Dainik Bhaskar
नया साल आ गया। कोरोना की वैक्सीन भी आने को है, मगर देश की अर्थव्यवस्था से लेकर शिक्षा तक। राजनीति से लेकर मनोरंजन तक। रियलिटी सेक्टर से एविएशन तक। तकरीबन सभी सेक्टरों में पेच फंसे हुए हैं। आम आदमी को चिंता है, अपनी नौकरी की। धंधे की। पढ़ाई की। और आगे बढ़ने के मौकों की। उन्हें चिंता है, ब्रिटेन से भारत पहुंचे कोरोना के नए स्ट्रेन की। सभी के सामने यही सवाल हैं कि नए साल में ऐसे खास सेक्टर इन उलझनों से बाहर कैसे निकलेंगे ?
ऐसे में भास्कर आज से सप्ताह भर तक रोज जाने-माने विशेषज्ञों के जरिए अलग-अलग सेक्टरों का हाल, उनके सामने मौजूद चुनौतियां, उनसे निपटने के तरीकों और नए साल में उनसे उम्मीदों को पेश करेगा। इसी क्रम आज जानते हैं कि 2021 में देश की अर्थव्यवस्था को लेकर जाने-माने अर्थशास्त्री और इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज के मैल्कम आदिशेषैया चेयर प्रोफेसर अरुण कुमार का क्या कहना है और सरकार को उनकी क्या सलाह है...
"अभी अर्थव्यवस्था रिकवरी के रास्ते पर है। लॉकडाउन में आप उत्पादन जानबूझकर बंद करते हैं, जिससे मांग और सप्लाई दोनों की समस्या आ जाती है। अनलॉक करने पर सप्लाई तो शुरू हो जाती है, लेकिन लोगों की नौकरियां जाने और काम धंधे बंद होने से डिमांड नहीं रहती या कम हो जाती है।
इस समय अर्थव्यवस्था में डिमांड 2019 के बराबर भी नहीं है। इसका असर कई सेक्टर पर है। खासकर सर्विस सेक्टर अधिक प्रभावित है। ट्रांसपोर्ट, टूरिज्म, होटल रेस्त्रां जैसे बिजनेस में लोगों को एक दूसरे के नजदीक आना पड़ता है, इसलिए कोरोना के दौरान इनमें बहुत कम बिजनेस शुरू हो पाया है। रेलवे, जो पहले रोजाना 14 हजार पैसेंजर ट्रेनें चलाती थी अभी सिर्फ 1000 ट्रेनें चला रही है।
असंगठित क्षेत्र पर भी इसका काफी बुरा असर हुआ है। वहां लोगों के पास वर्किंग कैपिटल यानी धंधा चलाने के लिए पैसा नहीं है। मेरा अनुमान है कि इन दो वजहों से दिसंबर 2019 की तुलना में दिसंबर 2020 में अर्थव्यवस्था 20% कम है।
रिकवरी के लिए सरकार की तरफ से कदम उठाना जरूरी है ताकि डिमांड पैदा हो। डिमांड निकलने पर ही अर्थव्यवस्था पटरी पर आएगी, लेकिन जिस तरह से कोरोनावायरस के नए स्ट्रेन का पता चल रहा है उसे देखते हुए आगे भी सावधानी बरतना जरूरी है, इसलिए मेरा अनुमान है कि 2021 में अर्थव्यवस्था 2019 के स्तर पर नहीं आ सकेगी।
2021 में अर्थव्यवस्था में कितनी रिकवरी होगी यह तीन बातों पर निर्भर करता है- डिमांड कितनी निकलती है, अर्थव्यवस्था में अनिश्चितता कितनी है और असंगठित क्षेत्र कितना उबर पाता है।"
रोजगारः कोरोना के दौर में ऑटोमेशन बढ़ा, नौकरियां कम हुईं
"रोजगार का सवाल असंगठित क्षेत्र के साथ जुड़ा हुआ है। 93% लोग असंगठित क्षेत्र में काम करते हैं, इसलिए इस सेक्टर में रिकवरी पर बहुत कुछ निर्भर करता है। रूरल एंप्लॉयमेंट गारंटी स्कीम, यानी मनरेगा में डिमांड अब भी काफी ज्यादा है। इसका मतलब है कि जो लोग शहर से पलायन करके गांव गए उन्हें अभी तक शहरों में पहले की तरह दोबारा रोजगार नहीं मिल रहा है, इसलिए रोजगार पैदा करना बहुत जरूरी है।
अगर 93% लोगों का रोजगार और उनकी आमदनी प्रभावित है तो इसका सीधा असर डिमांड पर होगा। जब इनकी तरफ से डिमांड पैदा नहीं होगी तो उत्पादन भी नहीं होगा और नए रोजगार भी नहीं होंगे। नौकरियों में एक बड़ी समस्या ऑटोमेशन की है। कोरोना के चलते कंपनियों में ऑटोमेशन बढ़ रहा है। हमने देखा कि पिछले दिनों ई-कॉमर्स काफी तेजी से बढ़ा और सामान्य दुकानें पिछड़ती जा रही हैं। ई-कॉमर्स में ऑटोमेशन हो रहा है, इसलिए वहां ज्यादा रोजगार पैदा नहीं होंगे।"
शिक्षाः लैपटॉप-स्मार्टफोन नहीं, पढ़ाई में पिछड़ रहे गरीब
"इस समय हमारी शिक्षा गैजेट्स पर निर्भर है। गरीब आदमी के पास ना तो लैपटॉप है ना स्मार्टफोन, इसलिए पढ़ाई के मामले में वे पिट जाएंगे। डिजिटल डिवाइड के चलते असमानता बढ़ जाएगी। बहुत से टीचर्स भी ऐसे हैं जिन्हें नहीं मालूम कि डिजिटल तरीके से कैसे पढ़ाना है।
टीचर्स को यह नहीं मालूम कि स्टूडेंट का ध्यान कैसे आकर्षित करना है, इसलिए जब तक सामान्य क्लासेस शुरू नहीं होती हैं तब तक शिक्षा क्षेत्र को काफी नुकसान होगा। बहुत से कोचिंग इंस्टीट्यूट बंद हैं तो वहां भी बेरोजगारी है। लोगों के पास पैसे कम हैं, इसलिए वे बच्चों को सरकारी स्कूलों में भर्ती कर रहे हैं। इससे कई प्राइवेट स्कूल बंद हो रहे हैं।"
मिडिल क्लासः टेक्नोलॉजी, टेलीकॉम और ई-कॉमर्स सेक्टर आगे बढ़ेगा
"मिडिल क्लास में जो लोग टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में हैं वे फायदे में रहेंगे। जैसे टेलीकॉम सेक्टर और ई-कॉमर्स आगे बढ़ेगा। जो टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में नहीं हैं उन्हें ऑटोमेशन के कारण समस्या आ सकती है। सर्विस सेक्टर में काम करने वाले भी प्रभावित होंगे। जैसे प्राइवेट स्कूल बंद होंगे तो वहां पढ़ाने वाले बेरोजगार हो जाएंगे। अस्पतालों में लोग कम जाएंगे तो वहां टेक्निकल सपोर्ट स्टाफ जैसे मिडिल क्लास के लोग बेरोजगार होंगे।
कुछ सेक्टर को लाभ होगा तो कुछ सेक्टर नुकसान में रहेंगे। जैसे ई-कॉमर्स बढ़ेगा, लेकिन मॉल में चलने वाली दुकानों को नुकसान होगा। वर्कफोर्स में महिलाओं की भागीदारी पहले ही कम है, वह और कम हो जाएगी। बहुत से छोटे बिजनेस बंद हो रहे हैं। उससे भी रोजगार पर असर होगा। इसका प्रभाव एनपीए के रूप में फाइनेंशियल सेक्टर पर दिखेगा।"
सोशल सिक्योरिटीः सरकार को हेल्थ पर ढाई गुना खर्च करना होगा
"यह बात साफ हो गई है कि अच्छे इंफ्रास्ट्रक्चर और अच्छी रिसर्च के बिना हम महामारी का मुकाबला नहीं कर सकते हैं। जैसे अभी कोरोनावायरस के जो नए स्ट्रेन का पता चला है, वह तभी संभव है जब आपकी रिसर्च अच्छी होगी। नए वायरस का तुरंत पता लगाना बहुत जरूरी है, क्योंकि हो सकता है नया वायरस बहुत कमजोर हो या बहुत ज्यादा घातक। यह पता करने के लिए भी रिसर्च एंड डेवलपमेंट होनी चाहिए।
बड़े शहरों को छोड़ दें तो छोटे शहरों और देहातों में हेल्थ सिस्टम या तो बिल्कुल नहीं है या बहुत कमजोर है। वहां मेडिकल स्टाफ के पास ज्यादा स्किल भी नहीं है। कहा जाता है कि जीडीपी का कम से कम 3% पब्लिक हेल्थ पर खर्च होना चाहिए, लेकिन भारत में यह सिर्फ 1.2% है, जबकि जरूरत ढाई गुना से ज्यादा 3% से भी ज्यादा की है। वहीं...
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सरकार का पिछला बजट 10% नॉमिनल ग्रोथ के अनुमान पर आधारित था, जबकि इस साल कम से कम 10% की गिरावट रहेगी, इसलिए कुल असर 20% का होगा।
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हम मानकर चल रहे थे कि 204 लाख करोड़ रुपए की अर्थव्यवस्था 225 लाख करोड़ रुपए की हो जाएगी। वास्तव में वह घटकर 184 लाख करोड़ की रह जाएगी। यानी अंतर 40 लाख करोड़ का होगा।
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दूसरी तरफ टैक्स कलेक्शन कम रहेगा, जबकि खर्च बढ़ेगा। इससे फिस्कल डेफिसिट काफी बढ़ जाएगा।
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हमें इसी साल बजट में संशोधन करना चाहिए था, जो हमने नहीं किया। अब अगर हम पिछले बजट के आधार पर नया बजट तैयार करेंगे तो सभी आंकड़े गलत हो जाएंगे।
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सरकार को खर्च बढ़ाना पड़ेगा। बजट में से जो पैसा दिया गया है वह सिर्फ तीन लाख करोड़ रुपए है। यह जीडीपी का एक प्रतिशत है।
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दूसरी तरफ अमेरिका में दूसरे चरण का जो पैकेज 900 अरब डॉलर का है। यह अमेरिका की जीडीपी के 5% के बराबर है।
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वहां सरकार ने पहले तीन लाख करोड़ डॉलर का पैकेज दिया था जो अमेरिका की जीडीपी के 15% के बराबर था। यानी वहां जीडीपी के 20% के बराबर पैकेज दिया गया है, जबकि भारत में सिर्फ 1.5% पैकेज दिया गया है। इसके बजट को एक लाख करोड़ से बढ़ाकर अगले बजट में तीन से चार लाख करोड़ किया जाना चाहिए।
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रिजर्व बैंक की पिछले साल की रिपोर्ट के अनुसार मनरेगा में लोगों को 100 के बजाय सिर्फ 50 दिन का काम मिलता है। 100 दिनों के गारंटेड रोजगार को बढ़ाकर 200 दिन किया जाना चाहिए। योजना के तहत मजदूरी भी बढ़ानी चाहिए।
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शहरों के लिए एंप्लॉयमेंट गारंटी स्कीम शुरू की जानी चाहिए। शिक्षित लोगों को कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग जैसे कामों में लगाया जा सकता है। जिनके पास ज्यादा स्किल है उनका इस्तेमाल वैक्सीनेशन के लिए किया जा सकता है।
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देश में छह करोड़ माइक्रो यूनिट हैं। उन्हें सरकार को बैंकों के जरिए पूंजी उपलब्ध करानी चाहिए।
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अमेरिका समेत कई देशों में सरकार पे प्रोटेक्शन प्लान के तहत कंपनियों को पैसे दे रही है, ताकि वह स्टाफ की 80% सैलरी दे सके। स्मॉल और मीडियम यूनिट्स के लिए भारत में भी पे प्रोटेक्शन प्लान लाया जाना चाहिए।"
पैसा कहां से आएगा? सरकार रिजर्व बैंक और बाजार से उधार ले
"इन खर्चों के लिए सरकार को रिजर्व बैंक और बाजार से उधार लेना पड़ेगा। इस समय अमीरों की संपत्ति भी काफी कम हो गई है, इसलिए विनिवेश ज्यादा सफल नहीं होगा। मान लीजिए सरकार ने दो लाख करोड़ रुपए का विनिवेश किया तो लोगों को दूसरे ऐसेट से इतने पैसे निकालकर विनिवेश में लगाना पड़ेगा। अगर दूसरे ऐसेट ज्यादा बिकने लगे तो उनके दाम गिरेंगे। उससे भी एक नई समस्या खड़ी हो सकती है।
एक विकल्प यह भी है कि अमीरों के लिए सरकार कोविड-19 बॉन्ड जारी करे। तब लोगों को अपने ऐसेट नहीं बेचने पड़ेंगे। बैंकों के पास इस समय आठ लाख करोड़ रुपए एक्स्ट्रा हैं, इसलिए बैंक कोविड-19 बॉन्ड की फाइनेंसिंग कर सकते हैं। बैंकरप्सी कोड को अगर सख्ती से लागू किया गया तो बहुत से बिजनेस बंद हो जाएंगे। इसलिए जब तक हालात नहीं सुधरते तब तक इसमें ढील देनी पड़ेगी।"
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