लिए साइकोमैट्रिक टेस्ट कराने के बाद मैंने लेजर थेरेपी ट्रीटमेंट कराना शुरू किया। इस दौरान साल भर का वक्त ऐसा भी आया, जब मुझे घर पर ही रहना होता था। इस दौरान काफी मूड स्विंग्स, अकेलापन महसूस होता है। कई बार सुसाइडल थॉट्स भी आते थे। लेकिन, आज मैं अपनी बॉडी से खुश हूं। इससे पहले लगता था कि मैं किसी जेल में हूं।’
एलजीबीटी फ्रैंडली हाेटल में 2 साल काम किया
उरूज बताती हैं, ‘2014 से 2015 के बीच मेरा हार्मोन ट्रांसफॉर्मेशनल पीरियड था। इसके बाद 2015 से 2017 तक मैंने दिल्ली में ही ललित होटल में काम किया। वहां मैंने एक फीमेल के तौर पर ही काम किया। चूंकि ललित ग्रुप एलजीबीटी कम्युनिटी को सपोर्ट करता है, इसलिए मुझे वहां किसी तरह की परेशानी नहीं हुई, ना ही किसी तरह का हैरेसमेंट फील नहीं हुआ।'
चूंकि मैंने हॉस्पिटैलिटी मैनेजमेंट का कोर्स किया था, इसलिए इंटर्नशिप को दौरान ही तय कर लिया था कि कुछ अपना ही काम करना है। 22 नवंबर 2019 को मैंने नोएडा में एक रेस्त्रां की शुरुआत की। रेस्त्रां शुरू करने के पीछे मेरा एक और मकसद था कि इससे सभी ट्रांसजेंडर्स को खुद के दम पर कुछ करने और अपने आप को और मजबूत बनाने की प्रेरणा मिलेगी।
ट्रांसवुमन को शॉप देने तैयार नहीं हुए लोग
उरूज कहती हैं, 'एक ट्रांसवुमन होने की वजह से मुझे रेस्त्रां शुरू करने में काफी परेशान होना पड़ा। सबसे पहले तो मुझे शॉप मिलने में बहुत दिक्कतें आई। मुझे मेरे जेंडर की वजह से कोई शॉप देने को तैयार नहीं था। तब मेरे एक दोस्त अजय वर्मा ने मेरी मदद की, आज वो मेरे बिजनेस पार्टनर भी हैं।'
उरूज की परेशानियां यहीं खत्म नहीं हुईं। रेस्त्रां शुरू होने के 4 महीने बाद ही लॉकडाउन लग गया। वे कहती हैं- जुलाई में हमने दोबारा से रेस्त्रां खोला। अभी रोजाना 4 से 5 हजार रुपए के ऑनलाइन ऑर्डर आते हैं। मैं इस रेस्त्रां को बढ़ाने के लिए लगातार मेहनत कर रही हूं।
हर शहर में रेस्त्रां खोलना चाहती हैं उरूज
उरूज कहती हैं, ‘मेरे रेस्त्रां पर जो कस्टमर आते हैं, उनका व्यवहार काफी अच्छा हाेता है। अभी रेस्त्रां में सात लोगों की टीम काम करती है। इनमें 2 शेफ हैं। मेरी ख्वाहिश है कि हर शहर में मेरे रेस्त्रां हों और उसे ट्रांसजेंडर्स ही चलाएं। मैं बस यही चाहती हूं कि ट्रांसजेंडर्स भी मेनस्ट्रीम में आएं। वे अपना बिजनेस करें, खुद को स्टेबिलिश करें।’
उरुज को बॉलीवुड से भी शिकायत है। वे कहती हैं कि बॉलीवुड मूवीज में ट्रांसजेंडर्स को या तो मजाक के तौर पर दिखाया जाता है या सेक्स सिंबल के रूप में। इसलिए सोसाइटी भी ट्रांसजेंडर्स को मजाक या सेक्स के नजरिए से ही देखती है। उरूज चाहती हैं कि बॉलीवुड में ट्रांसजेंडर्स को मीनिंगफुल किरदारों में दिखाना चाहिए, ताकि सोसाइटी को असल ट्रांसजेंडर्स के बारे में पता चल सके।
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