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कहानी- एक दिन गौतम बुद्ध अपने आश्रम में टहल रहे थे। उस समय उन्होंने एक कोने में अपने एक भिक्षु को तड़पते हुए देखा। भिक्षु को डायरिया हो गया था। कमजोरी की वजह से वह ठीक से सांस भी नहीं ले पा रहा था। उसके आसपास काफी गंदगी भी हो गई थी।

बुद्ध ने अपने शिष्य आनंद से कहा, 'दवाइयां लेकर आओ, हम इसका उपचार करेंगे।' इसके बाद बुद्ध ने खुद उस भिक्षु की और उसके आसपास की जगह की सफाई कर दी। आनंद दवा लेकर आया तो बीमार भिक्षु को दवाइयां दीं।

वहीं अन्य भिक्षु भी खड़े हुए थे। वे ये सब देख रहे थे। तब भिक्षुओं ने कहा, 'तथागत आपने खुद इसके आसपास की गंदगी क्यों साफ की?'

बुद्ध बोले, 'आप लोग मुझसे सवाल न करें। मैं आप लोगों से ये पूछना चाहता हूं कि आपने अपने ही आश्रम के इस बीमार भिक्षु की सेवा क्यों नहीं की? जबकि आप लोग जानते हैं कि ये अकेला है। यहां न कोई रिश्तेदार आएगा, न कोई अपना आएगा, यहां हम सभी एक-दूसरे के रिश्तेदार-मित्र हैं। फिर इसकी देखभाल क्यों नहीं की?'

शिष्यों के पास बुद्ध के सवाल का कोई जवाब नहीं था। सभी मौन ही खड़े थे और बुद्ध की बातें सुन रहे थे।

बुद्ध फिर बोले, 'बीमार कोई भी हो सकता है। एक बात हमेशा याद रखें, जब आप किसी बीमार की सेवा करते हैं तो ये सेवा परमात्मा की सेवा मानी जाती है।'

सीख- हमारे घर-परिवार में, रिश्तेदारी में, कोई मित्र या कोई अनजाना व्यक्ति बीमार है तो अपने सामर्थ्य के अनुसार उसकी सेवा करने में पीछे नहीं हटना चाहिए। किसी जरूरतमंद बच्चे की शिक्षा का प्रबंध करना, किसी गरीब लड़की की शादी करवाना भी मानवता की सेवा ही है। लेकिन, बीमार की देखभाल करना, सबसे बड़ी सेवा है।



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aaj ka jeevan mantra by pandit vijayshankar mehta, There are many ways to serve humanity, caring for a helpless sick is the greatest service


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