Dainik Bhaskar
हमेशा खंडन की स्थिति में रहना कभी भी अच्छा नहीं होता। यह आत्मघाती हो सकता है। कांग्रेस पार्टी लंबे समय से संकेतों को अनदेखा करती आ रही है। नतीजतन अचानक पार्टी पुरानी बातों को लेकर फिर परेशानी में पड़ गई है। अगस्त में जी-23 (यानी 23 नेताओं का समूह) ने कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी को बेबाक चिट्ठी लिखकर सीधे मुसीबत का सामना करने का फैसला लिया।
इनमें कार्यसमिति के सदस्य जैसे गुलाम नबी आजाद, आनंद शर्मा, मुकुल वासनिक और भूपिंदर सिंह हुड्डा के अलावा कपिल सिब्बल, शशि थरूर, मनीष तिवारी, मिलिंद देवड़ा, जितिन प्रसाद, राज बब्बर, रेणुका चौधरी, पृथ्वीराज चव्हाण आदि कई कद्दावर नेता शामिल थे। ऐसे में हम सामने मौजूद समस्या से इनकार नहीं कर सकते हैं कि कांग्रेस अस्तित्व के संकट से जूझ रही है।
मई 2019 में नेतृत्व की कमी ने पहले से ही निराशाजनक परिस्थिति को और बढ़ा दिया है। हमने निराशापूर्ण ढंग से कर्नाटक और मध्य प्रदेश भाजपा को समर्पित कर दिए और राजस्थान में भी सत्ता खोते-खोते बचे। बड़े राजनीतिक ब्रांड ज्योतिरादित्य सिंधिया हमारी प्रतिद्वंद्वी पार्टी भाजपा से जुड़ गए और हम सचिन पायलट को भी बस खोने ही वाले थे।
कांग्रेस 2014 (44 लोस सीट) और 2019 (52 लोस सीट) के पिछले दो लोकसभा चुनावों में कुल 100 सीटें भी नहीं जीत पाई और वोट-शेयर भी केवल 19.5% के आसपास रहा। यह एक ऐसी पार्टी का बेहद खराब प्रदर्शन था, जो कभी नियमित रूप से 300 से ज्यादा सीट जीतती थी और जिसका वोट-शेयर 40% से ज्यादा रहता है।
कांग्रेस ने सफलतापूर्वक आधुनिक भारत का निर्माण किया, जिसमें बहु-सांस्कृतिक समाज, एक समृद्ध मध्यमवर्ग, वैश्विक व्यापार में बढ़ता दबदबा, स्थिर विदेश नीति, इंफॉर्मेशन-टेक्नोलॉजी की रीढ़ की हड्डी बनना और मजबूत लोकतांत्रिक संस्थान बनाना शामिल था। इसलिए कई कांग्रेस नेता पार्टी में विचारहीन प्रवृत्ति से निराश हैं, जिससे कार्यकर्ता हतोत्साहित हो रहे हैं और जनता का मोहभंग हो रहा है।
जी-23 आंतरिक कायापलट चाहते हैं क्योंकि सभी प्रतिबद्ध कांग्रेस नेता हैं, जो इसके भविष्य की परवाह करते हैं। पार्टी के संभावित बंटवारे का मीडिया का अनुमान गलत है। अब आपको 1969 और 1978 का दौर देखने नहीं मिलेगा, जब पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमति इंदिरा गांधी ने कांग्रेस के बंटवारे की योजना बनाई थी।
चिट्ठी कांग्रेस की लंबे समय से चली आ रही समस्या का सार है; राजनीतिक प्रबंधन की एक पूरी तरह एड-हॉक शैली और पार्टी में आंतरिक लोकतंत्र की कमी। उदाहरण के लिए 1997 के बाद से पार्टी की शक्तिशाली निकाय कांग्रेस कार्यसमिति के चुनाव नहीं हुए हैं और गांधी परिवार का ही सदस्य पिछले 35/42 वर्षों से कांग्रेस का अध्यक्ष रहा है। बेशक इसके लिए पार्टी भी सामूहिक रूप से जिम्मेदार है।
लेकिन इसके आमतौर पर किसी संगठन के लिए हानिकारक परिणाम होते हैं और राजनीति में, जहां हम गोल्डफिश के बाउल में रहते हैं, वहां परिणाम विनाशकारी हो सकते हैं। कांग्रेस के लिए मुख्य चुनौतियों में शामिल हैं, कांग्रेस अध्यक्ष और कार्यसमिति के पारदर्शी चुनावों के जरिए संगठनात्मक पुनर्जीवन, शरद पवार (एनसीपी), जगमोहन रेड्डी (वायएसआरसी), ममता बनर्जी (टीएमसी) जैसे पूर्व कांग्रेस नेताओं को फिर साथ लाने का प्रयास और खुली कार्य संस्कृति विकसित करना, जहां लोग राजनीतिक दंड के डर के बिना, अपना मत खुलकर रख सकें।
हमने अपना महत्वपूर्ण युवा वोट भी गंवा दिया है, जिसे तैयार करने की जरूरत है। हालांकि यह बहुत अफसोस की बात है कि कुमारी शैलजा जैसी वरिष्ठ नेता ने जी-23 को भाजपा का एजेंट कहा और उत्तर प्रदेश में जितिन प्रसाद पर सुनियोजित हमला हुआ। इसलिए अक्सर यह सही कहा जाता है कि कांग्रेस की सबसे बड़ी राजनीतिक शत्रु भाजपा नहीं, खुद कांग्रेस ही है।
यह निर्विवाद है कि गांधी परिवार का भारत की अद्भुत सफलता और कांग्रेस पार्टी के ऐश्वर्य में महान योगदान है। बेशक, भविष्य में भी राजनीतिक बिसात पर चालों में गांधियों की महत्वपूर्ण भूमिका रहेगी। लेकिन अब, जब गांधी सार्वजनिक रूप से राजनीतिक नेतृत्व त्यागने की मंशा जता चुके हैं, तो यह लाजिमी है कि पार्टी के नेतृत्व का अवसर किसी और को मिले।
कांग्रेस में ऐसी विलक्षण प्रतिभाएं हैं, जिनमें प्रशासनिक विशेषज्ञता और जमीनी स्तर पर जुड़ाव के साथ राजनीतिक शासन कला, दोनों हैं। जो लोग चेता रहे हैं कि गांधियों के बिना पार्टी बिखर जाएगी, वे ऐसा अपने खुद के हितों को मजबूत करने के लिए कर रहे हैं। जो पार्टी की विचारधारा को लेकर प्रतिबद्ध हैं, वे कभी अपनी अल्पकालीन उन्नति के लिए इसे नहीं छोड़ेंगे।
बदला हुआ महत्वाकांक्षी भारत एक प्रबुद्ध राजनीतिक संगठन चाहता है, जो जनता को प्रेरित करे, जैसे कांग्रेस ने कभी जनआंदोलनों और बड़ी रैलियों में किया था। जी-23 ने एक शक्तिशाली आंदोलन की शुरुआत की है। पुनरुत्थान के बाद कांग्रेस अकेले ही भाजपा के चुनाव तंत्र को हरा सकती है। तब 2024 का चुनाव एक खुला चुनाव बन जाएगा। (ये लेखक के अपने विचार हैं)
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