Dainik Bhaskar दोनों हाथ नहीं हैं, हॉस्पिटल में काम करती हैं पैरों से पेंटिंग बनाकर बेच रहीं, ताकि दिव्यांगों के लिए आर्ट स्कूल खोल सकें
(दिलीप कुमार शर्मा) ‘मुश्किलें किसके जीवन में नहीं हैं। भगवान मेरे दोनों हाथ बनाना भूल गए, लेकिन मैंने पैरों से जीना सीख लिया है।’ 21 साल की प्रिंसी गोगोई जब ये बातें कहती हैं तो उनकी आंखें अटूट विश्वास से और चमकने लगती है। असम के छोटे से शहर सोनारी में पैदा हुई प्रिंसी के जन्म से ही दोनों हाथ नहीं है। फिलहाल वह गुवाहाटी के एक प्राइवेट हॉस्पिटल में फ्रंट डेस्क एग्जीक्यूटिव की नौकरी कर घर का खर्च उठा रही हैं।
प्रिंसी ने पैरों से लिखकर 12वीं पास की है। प्रिंसी को पेंटिंग, सिंगिंग और स्पोर्ट्स का शौक है। पैरों की अंगुलियों से ब्रश पकड़कर प्रिंसी ने हाल ही में गणेश की पेंटिंग बनाई जो 30 हजार रुपए में बिकी। वह दिव्यांग बच्चों के लिए एक आर्ट स्कूल खोलना चाहती हैं।
मानसिक बीमार बताकर स्कूल ने एडमिशन नहीं दिया था
प्रिंसी ने बताया, ‘मुझे एक सरकारी स्कूल में पांचवीं में इसलिए एडमिशन नहीं दिया गया था, क्योंकि मेरे दोनों हाथ नहीं हैं। एक शिक्षक ने मां से कहा था कि वे ‘मानसिक रोगी’ बच्चे को भर्ती नहीं कर सकते। लेकिन एक दरवाजा बंद होता है, तो ईश्वर दूसरा खोल देता है। गांव के ही एक व्यक्ति की मदद से मेरा एडमिशन प्राइवेट स्कूल में हुआ, जहां से मैंने 10वीं पास की।’
सफलता का मंत्रः खुद से रोज पूछें- मैं यह काम कैसे और बेहतर कर सकता हूं..
ऐसा कोई काम नहीं, जो किया न जा सके। जब आप यह विश्वास करते हैं कि आप कोई काम कर सकते हैं, तो आपका दिमाग उसे करने के तरीके ढूंढ ही लेता है। इसका कोई रास्ता है, यह सोचने भर से रास्ता निकालना आसान हो जाता है।
- अपनी शब्दावली से असंभव, यह काम नहीं करेगा, मैं यह नहीं कर सकता, कोशिश करने से कोई फायदा नहीं...जैसे वाक्य निकाल दें।
- अपने आप से रोज पूछें, ‘मैं इसे किस तरह और बेहतर तरीके से कर सकता हूं?’ जब आप खुद से यह पूछते हैं, तो अच्छे जवाब अपने आप सामने आएंगे। करके देखिए।
- अपने काम की क्वालिटी सुधारें। रोज जितना काम पहले करते थे, उससे ज्यादा करें।
- पूछने और सुनने की आदत डालें। याद रखें, बड़े लोग लगातार सुनते हैं; छोटे लोग लगातार बोलते हैं।
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