Dainik Bhaskar
आज कहानी दिल्ली के केशव राय की। दो बार स्टार्टअप शुरू किया लेकिन फेल हो गए। पिताजी से जो पैसे उधार लिए थे, वो भी डूब गए। तीसरी बार एक ऐसा आइडिया लाए, जो मार्केट में था ही नहीं। इस बार सक्सेस भी मिली और पैसा भी। अब महीने का दस से बारह लाख रुपए कमाते हैं। केशव की पूरी जर्नी, उनसे ही जानिए।
पढ़ाई में मन नहीं लगता था, इसलिए बिजनेस के बारे में सोचने लगे
कहते हैं, 'लोगों की प्रॉब्लम के सॉल्यूशन दीजिए, आपका बिजनेस अपने आप खड़ा हो जाएगा।' कुछ यही काम केशव ने भी किया। जब इंजीनियरिंग में एडमिशन लिया तो पढ़ाई में मन नहीं लगा। कहते हैं, 'मैंने मैकेनिकल ब्रांच में एडमिशन ले लिया लेकिन कॉलेज जाकर पता चला कि जैसा मैं इंजीनियरिंग के बारे में सोच रहा था, वैसा नहीं है। मैं कुछ इनोवेशन करना चाहता था और कॉलेज में वही थ्योरी पढ़ाई जा रही थी जो मैं स्कूल में पढ़कर आया था। इसलिए मेरा दिमाग पहले दिन से ही बिजनेस की तरफ सोचने लगा। मैं हमेशा बहुत डरता था कि कुछ कर पाऊंगा या नहीं। इसी डर की वजह से मैं आगे बढ़ पाया।'
कहते हैं, 'सेकंड ईयर में मैंने एक ऑनलाइन प्लेटफॉर्म बनाने का सोचा। आइडिया ये था कि, एक ऐसी वेबसाइट हो जहां स्टूडेंट्स से जुड़ी हर चीज हो। नोट्स से लेकर लेक्चर्स तक अपलोड हों। मैंने इसमें 15 हजार रुपए लगाए। कुछ दोस्तों से भी पैसे उधार लिए। ये सोचा था कि, वेबसाइट को जो भी एक्सेस करेगा, उससे सौ रुपए चार्ज लेंगे। इससे वेबसाइट मेंटेन भी कर पाएंगे और कुछ प्रॉफिट भी होगा। लेकिन ये आइडिया फेल हो गया। किसी ने सपोर्ट नहीं किया।'
आइडिया फेल हो गया था लेकिन हार नहीं मानी
केशव के मुताबिक, 'मेरा आइडिया तो फेल हो गया था लेकिन मुझे अंदर से ये सब करके लगा बहुत अच्छा था। ऐसी फीलिंग्स आईं थी कि कुछ न कुछ तो मैं कर ही सकता हूं। जब थर्ड ईयर में पहुंचा तो फिर एक आइडिया दिमाग में आया। मैं अक्सर नोटिस करता था कि, लोगों को कहीं घूमने-फिरने जाना है और ग्रुप में जाने का प्लान बना है तो कई मेम्बर्स टाइम पर उठ नहीं पाते। कोई उठता है तो फिर सो जाता है। इसलिए मैंने एक ऐसी ऐप बनाने का सोचा जो पूरे ग्रुप से कनेक्ट हो। कॉन्सेप्ट ये था कि, ऐप सभी को टाइम पर उठाएगी भी और अगले दस मिनट तक उनकी मॉनिटरिंग भी करेगी और ये भी बताएगी कि अभी कौन क्या कर रहा है।'
'पिताजी को ये कॉन्सेप्ट बताया तो वो पैसे इंवेस्ट करने को तैयार हो गए। करीब ढाई लाख रुपए इंवेस्ट किए लेकिन ये ऐप हम लॉन्च ही नहीं कर पाए। कुछ न कुछ प्रॉब्लम आते गईं। इसके बाद मैं बहुत ज्यादा दुखी हो गया। दो प्रोजेक्ट फेल हो गए थे। दूसरे में फाइनेंशियल लॉस भी हुआ था। मैं कॉलेज में भी पढ़ नहीं पा रहा था। सारे दोस्त अच्छी जगह इंटर्नशिप करने लगे थे। मैं इतना डिस्टर्ब हो गया कि घर से चार दिन के लिए भाग गया। मैं अकेले घूमकर खुद को जानना चाहता था। चार दिन तक दिल्ली स्टेशन, मेट्रो स्टेशन, लोटस टेंपल, इस्कॉन टेंपल पर गुजारे।'
'मेट्रो स्टेशन के बाहर की बैठा था तब देखा कि एक आदमी पार्किंग में घूम रहा है और खुद की बाइक साफ करने के लिए डस्टर ढूंढ रहा है। उसे एक बाइक में डस्टर मिल गया। उसने उससे अपनी बाइक साफ की और डस्टर वहीं छोड़कर चला गया। ये देखकर मुझे हंसी आई लेकिन मेरे दिमाग में ये आइडिया भी आया कि, इस दिक्कत से हर रोज कितने लोग परेशान होते होंगे। क्या मैं कुछ ऐसा बना सकता हूं जिससे गाड़ी साफ भी रहे और वो सामान वाहन चालक को साथ में कैरी न करना पड़े।'
अब दिल्ली के साथ ही गाजियाबाद में भी है ब्रांच
'मैंने घर आकर पापा को ये पूरा आइडिया बताया तो उन्हें भी अच्छा लगा। हमने इस बारे में रिसर्च शुरू कर दी। गूगल पर भी सर्च किया और बाइक ब्लेजर बनाने का सोचा। एक ऐसा बॉडी बाइक कवर जो बाइक के साथ ही रहे और बाइक को साफ रखे। बहुत रिसर्च के बाद एक प्रोटोटाइप तैयार हुआ। एक हैंडल को घुमाकर इस कवर को बाहर निकाला जा सकता है और उसी तरह से अंदर किया जा सकता है। पहले यह कवर सिर्फ बाइक के पेट्रोल टैंक और सीट कवर को ढंकता था लेकिन बाद में हम इसे अपडेट करते गए और अब जो कवर दे रहे हैं, उससे पूरी गाड़ी कवर हो जाती है।'
'मैंने अपने प्रोडक्ट को सबसे पहले दिल्ली में ही लगे ट्रेड फेयर में लॉन्च किया था। जहां से हमें काफी पब्लिसिटी मिली। इसके बाद सोशल मीडिया के जरिए लोगों को हमारे प्रोडक्ट के बारे में पता चला। फिर जो लोग कवर लगवाकर जाते थे, उनकी गाड़ी को देखकर कई लोग आने लगे। 2018 में हमने कंपनी बना ली थी। अब दिल्ली के साथ ही गाजियाबाद में भी ब्रांच है। सालाना टर्नओवर 1 करोड़ रुपए से ज्यादा है। मां भी कंपनी में अहम रोल निभा रही हैं। अगले तीन से चार महीने में फोर व्हीलर के लिए भी ऐसा कवर लॉन्च करने जा रहे हैं, जो उसे पूरा कवर करेगा और उसी में फिट रहेगा।'
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