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Dainik Bhaskar

हरदोई के सुमित गुप्ता ने 2014 में नोएडा में स्टार्टअप शुरू किया- ऑडियो ब्रिज। पांच-छह साल में जैसे-तैसे अपना बिजनेस जमाया। कई मल्टीनेशनल कंपनियों को सर्विस भी देने लगे। लेकिन, फिर कोरोना आ गया। लॉकडाउन की वजह से सब कुछ बंद हो गया। सुमित के लिए नोएडा में रहना और बिजनेस जारी रखना मुश्किल हो गया। वे घर लौटे और वहीं से काम करने लगे। उन्होंने हरदोई के लोगों को ही काम पर रखा।

सुमित कहते हैं कि मजबूरी में उठाया गया कदम अब रिटर्न दे रहा है। नोएडा के मुकाबले हरदोई में लागत कम है। स्किल्ड लेबर सस्ती है। लोकल साथी ज्यादा मन लगाकर काम कर रहे हैं। जिससे रिजल्ट अचीव हो रहे हैं। प्रोडक्शन भी बढ़ गया है।

बीते आठ महीने में सुमित जैसे कई लोगों को अपना बेस बदलना पड़ा है। लॉकडाउन की सख्ती ने उन्हें घर लौटने और वहीं पर कुछ करने को प्रेरित किया। केवल छोटी नहीं, बल्कि बड़ी कंपनियां भी बड़े शहरों से छोटे शहरों यानी टियर-2 और टियर-3 शहरों तक जा रही है। यह ट्रेंड नया नहीं है। लेकिन, यह बात जरूर है कि कोविड-19 के लॉकडाउन ने इसकी रफ्तार तेज कर दी है।

बात यहां सिर्फ लागत की नहीं है, लाइफस्टाइल की भी है। बिजनेस जर्नलिस्ट शिशिर सिन्हा का कहना है कि यह बिजनेस और स्थानीय लोगों, दोनों के लिए विन-विन सिचुएशन है। न केवल छोटे शहरों में रोजगार के अवसर बन रहे हैं, बल्कि कंपनियों की लागत भी घट रही है। इससे उनकी खर्च करने की क्षमता बढ़ रही है और वे तेजी से अपना कारोबार बढ़ाने पर फोकस कर पा रही हैं।

छोटे शहरों की तरफ लौटने का यह ट्रेंड सिर्फ उत्तरप्रदेश तक सीमित नहीं है। नॉर्थ-ईस्ट में गुवाहाटी से लेकर इंफाल तक और दक्षिण में कोयम्बटूर से लेकर कोच्चि तक यही ट्रेंड दिखा है। टियर-2 और टियर-3 के ये शहर नए भारत में बिजनेस हब बनकर उभर रहे हैं। औरंगाबाद और भुवनेश्वर जैसे शहर मुंबई और कोलकाता से अलग अपनी पहचान बना रहे हैं।

फोर्ब्स की एक स्टडी कहती है कि भारत में स्टार्ट-अप ईकोसिस्टम तेजी से बदल रहा है। बड़े शहर परेशानी में हैं, जबकि छोटे शहर फल-फूल रहे हैं। कई मार्केट गुरु कहते हैं कि आने वाले दशकों में कई चमत्कार हो सकते हैं। भारत का द ग्रेट मिडिल क्लास ही यहां स्टार्ट-अप ईकोसिस्टम की ग्रोथ का इंजिन बन रहा है। यह मजबूती से अपनी भूमिका भी निभाएगा।

नए भारत की नई पहचानः

  • अहमदाबादः कभी कपड़ा उद्योग, केमिकल और कृषि उत्पादों के लिए पहचाने जाने वाला ये शहर अब जायडस कैडिला सहित कई फार्मा कंपनियों का गढ़ है। जायडस कैडिला कंपनी कोरोनावायरस वैक्सीन बनाने को लेकर चर्चा में थी। यहां की बढ़ती जनसंख्या ने 2010 से यहां कंस्ट्रक्शन सेक्टर को जबरदस्त ग्रोथ दी। अब शहर में जगह-जगह गगनचुंबी इमारतें दिखती हैं।
  • वडोदराः एजुकेशन हब तो था ही, अब मैन्युफैक्चरिंग हब भी बन चुका है। पॉवर ट्रांसमिशन टूल, मशीनी औजार, दवाएं, केमिकल, बायोटेक्नोलॉजी, इंजीनियरिंग, ऑटो और डिफेंस प्रोडक्ट बन रहे हैं। भारत में बनने वाले हैवी इलेक्ट्रिक टूल्स में 35% हिस्सेदारी वडोदरा की है। नेशनल पॉलिसी ऑन इलेक्ट्रॉनिक्स-2019 के तहत कम से कम 7.36 लाख करोड़ रुपए के निवेश और 2.80 करोड़ नौकरियों का लक्ष्य है। इसमें वडोदरा की भूमिका अहम होगी।
  • औरंगाबाद- औरंगाबाद में 5 SEZ (विशेष आर्थिक क्षेत्र) हैं। यहां ऑटोमोबाइल, दवाएं, एल्युमिनियम और ग्रीन पॉवर से जुड़ी इंडस्ट्रीज के क्लस्टर हैं। महाराष्ट्र में यह पुणे के बाद सबसे तेजी से उभरने वाला दूसरा बड़ा ऑटो और इंजीनियरिंग हब है।
  • राजारहाट- 24 परगना जिले की यह प्लान्ड सिटी कोलकाता से सटी है। टीसीएस, विप्रो, कॉग्निजेंट, आईबीएम, जेनपैक्ट, टेक महिंद्रा, एक्सेंचर, फिलिप्स और एचसीएल टेक्नोलॉजी यहां काम कर रही हैं। कोलकाता से इसकी कनेक्टिविटी अच्छी है। इंटरनेशनल एयरपोर्ट भी इसके पास ही है।
  • सॉल्ट लेक सिटीः इसे 1958 से 1965 के बीच कोलकाता की बढ़ती आबादी को देखते हुए सैटेलाइट टाउन के तौर पर बसाया गया था। पिछले 20 सालों में यह बड़ा आईटी हब बन गया है। यह टीसीएस, विप्रो, आईबीएम जैसी कई घरेलू और विदेशियों कंपनियों का घर है। करीब एक लाख लोग यहां नौकरी करते हैं। यहां प्रॉपर्टी के दाम भी काफी ज्यादा हैं और देशभर से रियल स्टेट में यहां भारी इंवेस्टमेंट हुआ है।
  • कोच्चिः यह केरल का प्रमुख बिजनेस हब है। कोच्चि में स्मार्ट सिटी का निर्माण भी हो रहा है। यहां मुथूट टेक्नोपॉलिस में कॉग्निजेंट जैसी कई बड़ी कंपनियों ने अपने ऑफिस खोले हैं।
  • त्रिवेंद्रमः त्रिवेंद्रम का सबसे बड़ा आईटी हब है टेक्नोपार्क। ओरेकल, इंफोसिस और टीसीएस जैसी कंपनियों ने यहां अपने ऑफिस खोले हैं। 300 एकड़ में फैला यह इलाका करीब 45 हजार लोगों को रोजगार देता है।
  • कोयम्बटूरः शहर के बीच से गुजरने वाली अविनाशी रोड शहर की ज्यादातर व्यावसायिक गतिविधियों का केंद्र है। यह सड़क न सिर्फ एयरपोर्ट तक जाती है बल्कि शहर की मुख्य बस्तियों को भी जोड़ती है। इस रोड के पास ही शहर का प्रमुख आईटी सेंटर TIDEL पार्क है।
  • इंदौरः शहर का आईटी पार्क, क्रिस्टल आईटी पार्क टेक्नोलॉजी हब बना है। यहां इंफोसिस और टीसीएस ने अपने ऑफिस बनाए हैं। अगले 5 साल में यह इलाका 5 हजार लोगों को नौकरियां देंगा। इंदौर में बड़ी संख्या में इंजीनियरिंग कॉलेज हैं, जिनसे नए टैलेंटेड इंजीनियरों को काम देना आसान हो जाता है।
  • भुवनेश्वरः आईआईटी समेत उच्च शिक्षा के कई सारे इंस्टीट्यूट होने से भुवनेश्वर रिसर्च और टेक्नोलॉजी का बड़ा हब बनकर सामने आ रहा है। 300 से ज्यादा आईटी कंपनियां यहां हैं। टीसीएस के ऑफिस के पास ही माइंडट्री ने अपना लर्निंग सेंटर बनाया है। यहीं पर उनके सभी नए इंजीनियरों को ट्रेनिंग मिलती है।

नए बिजनेस हब्स बनने की 6 वजहें-

  • ट्रैफिकः आपको लगता होगा कि बड़े शहरों में ट्रैफिक तो ज्यादा ही रहता है। इसमें नया क्या है। यदि आप इसमें कुछ नुकसान नहीं देखते तो आपको रिचर्ड फ्लोरिडा और स्टीवन पेडिगो की अमेरिकी शहर मियामी पर की गई 'स्टक इन ट्रैफिक' स्टडी पढ़नी चाहिए। यह बताती है कि जब शहर में घनी आबादी बसती है, तो नए आइडियाज आने बंद हो जाते हैं। ट्रैफिक जाम में फंसने से आर्थिक नुकसान भी होता है। बड़े भारतीय शहर भी मियामी से जुदा नहीं है। दिल्ली-एनसीआर, बेंगलुरु और मुंबई के ट्रैफिक जाम की खबरें आए दिन हेडलाइंस में होती हैं। इसके मुकाबले छोटे शहरों में ट्रैफिक जाम कोई समस्या है ही नहीं।
  • प्रदूषण: हवा, पानी और ध्वनि प्रदूषण बड़े शहरों से पलायन की बड़ी वजह है। ET ने एक सर्वे कराया तो 78% लोगों ने कहा कि अगर उन्हें अपना काम छोटे शहरों में ले जाना है, तो प्रदूषण पहली वजह होगी। पिछले कुछ वर्षों में भारत की राजधानी दिल्ली में प्रदूषण ने किस तरह कहर बरपाया है, यह किसी से छिपा नहीं है।
  • वर्कफोर्स: बड़ी कंपनियां ही नहीं, बल्कि बड़े शहरों में काम कर रहा स्किल्ड लेबर भी अपने घर यानी टियर-2 और टियर-3 शहरों में लौटना चाहता है। ET के ही सर्वे में 65% लोगों ने छोटे शहरों में लौटने की इच्छा जताई है। 30% लोगों ने तो यह भी कह दिया कि वे अगले 5 साल में छोटे शहरों में चले जाएंगे। वहीं, 26% सिर्फ अच्छी जॉब के लिए ही इन छोटे शहरों में शिफ्ट होंगे। कहने का मतलब यह है कि यदि कंपनी अच्छी है तो छोटे शहरों से स्किल्ड कर्मचारियों को परहेज नहीं है।
  • रियल स्टेट निवेश: बात पिछले साल की है। 2019 में कंज्यूमर सेंटिमेंट सर्वे हुआ, तो बड़ी संख्या में रियल स्टेट इन्वेस्टर छोटे शहरों की ओर जा रहे हैं। 26% निवेशकों ने कहा कि अहमदाबाद, कोच्चि, चंडीगढ़, जयपुर और नासिक निवेश के लिए सबसे अच्छे शहर हैं।
  • शैक्षणिक संस्थान: इंदौर और भुवनेश्वर में टीसीएस ने ऑफिस और ट्रेनिंग सेंटर खोला है। इन दोनों ही जगह आईआईटी सहित कई छोटे-बड़े टेक्नोलॉजी इंस्टिट्यूट हैं। ऐसे में टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में फ्रेश टैलेंट मिलना आसान है। ऐसे ही अलग-अलग सेक्टर के बारे में प्रोफेशनल एजुकेशन देने वाले इंस्टिट्यूट जिन शहरों में हैं, उनके आसपास उस सेक्टर की बड़ी कंपनियों ने अपने ऑफिस खोले हैं।
  • सरकारी मदद: छोटे शहरों में बिजनेस शुरू करने के लिए वहां की राज्य सरकारें भी मदद कर रही है। भारत की ज्यादातर कंपनियां सेवा क्षेत्र से जुड़ी हैं। ऐसे में बड़ी कंपनियों और मार्केट्स तक उनकी पहुंच बहुत मुश्किल नहीं होती। कोरोना के दौर में ज्यादा से ज्यादा काम ऑनलाइन हुआ है, जिससे निर्माण आदि से जुड़ी कंपनियां भी खुद को प्रोडक्शन के अलावा अन्य सभी कामों के लिए इंटरनेट पर निर्भर कर रही हैं। छोटे शहरों में बिजनेस करने की इच्छुक कंपनियों के लिए फंडिंग, इंफ्रास्ट्रक्चर की समस्याएं न आएं, इसके लिए पर्याप्त सरकारी कोशिशें हो रही हैं।

छोटे शहरों में इन सेक्टर में देखी जा रही सबसे तेज ग्रोथ-

  • आईटी: ऑनलाइन रिटेल, क्लाउड कंप्यूटिंग और ई-कॉमर्स भारतीय आईटी उद्योग की बुनियाद है। इंटरनेट यूज के मामले में भारत दुनिया में तीसरा सबसे बड़ा देश बन चुका है। देश के कुल निर्यात में आईटी सेक्टर का हिस्सा 2011-12 में ही 26% था। 2019 तक इस सेक्टर में 8,200 से ज्यादा स्टार्टअप थे। इनमें कई टियर-2 और टियर-3 शहरों से हैं। पिछले कुछ वर्षों में 18 देसी स्टार्टअप 1 अरब डॉलर के रेवेन्यू तक बढ़ चुके हैं। लगभग 200 भारतीय आईटी कंपनियों ने 80 देशों में 1000 से ज्यादा डिलीवरी सेंटर खोले हैं। 2019-20 में ग्लोबल आउटसोर्सिंग में भारत का हिस्सा 55% था। इस सेक्टर में लगातार और ज्यादा निवेश हो रहा है।
  • बीपीओ: भारत के उत्तर-पूर्व के राज्य बीपीओ के हब बने हैं। पूर्वी एशिया में यह सेवाएं दे रहे हैं। वहां के लोगों का पूर्वी एशियाई देशों जैसा अंग्रेजी बोलने का लहजा इसमें मदद कर रहा है। साथ ही, शिलॉन्ग में बीपीओ खोलना, गुरुग्राम के मुकाबले काफी सस्ता तो है ही।
  • जेनेरिक दवाएंः ग्लोबल जेनेरिक दवा बाजार में भारत सबसे बड़ा देश है। इसी वजह से भारत को फार्मेसी ऑफ द वर्ल्ड भी कहा जाता है। दवा कंपनियां दुनिया की 50% तक दवाएं एक्सपोर्ट कर रही हैं। इस क्षेत्र में ब्रिटेन, नीदरलैंड और सिंगापुर की कंपनियों ने इन्वेस्टमेंट किया है। अहमदाबाद जैसे शहरों को इससे फायदा हुआ है।
  • फूड प्रोसेसिंगः सरकार को देशभर में 42 फूड पार्क बनाने हैं। इसमें से 21 पार्क बन चुके हैं। ज्यादातर छोटे शहरों में हैं। अब यहां फूड प्रोसेसिंग की मशीनों, कोल्ड स्टोरेज यूनिट, कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग में निवेश के कई अवसर बने हैं।
  • केमिकल उत्पादनः हाल ही में एशियन पेंट्स ने मैसूर में 2 हजार करोड़ से ज्यादा खर्च कर दुनिया का सबसे बड़ा पेंट मैन्युफैक्चरिंग प्लांट लगाया है। गुजरात के भरूच में वीडियोकॉन ने लगभग 2 हजार करोड़ रुपए के निवेश से एक फाइबर ग्लास प्लांट लगाने की बात कही है। सरकार ने इसे बढ़ावा देने के लिए नेशनल केमिकल पॉलिसी लॉन्च की है। सरकार ने आंध्र के विशाखापट्टनम, गुजरात के दहेज, ओडिशा के पारादीप और तमिलनाडु के कड्डलोर-नागापट्टिनम में 4 पेट्रोलियम परियोजनाओं को भी मंजूरी दे दी है।
  • कार-बाइक कंपनियांः भारत ने 2018 में जर्मनी को पीछे छोड़ चौथी सबसे बड़ी ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री का मुकाम हासिल किया था। हालांकि, 2019 में फिर से छोटे अंतर से पांचवें पायदान पर फिसल गया। औरंगाबाद जैसे शहर कार-बाइक इंडस्ट्री के नए हब हैं। सरकार का लक्ष्य भी भारतीय ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री को 260 से 300 बिलियन डॉलर तक ले जाने का है। भारत में इलेक्ट्रिक और हाईब्रिड वाहनों के निर्माण और प्रयोग को बढ़ावा दिया जाना है।
  • ग्रीन पॉवरः भारत ने साल 2030 तक कुल बिजली जरूरत का 40% ग्रीन पॉवर से हासिल करने का लक्ष्य रखा है। जुलाई में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मध्यप्रदेश के रीवा में एशिया के सबसे बड़े सोलर एनर्जी प्रोजेक्ट का उद्घाटन किया। उन्होंने मध्य प्रदेश को सौर ऊर्जा का सबसे बड़ा केंद्र बनाने की बात भी कही। ऐसे ही बड़े सोलर एनर्जी प्रोजेक्ट नीमच, शाजापुर, छतरपुर और ओंकारेश्वर में भी प्रगति पर हैं। कई विदेशी कंपनियां इन प्रोजेक्ट्स में निवेश कर रही हैं।

छोटे शहर के बिजनेस से MNC तक का सफर

बड़ा बिजनेस करने के लिए कई बार बड़े शहर का रुख करने की सलाह दी जाती है। लेकिन, हौसला हो तो कुछ मुश्किल नहीं होता। कई बिजनेसमैन छोटे शहरों से बिजनेस शुरू कर अपनी कंपनी को पूरी दुनिया के मुकाम तक ले जाने में सफल रहे हैं। ऐसी ही एक कंपनी है SIS ग्रुप। पिछले साल यह एक बिलियन अमेरिकी डॉलर वाली MNC बनी। इसका हेड ऑफिस आज भी बिहार में है। अमेरिका में 9/11 के हमले के बाद कंपनी ने विदेशों में प्राइवेट सिक्योरिटी देने के काम पर फोकस किया। अब यह कंपनी सिंगापुर, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड जैसे देशों में भी प्रमुख निजी सुरक्षा एजेंसी के तौर पर काम करती है।

कंपनी के बारे में चेयरमैन आरके सिन्हा कहते हैं- छोटे शहर से शुरू कर अंतरराष्ट्रीय स्तर तक जाने में हमेशा उन्होंने अपने कर्मचारियों को सबसे ज्यादा महत्व दिया। शुरुआत में लोग प्राइवेट गार्ड्स को चौकीदार मानते थे लेकिन अब मुश्किल काम के लिए उन्हें सम्मान मिलता है। इसकी वजह है इन गार्ड्स की प्रोफेशनल ट्रेनिंग। अलग-अलग मुसीबतों से निपटने के लिए गार्ड्स को एक महीने की अंतरराष्ट्रीय स्तर की ट्रेनिंग के बाद भर्ती किया जाता है।

बिजनेस के इन नए हब के कुछ नुकसान भी

नए बिजनेस हब्स बनने से सब कुछ अच्छा ही हो रहा है, यह कहना सही नहीं है। जर्नलिस्ट शिशिर सिन्हा की माने तो नए बिजनेस हब बनने से लोकल माइग्रेशन रुका है और यह फायदेमंद है। टियर-2 और टियर-3 शहरों में तेजी से होने वाला विकास लोगों के लिए अवसर, रोजगार और बुनियादी सुविधाओं की तेजी से तरक्की लाता है। लेकिन, लोगों की सोच, नजरिया और सामाजिक संरचना उतनी तेजी से नहीं बदलती। गुरुग्राम जैसे शहर का विकास ऐसा ही उदाहरण है। यहां तेज औद्योगिक विकास के साथ अपराधों में भी बढ़ोतरी देखी है। जिन्होंने गुरुग्राम और गेम ओवर जैसी फिल्में देखी हैं, वे यहां के अपराध से जुड़े डर को समझ सकते हैं।

एक नुकसान यह भी है कि ऐसे किसी शहर में अवसरों के बढ़ने के साथ ही प्रॉपर्टी के दाम और जनसंख्या तेजी से बढ़ जाते हैं। जिससे, धीरे-धीरे इन शहरों में भी टियर-1 के शहरों वाली समस्याएं खड़ी हो जाती हैं। साथ ही, दूसरी-तीसरी श्रेणी के शहरों में इंफ्रास्ट्रक्चर जैसे हाईवे, एयरपोर्ट भी नहीं होते।



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